Sunday 10 January 2016

बुजुर्ग हड्डियों में अब भी जान बाकी है


 
डाॅ. अशोक कुमार प्रियदर्शी
         बात एक साल पहले की है। नवादा नगर के गढ़पर निवासी 70 वर्षीय एलपी सिन्हा ( सामाजिक कारणों से नाम बदल दिया गया है) को बेटे ने घर से बाहर कर दिया था। सिन्हा पर बेटे जमीन और मकान रजिस्ट्री करने का दबाव बना रहे थे। सिन्हा इसके लिए तैयार नही थे। तर्क था कि घर और मकान रजिस्ट्री कर देने से गुजारा कर पाना मुश्किल हो जाएगा। प्रतिक्रिया में बेटे ने घर से बाहर कर दिया। सिन्हा किराए के मकान में रहने लगे। सिन्हा अपनी यह परेशानी बुजुर्ग साथियों को बताया। बुजुर्ग साथियों ने सामूहिक तौर पर प्रशासन से पहल का आग्रह किया। सिन्हा को फिर से घर पर काबिज कराया गया। 
         बिहार के नवादा की यह अकेला घटना नही है। पकरीबरावां के डुमरी गांव निवासी कामेश्वर सिंह (काल्पणिक नाम) का उदाहरण लें। सिंह शिक्षक से रिटायर हुए तब बटों ने पेंशन की राशि के लिए अड़चन पैदा कर दिया। उनकी पत्नी नही थी। बेटे ने उनपर चारित्रिक लांछन लगा दिया था। इस मामले में बुजुर्ग परिवार ने पहल किया। अब नियमित पेंशन भुगतान हो रहा है। 
        रोग दुख में भी बुजुर्ग एक दूसरे के मददगार साबित होते रहे हैं। पार नवादा निवासी अंजनी दीक्षित शब्जी मार्केट में गिर गए थे। उनका दायां टेहुना टूट गया। लोग मूकदर्शक बने थे। तभी शब्जी खरीदने आए एक बुजुर्ग ने उन्हें देखा। फिर कई बुजुर्गों को बुलाया। अस्पताल में इलाज शुरू कराने के बाद परिवार को सूचना दी गई। एक दूसरे बुजुर्ग के मदद की ऐसी कई कहानियां है। रामनगर निवासी ई. धनेश्वर यादव कहते हैं कि रिटायरमेंट का लाभ देने के लिए रूपए की मांग की जा रही थी। लेकिन बुजुर्ग परिवार के पहल के कारण 50 रूपए कागजी खर्च में काम चल गया।
        बुजुर्ग एक दूसरे की सुरक्षा में भी हाथ बंटाते रहे हैं। नगर थाना के बुधौल निवासी 67 वर्षीय गौरीशंकर प्रसाद जमीन की खरीद के लिए बैंक से पैसा निकालकर घर लौट रहे थे। झपटमार उनका पीछा कर रहे थे। एक बार पान की पिरकी फिर कचरा फेंक दिया। तब गौरीशंकर प्रजातंत्र चैक पर ठहर गए, बुजुर्ग साथी को फोन किया। चंद मिनट में कई बुजुर्ग आ गए। उसके बाद झपटमार फरार हो गया।
         युवाओं से भी मुकाबला में भी बुजुर्ग नही हिचकते। फरहा निवासी 72 वर्षीय उमेश प्रसाद की बेटी को दामाद ने छोड़ दिया था। कोर्ट के आदेश के बावजूद दामाद गुजारा भता देने को राजी नही था। ससुर को धमकी दिया करता था। बुजुर्गों ने पहल किया। तब से गुजारा भता दिया जा रहा है। नारदीगंज रोड के रामोतार प्रसाद की जमीन को पड़ोसी कब्जा करना चाहता था। झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन बुजुर्ग परिवार ने पहल किया तब पुलिस माफी मांगी। जमीन को कब्जा मुक्त कर दिया गया। 
       यही नही, बुजुर्गों के पहल पर कई और भी काम हुए हैं। डाॅ ओंकार निराला कहते हैं कि अस्पताल में बेड आरक्षित है। बैंक में भी एक काउंटर है। प्रत्येक तीन माह पर चिकित्सा शिविर आयोजित होते हैं। इसमें निःशूल्क इलाज और दवाइयां दी जाती है। यह सब बुजुर्गों के सामूहिक प्रयास के कारण संभव हो रहा है। करीब एक हजार सदस्यों का बुजुर्ग परिवार है। बुजुर्ग परिवार के मुखिया डाॅ एसएन शर्मा कहते हैं कि परिवार और समाज बुजुर्गों को बेबश समझते हैं। इसलिए उनकी अनदेखी करते हैं। उनपर अत्याचार किए जाते हैं। इसी कड़ी में बुजुर्ग परिवार एक दूसरे को मदद कर रहे हैं ताकि लोग लाचार नही समझे। करीब 60 बुजुर्ग नेत्रदान जबकि 11 बुजुर्ग देहदान की घोषणा कर चुके हैं। बुजुर्ग परिवार के कार्य को जस्टीस रहे एसएन झा, राजेंद्र प्रसाद, पूर्व डीजीपी डब्लू एच खान, पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा आदि सराहना कर चुके हैं।
लेकिन बुजुर्गों की यह पूरी तस्वीर नही है। यह एक मिसाल भर है। देश और दुनिया में बुजुर्ग तिरस्कृत जीवन जी रहे हैं। डाॅ शर्मा कहते हैं कि 65 फीसदी बुजुर्ग परिवार के तिरस्कार के शिकार हैं। बुजुर्गों के दुर्व्यवहार के पीछे आर्थिक कारण ज्यादा होते हैं। हेल्पेज इंडिया के नेशनल सर्वे के मुताबिक, 2013 में 23 फीसदी अत्याचार के मामले थे। 2014 में यह 50 फीसदी पहुंच गया है। 41 फीसदी मामले गाली गलौज, 33 फीसदी निरादर और 29 फीसदी बुजुर्गों को नजरअंदाज करते हैं।

दुनिया की तुलना में भारत की स्थिति
दुनिया के 96 देशों में बुजुर्गों की स्थिति को लेकर किए गए आकलन में स्विटजरलैंड बुजुर्गों के लिए बेहतर देश माना गया है। जबकि भारत सबसे खराब जगह में शुमार है। हेल्पेज इंटरनेशनल नेटवर्क ऑफ चैरिटीज द्वारा तैयार ग्लोबल एज वॉच इंडेक्स 2015 में 96 देशों में भारत को 71वां स्थान दिया गया है। बुजुर्गों के सामाजिक और आर्थिक रहन-सहन का आकलन किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आर्थिक सुरक्षा के पैमाने पर निचले स्तर यानी 72वें स्थान पर रहा। भारत का प्रदर्शन अन्य पैमानों की तुलना में सहयोगी वातावरण के पैमाने पर 52वें स्थान पर, सबसे बेहतर रहा।  सूचकांक में स्विटजरलैंड पहले, नॉर्वे दूसरे,, स्वीडन तीसरे, जर्मनी चैथे और कनाडा पांचवे स्थान रहे हैं। 8वें स्थान पर आने वाले जापान के अतिरिक्त ऊपरी 10 स्थानों पर आने अन्य सभी देश पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अग्रणी देश हैं। 

तेजी से बढ़ रहा बुजुर्गों की आबादी
       चीन में 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की तादाद 21.2 करोड़ है। 2050 तक भारत में 32 करोड़ से अधिक बुजुर्ग का अनुमान है। भारत की जनगणना 2011 के मुताबिक, 10.38 करोड़ से अधिक है। हेल्पेज इंटरनेशनल नेटवर्क के मुताबिक दुनिया के तमाम देशों में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ रहा है। 2050 तक सूचकांक में शामिल 96 में से 46 देशों की 30 फीसदी से ज्यादा आबादी 60 वर्ष से उपर के लोगों की होगी। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि बुजुर्गों की जनसंख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ का भी मानना है कि दुनियाभर में जिस आयु वर्ग की जनसंख्या सर्वाधिक तेजी से बढ़ रही है वह 80 वर्ष या उससे ज्यादा आयु का वर्ग है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक एशिया में रहने वाले हर चार में से एक 60 साल का होगा। बिहार का आकलन करें तो 77 लाख बुजुर्ग हैं। 77 लाख बुजुर्गों में 89 फीसदी बुजुर्ग गांवों में जबकि 11 फीसदी बुजुर्ग शहरों में रहते हैं।

बुजुर्गों के लिए भारत में कानून
      भारत सरकार ने 2007 में बने कानून मेंटेनेंस एण्ड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एण्ड डिपेंडेंट्स में प्रवाधान किया गया गया है कि बूढ़े माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी उन बच्चों और रिश्तदारों की होगी जो उनकी जायदाद के वारिस होंगे। लेकिन ऐसा देखा जाता है कि बुजुर्गों से उनकी जमीन जायदाद ले लेने के बावजूद उनके बच्चे और नाते रिश्तेदार बदसलूकी करते हैं। मुश्किल कि अधिकांश बुजुर्गों को इस कानून की जानकारी नहीं है। जिन बुजुर्गों को इसकी जानकारी है भी वह सामाजिक कारणों से अपने संतानों के खिलाफ इसका प्रयोग नही करते हैं।

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