Monday 11 January 2016

सीनियर बाॅल नही छूने देते थे, लेकिन ज्योति ने रचा इतिहास



अशोक प्रियदर्शी
         बात 22 साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले के कन्हाई नगर मुहल्ला निवासी ज्योति कुमार रावत बोकारो में पढ़ाई कर रहे थे। तभी हैंडबाॅल खेलने की इच्छा जगी। लिहाजा, वह हर रोज पांच किलोमीटर दूर कुमार मंगलम स्टेडियम में खेलने के लिए जाया करते थे। सिनियर खिलाड़ी उन्हें हैंडबाॅल नही छूने देते थे। क्योंकि बाॅल गंदा हो जाएगा। लेकिन सिनियर की मनाही उनके हैंडबाॅल खेलने की इच्छा को इरादे में तब्दिल कर दिया। वह ग्राउंड से सिनियर के जाने के बाद पुराने बाॅल से जूनियरों के साथ खेला करते थे। 
        ज्योति के इस हौसले का नतीजा रहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पद्र्धा में भाग लिया। करीब तीन-तीन दर्जन गोल्ड, सिलवर और ब्रांउच जीता। ज्योति बोकारो का पहला हैंडबाॅल खिलाड़ी था जिसे खेल कोटे से नौकरी मिला। 36 वर्षीय ज्योति अप्रैल 1997 में सीआइएसएफ में एएसआई में ज्चाइन किया। फिलहाल, वह भिलाई में एसआई है। ज्योति छतीसगढ़ सीआइएसएफ टीम की शान है। ज्योति 1996 में साउथ अफ्रिका में आयोजित काॅमन वेल्थ गेम मंे शामिल हुआ था तब भारत को सिल्वर मिला था। केन्या से दो गोल से भारत हार गया था।
        ज्योति अपना अनुभव बिहार के खिलाड़ियों में बांटना चाहते हैं। ज्योति कहते हैं कि बिहार में हैंडबाॅल टीम की बड़ी संभावना है। लेकिन ट्रेनिंग के अभाव में बिहार के खिलाड़ी आखिरी दौर में पिछड़ जाते हैं। इसलिए उनका मकसद है कि छुटटी के दिनों में हैंडबाॅल खिलाड़ियों को निःशुल्क प्रशिक्षण देना। ताकि कुशल खिलाड़ी तैयार हो सकें। क्योंकि खेल अब कॅरियर भी है।

कामयाबी की कहानी
 ज्योति को सबसे पहले 1993 में सब जुनियर नेशनल हैंडबाॅल चैंम्पियनशिप में बिहार टीम से शामिल होने का मौका मिला था। गोवहाटी में आयोजित चैंम्पियनशिप में बिहार चैथे स्थान पर था। वहीं ज्योति का चयन नेशनल हैंडबाॅल अकादमी भिलाई के लिए चयन कर लिया गया। लिहाजा, 1994 में अकादमी ज्वाइन कर लिया। वहीं से ग्रेजुएशन किया। उसके बाद जुनियर नेशनल में खेला। तब गोल्ड मिला। फिर 1996 में काॅमन वेल्थ में खेलने का अवसर मिला। साउथ अफ्रिका से लौटने के बाद सीआइएसएफ में एएसआई के पद पर चयन कर लिया गया। तब से वह छतीसगढ़ के लिए खेल रहे हैं।

खुशी का पल
     ज्योति गेम की सूचना परिजनों को नही देता था। ज्योति के मुताबिक, परिवार को देखने के बाद उनका कंफिडेंट कमजोर पड़ने लगता था। लेकिन बोकारो में गेम था। सीआइएसएफ भिलाई की ओर से था। उन्हें उस गेम में बेस्ट स्कोरर और बेस्ट प्लेयर का खिताब मिला था। तब पापा और बड़े भाई चुपचाप गेम देख रहे थे। ज्येति की जीत पर ग्रांउड में बधाई दिए थे।

परेशानी का पल
     1997 में इंगलैंड टीम जा रही थी। उन्हें अपनी प्रतिभा पर पूरा भरोसा था। लेकिन जब फाइनल टीम की सूची देखने पहुंचा तो उन्हें निराशा हुई थी। उनके जुनियर और आखिरी दौर मंे अकेेदमी में दाखिल हुए खिलाड़ी का चयन राष्ट्रीय टीम के लिए कर लिया गया था। चयन की यह प्रक्रिया उन्हें झकझोर दिया था।

प्रमुख उपलब्धियां-
1993-सब जुनियर नेशनल चैम्पियनशिप, गोवहाटी-चैथा स्थान
1995-1997-जुनियर हैंडबाॅल नेशनल चैंम्पियनशिप-तीन गोल्ड
1995-2015 तक- सिनियर नेशनल हैंडबाॅल चैंम्पियनशिप,
1997-2015 तक- वेस्टर्न जोन आॅल इंडिया चैम्पियनशिप,
1997-2015 तक- आॅल इंडिया पुलिस कैंप चैंम्पियनशिप,
1998-2015 तक- फेडरेशन कप, (-2015 में आध्र प्रदेश में फेडरेशन कप में सिल्वर मिला
-2015 में नोएडा में आयोजित वेस्टर्न चैम्पियनशिप में गोल्ड।)
(टीम को ज्यादातर खेलों में गोल्ड, सिलवर और ब्राउंच मिला है)

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