Tuesday 12 January 2016

परिवार मान लिया था कि अयूब जिंदा नही, 32 साल बाद अयूब की वापसी से ईद की खुशी हुई दोहरी, अयूब ने कहा कि मुकाम पाने में बीत गए 32 साल

अशोक प्रियदर्शी
 बात 32 साल पहले की है। रमजान का महीना था। नवादा के अकबरपुर प्रखंड के बरेव निवासी अयूब अंसारी अचानक गायब हो गए थे। तब अयूब की उम्र 28 साल थी। उनके तीन भाई और तीन बहन अयूब को ढूढ़ने में विफल रहे थे। अयूब के चेहरे से मेल खानेवाले हर शख्स को उनके माता पिता अपना पुत्र समझ लेते थे। इसके चलते कई दफा फटकार भी सुननी पड़ी थी। लिहाजा, लंबे समय से ईद आकर भी परिवार को खुशियां नही दे पाती थी।
       विगत 28 जून को अयूब की घर वापसी ने 32 सालों बाद ईद की खुशी लेकर आयी है। मो युसुफ कहते हैं कि अयूब के जिंदा रहने की उम्मीद खत्म हो चुकी थी। लेकिन उसके दीदार ने सालों के गम को दूर कर दिया। वह बताते हैं कि अयूब दुबला पतला था। लेकिन हेल्दी हो जाने के बाद भी पहचानने में मुश्किल नही हुई। छोटे भाई खुर्शीद कहते हैं कि भाई के चेहरे की भी याद नही थी, लेकिन दिल की आवाज और बचपन की दास्तां के कारण पहचानने में देर नही हुई। शुभचिंतक एजाज कैसर ने बताया कि भाइयों की आंसू बिछूड़े दिनों की परेशानियां बयां कर रही थी।

क्या है गायब की कहानी
मो अयूब की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। वह प्रसाद विगहा में मौलवी चाचा की दुकान में गाड़ियों के सीट बनाने का काम करता था। मजदूरी कम थी। अयूब को मजनू और फैजान दो बच्चे थे। एक अपने ने आर्थिक तंगी पर टिप्पणी कर दिया था। प्रतिक्रिया मंे घर छोड़ दिया। कई शहरों में खाक छानी। तभी यूपी के रायबरेली में एक ठौर मिला। मजदूरी की राशि बचाकर अयूब सीट बनाने का कारोबार खड़ा किया। यह अब बड़ा आकार ले लिया। 

कैसे हुई घर वापसी
दरअसल, ईद के बाद अयूब हज के लिए जानेवाले थे। वह मां कदिरन बानो और पिता अशरफ अंसारी से इजाजत लेने आए थे। लेकिन 27 जून को अयूब जब बरेव गांव पहुुंचे तो उन्हें पता चला कि पांच साल पहले मौत हो चुकी है। लिहाजा, वह कब्रिस्तान और मस्जिद में दर्शन के बाद वापस नवादा लौट आए। अगले दिन रायबरेली वापस जानेवाले थे। इसके पहले वह मौलवी चाचा की दुकान पर गए थे। लेकिन उनकी दुकान खत्म हो चुकी थी। तभी पड़ोसी छोटन से मुलाकात हुई। छोटन ने अयूब के परिजनों को बताया। तब भाइयों ने अयूब को गांव ले गया। अयूब की पत्नी अपने भाइयों के साथ कोलकाता में हैं। बेटे सउदी अरब में है।

क्या कहते हैं अयूब
-परिवार की खूब याद आती थी। लेकिन आर्थिक तंगहाली रोकती थी। मैंने तय किया था कि मुकाम तय किए बिना वापस नही जाउंगा। लेकिन मंजिल तय करने में 32 साल बीत गए। आया था कि मां और पिता को खुशियां दूंगा, लेकिन उन्हें खो दिया।

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