Tuesday 12 January 2016

महिला राजनीति-साधारण परिवार की महिलाओं के लिए राजनीति की राह आसान नही


अशोक प्रियदर्शी
बात पिछले विधानसभा चुनाव की है। जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों से कुल 68 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें महिलाओं की तादाद दस थी। यह नवादा के राजनैतिक इतिहास में सर्वाधिक आकड़े हैं जब करीब 15 फीसदी महिलाओं को चुनाव लड़ने का अवसर दिया गया। खास बात कि जिले के पांच में से एक सीट नवादा से पूर्णिमा यादव निर्वाचित हुईं थी। पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा कांग्रेस ने पांच में से चार महिलाओं को अवसर दिया था। 
         कांग्रेस ने नवादा में निवेदिता सिंह, हिसुआ में नीतु कुमारी, वारिसलीगंज में अरूणा देवी और रजौली में बसंती देवी को उम्मीदवार बनाया है। जबकि भाकपा माले ने रजौली में सुदामा देवी और नवादा में सावित्री देवी को अवसर दिया था। वहीं जदयू ने पूर्णिमा यादव को नवादा से और जेएमएम ने सुशीला देवी को गोविंदपुर से उम्मीदवार बनाया था। वारिसलीगंज में जनता दल सेक्यूलर ने जूली कुमारी और इंडिया जननायक कांची ने तनुजा कुमारी को मौका दिया था।
गौर करें तो कांग्रेस ने महिलाओं को सर्वाधिक अवसर दिया। चार महिलाओं को यह अवसर दिया। कांग्रेस का पिछला रिकॉर्ड ऐसा नही रहा है।
       सामाजिक कार्यकर्ता संगीता कुमारी कहती हैं कि कांग्रेस ने महिलाओं के प्रति यह दरियादिली तब दिखाई जब उनकी राजनीतिक हैसियत कमजोर पड़ गई। लेकिन उस परिस्थिति में भी साधारण परिवार की महिलाओं को अवसर नही दिया। अपवाद को छोड़ दें तो ज्यादातर धनबली, बाहुबली और प्रभावशाली नेताओं के परिजनों अवसर दिया गया।
        देंखें तो, नीतु कुमारी कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्वमंत्री आदित्य सिंह की पुत्रवधू हैं। निवेदिता सिंह आयकर अधिकारी की पत्नी हैं। जबकि अरूणा देवी बाहुबली अखिलेश सिंह की पत्नी हैं। बसंती देवी को इसलिए उम्मीदवार बनाया गया कि रजौली सीट एससी के लिए सुरक्षित है। वहां से मजबूत दावेदार नही था। जदयू की पूर्णिमा देवी की राजनैतिक विरासत रही हैं। पति कौशल यादव, सास गायत्री देवी और ससुर युगलकिशोर का का राजनैतिक पृष्ठभूमि रही है।
        हालांकि भाकपा माले ने आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित तबके की महिलाओं को अवसर दिया। सुदामा देवी और सावित्री देवी साधारण परिवार से आती हैं। हालांकि कई और साधारण महिलाओं को मौका मिला। लेकिन उन्हें उन दलों ने अवसर दिया जिनके लिए उम्मीदवार जुटाना भी मुश्किल रहा है। अधिकांश राजनैतिक दल आबादी के हिसाब से महिलाओं को कभी अवसर नही दिया। पार्टी जब हाशिये पर रही है तब हाशिये पर रही महिलाओं को बतौर उम्मीदवार उतारा है। 

महिलाओं की स्थिति
नवादा जिले में आठ लाख 16 हजार 11 पुरूष मतदाता हैं। जबकि 7 लाख 30 हजार 617 महिला मतदाता हैं। औसतन एक हजार पुरूष के विरूद्ध 895 महिला मतदाता हैं। 2010 के विधानसभा चुनाव में जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों में 45.66 फीसदी मतदान हुआ था। इसमें 44.66 फीसदी पुरूष मतदान किया था। जबकि 46.24 फीसदी महिला मतदाताओं ने मतदान किया था। 

नवादा में पांच महिलाएं एमएलए बनी
नवादा जिले के राजनैतिक इतिहास का आकलन करे तो पिछले 15 चुनावों में जिले के पांच विधानसभा क्षेत्र से 75 नेताओं को क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। इनमें महिलाओं की संख्या सिर्फ बारह है। खासबात कि सात बार गायत्री देवी और उनकी पुत्रवधू पूर्णिमा यादव निर्वांचित हुईं। महिलाओं की संख्या के हिसाब से देखें तो सिर्फ पांच महिलाएं को राजनीति में अवसर मिला। 
        गायत्री देवी तीन बार गोविंदपुर और एक बार नवादा से निर्वाचित हुई था। जबकि पुत्रवधू पूर्णिमा यादव तीन बार नवादा से निर्वाचित हुई हैं। अरूणा देवी दो बार वारिसलीगंज क्षेत्र से निर्वाचित हुई। शांति देवी एक बार रजौली से निर्वाचित हुईं। हिसुआ में राजकुमारी देवी दो बार निर्वाचित हुई। 1962 के बाद किसी महिला को हिसुआ में प्रतिनिधित्व का अवसर नही मिला। जबकि हिसुआ का अतीत गौरवशाली रहा है।

क्या कहतीं हैं महिला कार्यकर्ता
सामाजिक कार्यकर्ता पुष्पा कहती हैं कि वामदलांे को छोड़ दें तो ज्यादातर दल महिला विरोधी हैं। महिलाओं के प्रतिनिधित्व के सवाल पर दलों की नियत साफ नही है। महिलाओं पर बंदिश लगाना चाहती है। बुर्जुआ दलों में ज्यादातर उन महिलाओं को मौका दिया जाता है जिनके पति और परिवार आपराधिक या फिर आर्थिक अपराध में आरोपित होने के कारण चुनाव नही लड़ सकते हैं। राजनैतिक दल ऐसे आरोपियों को संपोषित करने के लिए उनके परिजनों को उम्मीदवार बनाती है। जबकि सक्रिय महिला कार्यकर्ता को हाशिये पर रखा जाता है।
प्रो प्रमिला कुमारी कहती हैं कि 21वीं सदी में भी राजनीतिक दल और परिवार में पुरूष सता हॉवी है। लिहाजा, पुरूष समाज महिलाओं को घर की देहरी से बाहर नही देखना चाहता। पुरूषों को लगता है कि घर से बाहर महिलाएं सुरक्षित नही है। वह कहती हैं कि जिन महिलाओं को पुरूषों ने अवसर दिया भी है उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी नही है। उनपर दबाव बनाया जाता है। इनसबके बावजूद जो महिलाएं राजनीति में सक्रिय रहती हैं, उन्हें दल तवज्जों नही देती।  दल भी प्रभावशाली महिलाओं को अवसर उपलब्ध कराती है। इसलिए साधारण महिलाओं की राह आसान नही है।

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