Saturday 30 January 2016

जिद करो दुनिया बदलो-जिन्हें दो बार दाखिला के लिए लौटा दिया, उन्होंने बनाई दुनिया में पहचान

 अशोक प्रियदर्शी
          बात तीन दशक पुरानी है। बिहार के नवादा जिले के पकरीबरावां प्रखंड के कोननपुर गांव के नरेंद्रपाल सिंह आइएससी पास किया था। वह बैचलर आॅफ फाइन आर्ट इन पेंटिग में दाखिला के लिए पटना यूनिवर्सिटी के काॅलेज आॅफ आर्ट एंड क्राफ्ट में आवेदन किया था। लेकिन तत्कालीन प्राचार्य ने साइंस का विधार्थी रहने के कारण उन्हें दाखिला लेने से इंकार कर दिया था। प्राचार्य का तर्क था कि साइंस के विधार्थी आर्ट के क्षेत्र में ज्यादा दिनों तक नही टिक सकते। आर्टिटस्ट का एक सीट बेकार चला जाएगा। अगला साल फिर नरेंद्रपाल प्रयास किया। लेकिन निराशा हाथ लगी। नरेंद्रपाल कहते हैं कि तीसरे प्रयास मेें उनका दाखिला तब हुआ जब वह जानबुझकर केमिस्ट्री में फेल कर गए। नरेंद्रपाल कहते हैं कि उनका बचपन से चित्रकार बनने का सपना था।  

नरेंद्रपाल का जिद ही था कि आज वह देश के प्रमुख चित्रकारों में हैं। उनके चित्रों भारत के अलावा पांच देशों में प्रदर्शित हो चुकी है। नरेंद्रपाल के चित्रों का प्रदर्शन शिकागो (अमेरिका), बर्लिन (जर्मनी),वार्सिलोना (स्पेन), साउथ कोरिया, इटली में हुआ। पिछले साल चेक गणराज्य के प्राॅग नेशनल गैलरी में ‘ओरिएंटल एंड टेमपररी- दि आर्ट आॅफ एशिया’ की प्रदर्शनी में उनका चित्र शामिल हुआ।  प्राॅग के नेशनल गैलरी में किसी भारतीय के लिए पहला अवसर है। खास कि जिन देशों में नरेंद्रपाल के चित्रों की प्रदर्शनी हुई, उसका खर्च भी आयोजक देशों ने उठाया। नरेंद्रपाल के मुताबिक, मार्च- अप्रैल में इटली में प्रदर्शनी की जाएगी।
         यही नहीं, नरेंद्रपाल की जिद ने प्राचार्य के अवधारणा को बदल दिया। प्राचार्य पांडेय सुरेंद्र जी के रिटायरमेंट के बाद लखनउ में जब नरेंद्रपाल से मुलाकात हुई तब उन्होंने गले लगाकर आर्शीवाद दिया। नरेंद्रपाल कहते हैं कि शिक्षक और अभिभावक के नजरिया भी बदल गया। बचपन में चित्रकारी में लीन रहने के कारण डांट सुननी पड़ती थी।

नरेंद्रपाल के चित्रकारी की खासियत
        नरेंद्रपाल अमूर्तन चित्रशैली की अमिट छाप छोड़ी है। इसमेें संकेत के जरिए चित्रित किया गया है। इसका दृष्टिकोण नाम दिया गया। नरेंद्रपाल ने सर्कस, नायिका, लुकिंग ग्लास जैसे दर्जनों सीरिज के जरिए देश दुनिया में पहचान बनाई। इटली के फ्रेड्रिको फैलिनी पर आधारित ला-डोक्चे-बिटा यानि स्वीट लाइफ पर उनकी चित्रकारी काफी ख्याति दिलाई।
        बहरहाल, नरेंद्रपाल दी रिमेंस आॅफ ऐस्टरडे (कल का अवशेष) सीरिज पर काम कर रहे हैं। नरेंद्रपाल कहते हैं कि देश और दुनिया की विस्मृत हो रही चीजों को चित्र के जरिए बनाये रखने की कोशिश की जा रही है। इटली और मिश्र जैसे देश इस दिशा में प्रयास करती रही है। लेकिन भारत पुरानी चीजों को भूलती जा रही है। ऐसे में उनका प्रयास चित्रकारी के जरिए उसे जीवित रखना है। बैलगाड़ी की विदाई, वट सावित्री पूजा, हैंडमील (जाता), निर्वाण और प्रकृति, मूर्तिकला, बाइस्कोप, नौटंकी जैसे चित्रकारी शामिल है।

सम्मानित
     

पिछले साल बिहार के खेल, युवा और संस्कृति मंत्रालय ने नरेंद्रपाल को वरिष्ठ चित्रकार राधामोहन प्रसाद आवाॅर्ड  से सम्मानित किया है। उन्हें एकरीलिक पेंिटग के लिए नार्थन रिजन अवार्ड मिल चुका है। उन्हें बिहार यंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने बिहार श्री का अवार्ड दिया। वह आॅल इंडिया पेंटिंग जज कमेटी के मेंबर रहे हैं। ऐसे सम्मानों की सूची लंबी है।



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