Tuesday 12 January 2016

अतीत की कहानी बन गई कांग्रेस


अशोक प्रियदर्शी
कांग्रेस की अतीत गौरवशाली रही है। नवादा जिले में आजादी के बाद दो दशक तक पांच विधानसभा क्षेत्र में कम से कम चार एमएलए रहे हैं। लेकिन अब कांग्रेस का एक भी एमएलए नही हैं। आखिरी बार फरवरी 2005 के चुनाव में हिसुआ से आदित्य सिंह विधायक निर्वाचित हुए थे। उसके बाद कांग्रेस के कोई नेता सदन नही पहुंच सके। वैसे 2010 के चुनाव में वारिसलीगंज विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी अरूणा देवी दूसरे स्थान पर रही थी। अरूणा जदयू के प्रदीप कुमार से 5428 मतों के अंतर से हार र्गइं थीं। जबकि हिसुआ में आदित्य सिंह की पुत्रवधू नीतु कुमारी तीसरे स्थान पर रहीं थी। नीतु को 20820 मत मिले थे।
कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि कांग्रेस अपनी इस हालत के लिए खुद जिम्मेवार हैं। समर्थक कहते हैं कि जब से कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल शुरू किया तब से कांग्रेस की शक्ति कमजोर होती गई। अब कांग्रेस हाशिये पर पहुंच गई, जिसे अब क्षेत्रीय दलों के सहयोग की जरूरत है। आरोप है कि कांग्रेस की नीतियों के अलावा उम्मीदवारों के चयन में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कांग्रेस को हाशिये पर जाने की वजह बनी। वैसे 1995 में कांग्रेस दो सीटों पर चुनाव जीती थी। वारिसलीगंज से रामाश्रय प्रसाद सिंह और हिसुआ से आदित्य सिंह निर्वाचित हुए थे। उसके बाद से कांग्रेस की स्थिति दिनोंदिन कमजोर पड़ती गई।
हालांकि 1985 तक कांग्रेस की स्थिति ठीक थी। इस चुनाव में नवादा से नरेंद्र कुमार,  वारिसलीगंज से डाॅ श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र बंदी शंकर सिंह, गोविंदपुर से गायत्री देवी कांग्रेस से निर्वाचित हुईं थी। जबकि हिसुआ से निर्दलीय आदित्य सिंह और रजौली से बनवारी राम निर्वाचित हुए थे। हालांकि दोनों नेताओं को कांग्रेस ने टिकट नही दिया था। 1952 के चुनाव में कांग्रेस सभी सीटों पर निर्वाचित हुई थी। उसके बाद के कई चुनावों में कांग्रेस की स्थिति दमदार रही। पिछले आकड़े देखें तो पंद्रह चुनावों में नवादा में पांच, वारिसलीगंज में छह, रजौली में पांच, गोविंदपुर में सात और हिसुआ में आठ बार कांग्रेस उम्मीदवार की जीत हुई है। लेकिन अब कांग्रेस के लिए अतीत की कहानी बन गई है।

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