Friday 14 November 2014

बालश्रममुक्त प्रखंड हिसुआ की तस्वीर दुनिया से अलग नही

बारह साल पहले 2002 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने  नवादा जिले के हिसुआ को बालश्रम मुक्त प्रखंड घोषित किया था। हिसुआ को देश  का पहला बालश्रममुक्त प्रखंड होने का गौरव प्राप्त हुआ था।  

डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी
बिहार के नवादा जिले के हिसुआ प्रखंड देश का बालश्रम मुक्त प्रखंड घोषित है। लेकिन इसकी स्थिति देश और दुनिया के बालश्रमवाले प्रखंडों से इतर नही है। हिसुआ बाजार के होटल, ढावा, गैराज, मिठाई दुकान, ठेला और बस अडड़ों पर बालश्रम करते देखा जा सकता है। गांवों की हालत पहलेे से भी ज्यादा दयनीय बनी है। हिसुआ निवासी अशोक सिंह कहते हैं कि इस प्रखंड की स्थिति नही तब बदली थी और नही अब। महज कागजों पर हिसुआ को बालश्रममुक्त प्रखंड घोषित कर दिया गया।
कब हुआ था बालश्रममुक्त
17 दिसंबर 2002 को हिसुआ बालश्रममुक्त प्रखंड घोषित किया गया था। हिसुआ को देश का पहला और दुनिया का दूसरा बालश्रममुक्त प्रखंड का गौरव प्राप्त हुआ था। जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसकी घोषणा की थी। तब अगले एक साल में राज्य के सभी प्रखंडों को बालश्रम मुक्त प्रखंड किए जाने का दावा किया था। नोबल पुरस्कार के लिए नामित कैलाश सत्यार्थी भी इसका गवाह बने थे। क्योंकि उनकी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन 100 दिनों के जागरूकता अभियान में हिसुआ को यह दर्जा दिलाया जा सका था। इसका श्रेय तत्कालीन डीएम एन विजयलक्ष्मी को जाता है।
योजनाओं का बुरा हश्र
         बालश्रम मुक्त प्रखंड हिसुआ के बच्चों को स्कूल से जोड़ने और उसके अभिभावकों को रोजगार उपलब्ध कराए जाने के लिए कई कार्यक्रम बनाए गए थे। बालमित्र कार्ड जारी किए गए थे, जिसके अंतर्गत 14 सरकारी योजनाएं संचालिए किए जाने की बात की गई थी। लेकिन वह कार्यक्रम जमीन पर आकार नही ले सका। बालश्रमिकों की शिक्षा के लिए जिले में 88 बालश्रमिक विधालय खोले गए थे लेकिन चार साल से सभी विधालय बंद हैं। केन्द्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी और महाराष्ट्र के बाद बिहार देश का तीसरा बड़ा राज्य है, जहां 4.52 लाख बालश्रमिक है।

कोट-किशोरी रविदास, श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी, हिसुआ, नवादा
-बालश्रम को रोकने के लिए धावा दल का गठन किया गया है। समय समय पर कार्रवाई की जाती है। हालांकि सामाजिक जागरूकता के अभाव में बालश्रम पर अंकुश नही लग पाता।



Monday 10 November 2014

आ ! अब लौट चलें

 डॉ अशोक कुमार प्रियदर्शी  
        प्रवासी पक्षियों का नवादा से गहरा ताल्लुक है। यही वजह है कि मानसून के प्रवेश करते ही प्रवासी पक्षी आते हैं और ठंड का मौसम आते ही मेहमान पक्षी अपने घर को लौटने लगते हैं। आमतौर पर जून में आते हैं और नवंबर में लौट जाते हैं। विगत तीन दशक से बिहार के नवादा जिले में प्रवासी पक्षियों का कलरव देखने को मिलता है।
        मेहमान पक्षियों का मानसून में आने की वजह अनुकूल मौसम और प्र्याप्त आहार का उपलब्ध होना बताया जाता है। इस मौसम में प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन आहर और धान के खेतों में पाए जानेवाले घोंघे, केकड़े, कीड़े, मेढ़क, छिपकिली, छोटे सांप और मछलियां बड़े पैमाने पर उपलब्ध होते हैं। पक्षीविज्ञानियों के मुताबिक, यह सुहाना मौसम पक्षियों के प्रजनन की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
         इस दौरान नवादा का आकाश प्रवासी पक्षियों के नव शावकों के उड़ान की ट्ेनिंग शिविर बनी रहती है। एक मादा पक्षी तीन से पांच अंडे देती है। ये सब लंबी उड़ान की ट्ेनिंग लेकर नवंबर माह में दक्षिण भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए कूच कर जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, प्रत्येक साल करीब तीन हजार प्रवासी पक्षी नवादा पहुंचते हैं।
        मेहमान पक्षी को साइबेरियन क्रेन कहते हैं। लेकिन पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक, ओपेनबील स्ट्ाॅक्स कहा जाता है। यह संपूर्ण एशियाई उप महाद्वीप और दक्षिण एशिया में पाया जाता है। भारत के अलावा श्रीलंका, वर्मा, बंगलादेश में सामान्य रूप से पाए जाते हैं। प्रवासी पक्षियों का मुख्य बसेरा जिला मुख्यालय के कलेक्ट्ेट, एसडीओ आॅफिस, साहेब कोठी, रजिस्ट्ी अॅाफिस, ट्ेजरी आफिस, को-आॅपरेटीव बैंक परिसर में अवस्थित पेड़ों की उंची टहनियों पर है।
        माना जाता है कि सुरक्षा कारणों से मेहमान पक्षी अपना यह ठौर चुनते हैं। इन इलाकों में सुरक्षाबलों की तैनाती रहती है। लिहाजा यह महफूज स्थल माना जाता है। अजीब संयोग कि नवादा के बाद दानापुर कैंट इलाका में मेहमान पक्षियों का जमावड़ा देखा जाता है, जो सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है।



मतलब के लिए निशाना बनायी जा रही महिलाएं


देशवासी चांद और मंगल पर जाने की बात कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ अंधविश्वास के नाम पर महिलाआंें पर अत्याचार किए जा रहे हैं


डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी
               बात 17 सितंबर की है। शेखपुरा जिले के बरवीघा के नसीबचक मुहल्ला निवासी सतीश कुमार के घर उनके एक रिश्तेदार अपनी दस वर्षीया बेटी के साथ आई थी। उसी रात लड़की के पेट में दर्द होने लगी। अगले सुबह सतीश पड़ोसी अवधेश प्रसाद के घर पहुंच गए और उनकी 70 वर्षीया पत्नी सबुजी देवी को झाड़ फूंक करने का दबाव देने लगे। महिला पर सतीश आरोप लगा रहे थे कि तुम डायन हो और तुम्हारें डायन विद्या से रिश्तेदार की लड़की की तबियत बिगड़ी। लेकिन सबुजी प्रतिकार कर रही थी। वह कह रही थी कि उसे कोई जादू टोना नही आता।
इसपर सतीश और उनके समर्थकों ने उस बुजुर्ग महिला की पिटाई करने लगे। बचाव में आए महिला के परिजनों को भी पिटाई की गई। लिहाजा, महिला सपरिवार बरवीघा थाने गए। लेकिन थानेवालों ने यह कहते हुए शिकायत नही दर्ज किया कि यह मिशन टीओपी क्षेत्र का मामला है। तब वह मिशन थाना पहुंची। लेकिन वहां उपस्थित ग्रामीण एकबार फिर मारपीट करने लगे। पुलिस के बीच बचाव से महिला की जान बची। सतीश समेत सैकड़ों लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। लेकिन किसी की गिरफतारी नही हो सकी है।
          सबुजी की यह मुश्किल नया नही है। 5 साल पहले सबुजी नालंदा जिले के सारे के हरगांवा में रहती थी। वहां भी गांववालों ने डायन के आरोप में उन्हें जिंदा जलाने की कोशिश की थी। उसके बाद से वह नसीबचक में आ बसी थी। सबुजी कहती है- उन्हें कमजोर होने के कारण लोग सताते हैं। सबुजी की घटना बिहार में अकेला नही है। ऐसी घटनाओं की फेहरिस्त लंबी है। सबुजी की घटना के एक हफते बाद औरंगाबाद के सलइया थाना के भुइयां विगहा निवासी जनार्दन यादव की पत्नी देवंती देवी की डायन के आरोप में पीट पीटकर हत्या कर दी गई। घटना के चार दिन पहले महेश यादव की बेटी को बिछू ने डंक मार दिया था। तब से वह बीमार चल रही थी। लेकिन ग्रामीण महेश यादव इसके लिए देवंती को जिम्मेवार मान रहे थे। लिहाजा, वह खेत में काम कर रही थी, तभी उसकी पीट पीटकर हत्या कर दी गई।
इसके पहले रिसियप थाना के भरौंदा में 70 वर्षीय बिन्देश्वर साव को पीट पीटकर हत्या कर दी गई। आरोप था कि चंदुली चैहान के पुत्र धर्मेन्द को बिदेंश्वर की पत्नी गिरिजा ने जादू टोना कर गायब कर दी है। चंदुली के परिवार गिरिजा को निर्वस्त्र कर बाल काटने की कोशिश कर रहे थे। इसका बचाव करने आए चंदेश्वर की हत्या कर दी गई। जबकि लापता पुत्र घर के बगल में बेहोशी की हालत में था। बिहार मानवाधिकार आयोग (बीएचआरसी) से प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 में देश भर में 119 लोगों की हत्या की गई थी, जिसमें 32 उड़ीसा जबकि 13 बिहार की थी।
                     
देखें तो, बिहार देश का पहला राज्य है जहां ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए 1999 में प्रीवेंसन आॅफ विच प्रैक्टिसेस एक्ट बनाया गया। लेकिन ऐसी घटनाओं का सिलसिला नही थमा है। डायन के आरोप में मोतिहारी के जितौरा की 40 वर्षीया सरस्वती देवी को मैला पिलाया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। लखीसराय में डायन के आरोप में महिला को गांव में घुमाया गया। अंधविश्वास की हद कि कटिहार के फलका थाना के छोटी कनवाड़ टोला के झरपू हंसदा की भैस अज्ञात बिमारी से मौत हो गई। पंचायत ने एक महिला के खिलाफ 60 हजार रूपए का जुर्माना किया। तब से महिला परिवार के साथ गांव से फरार है।
            देखें कि नवरात्र में नारी शक्ति की अराधना का समय माना जाता है, लेकिन महिलाओं पर ऐसे हमले भी ज्यादातर इसी अवसर पर हो रहे हैं। बेगूसराय के पहाड़पुर गांव और सहरसा के बदिया गांव में महिलाओं को प्रताड़ित किया गया। चिंतनीय पहलू यह कि चांद और मंगल ग्रह पर फतह का जश्न मना रहे हैं। दूसरी तरफ अंधविश्वास के कारण ऐसी घटनाएं घट रही है। इग्नू पटना के अस्टिेंट डायरेक्टर डाॅ मीता कहती हैं कि अशिक्षा के कारण ऐसी घटनाएं घट रही है। इससे निपटने के लिए जितना जरूरी कानून की है उससे ज्यादा जरूरी सामाजिक जागरूकता की है। खासकर महिलाओं को आगे आने की जरूरत है  क्योंकि इसके भुक्तभोगी महिलाएं ही हैं। 23 सितंबर को पूर्णिया के रूहिया पंचायत में सारो देवी की पिटाई की गई। जोतलखाय निवासी लकड़ यादव की पत्नी सविता लंबे समय से बीमार थी। उसे अस्पताल से लौटने के अगले दिन मौत हो गई। इसका आरोप किसनदेव यादव की पत्नी सारो देवी पर लगाया गया। पंचायत ने 25 हजार रूपए का जुर्माना किया था। इसका प्रतिकार करने पर उसकी बूरी तरह पिटाई की गई।
                      बदला लेने का भी जरिया बना हुआ है। 26 सितंबर को नवादा जिले के राजापुर इंदौल निवासी सदन रजक की 35 वर्षीय पत्नी संजू देवी को डायन के आरोप में मुखिया के परिजनों ने निर्वस्त्र कर उसके कपड़े को जला दिया। उसके बाल भी काट दिए गए। आरोप लगाया गया कि महिला ने मुखिया के घर के समीप चावल छींटकर जादूटोना की थी। दो दिन पहले श्रवण की मौत के लिए भी उस महिला को ही जिम्मेवार ठहराया गया। संजू कहती है कि चार माह पहले मुखिया बीमा देवी के पुत्र उदय यादव के खिलाफ मुकदमा की थी। उस मुकदमा में समझौता के लिए मुखिया पुत्र ने अपने घर पर बुलाया था, जहां पहुंचने पर उसके साथ ऐसा सलूक किया गया।
पुलिस और राज्य महिला आयोग भी सक्रिय नही दिखती है। इसके चलते ऐसे लोगों को अपमानित जिंदगी जीना पड़ रहा है। संजू कहती है कि इस लांछन के बाद से पति और बच्चों का जीवन भी नारकीय हो गया है। हालांकि महिला आयोग की सदस्य रेणु सिन्हा कहती हैं कि ऐसे मामले में संज्ञान लिए जाते रहे हैं और पीड़ित महिलाएं को न्याय दिलाया गया है।
दूसरी तरफ, पुलिस का मानना है कि दूसरी राज्यों की तुलना में बिहार में ऐसी घटनाओं की संख्या कम है। फिर भी पुलिस ऐसे मामलों को गंभीर है। बिहार के पुलिस महानिरीक्षक (कमजोर वर्ग) अरविन्द पांडेय कहते हैं कि पदाधिकारियों को ट्रेंड किए गए हैं। ऐसी घटनाओं पर अंकुश के लिए एनजीओ से सहयोग लिए जाते हैं। सजा का प्रावधान कम है। लेकिन त्वरित कार्रवाई कर सजा दिलाए जाने की कोषिष की जाती है।
  अगस्त में बीएचआरसी ने डीजीपी और समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव से जवाब तलब किया है। आयोग के सदस्य नीलमणि ने कहा है कि यह जांच किया जाय कि महिलाएं या तो संपति या फिर यौन शोषण और ग्रामीण राजनीति जैसे कारणों से प्रताड़ित हो रही है। पिछले दस सालों में किस जिले में ऐसी घटनाएं घटित हुई है। केस रजिस्टर्ड, चार्जशीट और ट्रायल की स्थिति क्या है। आयोग ने कल्याण विभाग से कहा है कि ऐसी महिलाओं के पुनर्वास और आर्थिक मदद के लिए क्या प्रावधान है।  बहरहाल, 21वीं सदी में महिलाएं अंधविश्वास की भेट चढ़ रही है।


Monday 3 November 2014

अपहृत उमा 20 साल बाद मोहनदास के रूप में जिंदा मिला

अपहृत उमा ने उम्रकैद से बचने के लिए अपहरण का किया था नाटक, उमा 30 साल पहले की हत्या के एकमामले में सजायाप्ता था, उसके झूठे अपहरण के आरोप में पांच लोगों को  उम्रकैद की सजा सुनाई गई.… 


उमा उर्फ़ मोहनदास 
डॉ अशोक कुमार प्रियदर्शी
नवादा में कानून से आंखमिचौनी का एक रोचक मामला सामने आया है। 20 साल पहले अकबरपुर थाना में सकरपुरा निवासी उमा सिंह के अपहरण की प्राथमिकी दर्ज हुई थी। उमा का श्राद्ध भी हो गया था। पत्नी विधवा की जीवन जी रही थी। उमा के अपहरण मामले में निचली अदालत ने ग्रामीण नरेश सिंह, फुलो सिंह, छोटन सिंह, इन्द्रदेव सिंह और ललन सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। करीब दो साल बाद अपहरण के आरोपियों को पटना हाइकोर्ट से जमानत मिली थी। फिलहाल, मामला हाइकोर्ट में विचाराधीन है।
ताज्जुब कि जिस उमा के अपहरण के आरोप में पांच लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, वह उमा पंजाब के मोहाली जिला के हंडसार थाना के खेलनभीड़ स्थित नरसिंह मंदिर के पूजारी मोहनदास के रूप में जिंदा मिला है। पंजाब पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर सोमवार को नवादा कोर्ट में प्रस्तुत किया है। हालांकि गिरफ्तार उमा खुद को मोहनदास बताता है। वह पंजाब में बनवाए पहचान पत्र और आधार कार्ड का हवाला देता है। 
पंजाब पुलिस की कस्टडी में उमा उर्फ़ मोहनदास 
           देखें तो, उमा के रहस्यों पर से परदा उसके करतूतों के कारण उठा है। मंदिर की जमीन विवाद के कारण कथित मोहनदास के विरोधियों ने सकरपुरा आकर छानबीन किया। ग्रामीणों से पता चला कि मोहनदास का असली नाम उमा है, जिसके अपहरण के मामले में पांच ग्रामीण को सजा भी मिल चुकी है। इसपर उमा के कथित अपहरण के आरोपियों ने कोर्ट से गुहार लगाई। कोर्ट के आदेश पर पंजाब पुलिस उसे गिरफ्तार किया है।  
          दरअसल, तीस साल पहले 1983 में महनार के जयंत सिंह की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में उमा के अलावा ग्रामीण शैलेन्द्र सिंह, उपेन्द्र सिंह, छोटन सिंह और कपिलदेव सिंह को निचली अदालत से उम्रकैद की सजा मिली थी, जिसे पटना हाइकोर्ट ने भी बरकरार रखा था। बताया जाता है कि उम्रकैद की सजा से बचने के लिए 1995 में उमा सिंह फरार हो गया। उसके पुत्र विनय सिंह ने अपहरण की प्राथमिकी दर्ज करा दी जिसमें पांच विरोधियों को आरोपी बना दिया था। अब उमा की जिंदा वापसी से अपहरण के आरोपियों को राहत मिली है। उमा को नवादा जेल भेज दिया गया है।
जीवित उमा उर्फ़ मोहनदास के  अपहरण कर हत्या मामले  में उम्रकैद के सज़ायाप्ता

Friday 24 October 2014

‘लक्ष्मी’ की कृपा से सकुशल लौटे दो अपहृत

डॉ अशोक कुमार प्रियदर्शी 
      लक्ष्मी पूजा की रात बिहार के नवादा से अपहृत आभूषण व्यवसायी और मीड डे मील प्रभारी सकुशल घर लौट आए हैं लेकिन सवाल है की कि किस  ‘लक्ष्मी’  की कृपा से  दोनो अपहृत मुक्त हुए हैं.

धनंजय वर्मा पत्नी और बच्चे के साथ 
           दीपावली के दिन ‘लक्ष्मी’ की कृपा बिहार के नवादा के अपहृत आभूषण व्यवसायी धनंजय वर्मा और मीड डे मील प्रभारी अमरजीत कुमार के घरों में दिखी, जब दोनों शुक्रवार की अहले सुबह अपहर्ताओं के चंगूल से मुक्त होकर घर वापस आ गए। धनंजय और अमरजीत की सकुशल वापसी ने असीम खुशियां  भर दी है।
          34 वर्षीय धनंजय की पत्नी सविता और दो मासूम बच्चे ज्योति और आर्यन का बुरा हाल था। दूसरी तरफ, 35 वर्षीय अमरजीत की मां की उम्मीद ही छिन गई थी। पति की मौत के बाद बेटे ही देखभाल करनेवाला था। अमरजीत की पत्नी नमिता और उसके दोनो बच्चे किटू और लक्ष्मी बेहाल थी/ 
अमरजीत अपनी  माँ  और परिजन के साथ 
बता दें कि 15 अक्तूबर की शाम एक ही मोटरसाइकिल से धनंजय और अमरजीत अपने गांव भदोखरा जा रहे थे। लेकिन अपहृताओं ने गांव पहुंचने के पहले ही दोनों को अगवा कर लिया था। पुलिस के पुराने कार्यप्रणाली से लोग सशंकित थे। क्योंकि छह माह पहले महिला आयोग के सदस्य रेणू सिन्हा के अपहृत पुत्र विपिन की रिहाई में पुलिस विफल रही थी। दस दिनों बाद उसकी लाश  बरामद की  गई थी। बताया जा रहा है कि अपहृताओं ने दीपावली की रात धनंजय परिवार से चालीस लाख और अमरजीत परिवार से दस लाख रूपए फिरौती लेने के बाद मुक्त किया है।
      हालांकि पुलिस अधीक्षक परवेज अख्तर ने दावा किया कि पुलिस दबिश के कारण अपहृतों को मुक्त किया  जा सका  है। उन्होंने बताया कि साइंसटिफिक टेक्नॉलाजी के जरिए अपहृताओं पर नजर रखी जा रही थी।  अपहरण में शामिल दर्जन भर अपहृताओं के सुराग मिल चुके थे । पुलिस अब अपहृताओं के गिरेवान के करीब थी। अपहरण के उपयोग में की लाई गई सुमो गाड़ी को जब्त कर लिया था।

धंनजय , अमरजीत नवादा के एसपी परवेज अख़्तर के साथ 
पहले भी निशाने पर था स्वर्ण व्यवसायी
 धनंजय पर तीन साल पहले 30 सितंबर 2011 को भी हमला हुआ था। रामनगर मंे अपराधियों ने हमला किया था। इस घटना में धनंजय के बड़े भाई संजय वर्मा की मौत हो गई थी। जबकि धनंजय घायल हो गया था। इस घटना में एक आरोपी पकड़ा गया था, जबकि दूसरा आरोपी फरार हैं। यह मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है।  मामले में सुलह करने  और फिरौती के लिए धनंजय की अपहरण की गई थी। पुलिस इस पहलू पर भी अनुसंधान कर रही है।
             बताया जाता है कि धनंजय के मोटरसाइकिल पर साथ रहने के कारण अमरजीत का अपहरण हुआ था।  दोनों को गया के इलाके में रखा गया था। पुलिस को भी ऐसे ही संकेत मिलते रहे हैं। अमरजीत का टेबलेट पुलिस के लिए काफी कारगर रहा, जो उसके बैग में रखा था।

Friday 3 October 2014

पटना- यहां तो राम को ही मार दिया

        विजयदशमी का त्योहार बुराईयों पर अच्छाईयों का प्रतीक माना जाता है। प्रतिकात्मक रूप से सार्वजनिक तौर पर  राम के जरिए रावण का वध किया जाता है। लेकिन बिहार में दशहरा के दिन पटना गांधी मैदान में रावण दहन कार्यक्रम के दौरान  रावण का पुतला जरूर जले। लेकिन सरकार की लापरवाही के कारण यहां मौत राम की हुई है। अधिकारिक तौर पर 32 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। इसमें ज्यादातर महिला और बच्चे हैं।

डाॅ अशोक कुमार  प्रियदर्शी
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       विजयदशमी का त्योहार बुराईयों पर अच्छाईयों का प्रतीक माना जाता है। प्रतिकात्मक रूप से सार्वजनिक तौर पर  राम के जरिए रावण का वध किया जाता है। लेकिन बिहार में दशहरा के दिन पटना गांधी मैदान में रावण दहन कार्यक्रम के दौरान  रावण का पुतला जरूर जले। लेकिन सरकार की लापरवाही के कारण यहां मौत राम की हुई है। अधिकारिक तौर पर 32 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। इसमें ज्यादातर महिला और बच्चे हैं।
       देखें तो, गांधी मैदान में रावण के पुतलादहन का कार्यक्रम था। यह मुख्यमंत्री की उपस्थिति में किया गया। लेकिन रावण दहन के बाद जब भीड़ की निकलने की बारी थी तो जिसके चार में से  तीन गेट बंद थे।  एक गेट से निकास की व्यवस्था थी। इसी दौरान एक्जीविशन रोड में अफवाह फैली कि बिजली तार गिर गई। अफरातफरी मच गई। लेकिन अंधेरा के कारण स्थिति और भी भयावह हो गई। लिहाजा, बड़ी घटना का गवाह बन गया।
       प्रत्यक्षदर्शियों  के मुताबिक, ट्रैफिक व्यवस्था भी लचर थी। गेट भी अफरातफरी के बाद खोला गया। घायलों के इलाज में भी काफी परेशानी हो रही है। ज्यादातर डाॅक्टर छुटटी पर हैं। ऐसे में पीड़ितों के परिजनों की परेशानी बढ़ी है। ऐसे में मृतकों की संख्या और भी बढ़ने की आशंका है। चिंता  कि इस भीड़ में कितने राम खो गए हैं। परिजनों का हाल बुरा है। लोग अपने अपने राम को ढूढ़ रहे हैं।
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      ताज्जुब कि स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह कहते हैं कि यह घटना गांधी मैदान में नही घटी है। यह घटना एक्जीविशन रोड में घटी है। वह आज गांव मंे है। वह शनिवार को पटना आकर स्थिति का आकलन करने की बात कही है। सवाल है कि एक्जीविशन रोड बिहार में नही है क्या। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बैठक करने में  जुटे हैं.
       दरअसल, बिहार में लापरवाही की यह घटना कोई नया नही है। 27 अक्तूबर 2013 को पटना गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की सभा में बम विस्फोट की घटना हुई थी। इस घटना में आधे दर्जन लोगों की मौत हो गई थी। दर्जनों लोग घायल हुए थे। इसके पहले 19 नवंबर 2012 को पटना में छठ पूजा के दौरान ऐसा ही भगदड़ मची थी, जिसमें डेढ़ दर्जन से ज्यादा की मौत हो गई थी। 1995 में दानापुर में छठ पूजा के दौरान पांच दर्जन लोगों की मौत हो गई थी।
       राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है। मुआवजा की औपचारिकता हो रही है। लेकिन सवाल है कि क्या उस राम का जीवन फिर से लौट पाएगा, जिसने रावण दहन देखने आया था। यह किसकी चूक है। इस घटना का कौन रावण है? यह बड़ा सवाल है।

Wednesday 1 October 2014

इन्द्रावती की पांच बेटियां, उसमें तीन पुलिस में


नवादा  की इन्द्रावती देवी की पांच बेटियां, जिसमें तीन बेटियां देश  की सुरक्षा में है, जबकि दो बेटियां अभी से ही हैंडबाॅल की राष्ट्रीय और प्रांतीय टीम में है। इन्द्रावती उन महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत  हैं, जो बेटियों के पैदा होने पर आंसू बहाती हैं।

डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी 
            गांव देहात में एक कहावत है कि जिन माताओं की कोख से जितनी बेटियां होती है उस मां की कद उतना जौ की मात्रा भर छोटी हो जाती है। लेकिन यह कहावत तब कही जाती थी जब मां बेटियों को बोझ समझकर घर की देहरी में कैद रखती थी। लेकिन बिहार के नवादा जिला मुख्यालय के न्यू एरिया की इन्द्रावती की जितनी बेटियां है उतना ही उनका कद उच्चा हुआ है। इन्द्रावती की पांच बेटियां है, लेकिन इसमें तीन बेटियां देश की सुरक्षा में है।
              इन्द्रावती की जुड़वा बेटियां प्रियंका और प्रीति सीआईएसएफ की जीडी कंसटेबल के पद पर नौकरी कर रही है। जबकि प्रिंस इंडियन-तिब्बत बोर्डर पुलिस (आईटीबीपी) में है। फिलहाल, वह दिल्ली मेट्रो रेलवे कारपोरेशन में कार्यरत हैं। यही नहीं, उनकी दो छोटी बेटियां दिव्या (17) और अनामिका(15) भी कम नही है। दिव्या हैण्डबाॅल में तीन बार नेशनल खेल चुकी है और अनामिका पहला ही मौका में स्टेट चैम्पियन के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
           बेटियों की पढ़ाई और उसकी परवरिश  में खटाल चलानेवाले कमलेश  सिंह की आमदनी कम पड़ जाती थी। तीन कमरे के मकान बनाने में रिष्तेदारों से कर्ज लेने पड़े थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई है। अब दो मंजिला मकान बन गया है। बेटियों की कामयाबी से इन्द्रावती काफी खुश  हैं। वह कहती हैं कि -मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि अगले जनम में भी मुझे ऐसी ही बिटिया दीजिएगा। वह कहती है कि बेटियां उनकी थी लेकिन पीड़ा पड़ोसियों को होती थी।
           लेकिन वह इन चीजों का परवाह नही की। उनकी बेटियों के हौसले से आलोचना करने वाले बेटों की मां के कद भी छोटा दिखने लगा है। इन्द्रावती कहतीं हैं कि- बेटियों की कामयाबी से नही लगता कि उन्हें बेटा की कमी है। बेटियों ने अपने काम से जो सकून दिया है वह शायद वह  काहिल बेटा नही दे पाता, जो जीवन भर मां बाप के लिए परेशानी बना रहता है। लेकिन बेटियों ने अपने हौसले से उन्हें काफी ताकत दी है । प्रिंस कहती हैं कि रूपए के अभाव में परीक्षा के दौरान बाहर जाने पर मां को उपवास रहना पड़ जाता था।
           मुष्किलें यह थी कि प्रियंका और प्रीति सीआईएसएफ के लिए चुनी गईं थी तो ट्ेनिंग में छतीसगढ़ जाने के लिए किराए और ढंग के कपड़े के लिए भी सामाजिक कार्यकर्ताओं से मदद लेनी पड़ी थी। लेकिन इन्द्रावती के लिए यह अतीत है। प्रियंका और प्रीति कहतीं हैं कि ‘बचपन से ही इस वर्दी के प्रति आकर्षण था, जिसे हासिल कर ली है। अब इसके जरिए देश  की सेवा करने में  कोई कसर नही छोडू़गी। लेकिन यह सब उनके  मां और पिता के सहयोग के कारण हो सका है. थैंक यू मम्मी पापा।


Saturday 27 September 2014

नारी शक्ति -मुक्कमल संघर्ष है वीणा की कहानी

        इतिहास वह नही लिखता, जो परिस्थितियों से हार जाते। इतिहास वह लिखता है, जो उसका सामना करते  हैं । वीणा की कहानी कुछ ऐसा ही है, जिन्होंने परिस्थितियांें से हार नही मानी।

वीणा देवी
डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी
             तीगुणा उम्र के व्यक्ति से तेरह साल की उम्र में शादी। शादी के तीन साल बाद पति की मौत।  गोद में  बच्चा। पति की मौत की घटना से उबर भी नही पाई थी कि दंबगांे ने नवादा शहर के मकान को कब्जा कर लिया। दबंगों के भय से देवर भी मकान छोड़ने को राजी हो गए थे । उसके सामने परिस्थितियों से समझौता करने के सिवा दूसरा  कोई चारा नही था। फिर भी उन्होंने परिस्थितियों से समझौता नही की। वह डटकर मुकाबला की। लिहाजा, दबंगों ने रास्ते बदल लिया।
            यह कोई रील लाइफ की कहानी नही है। हम बात कर रहे हैं बिहार के नवादा जिले के लोहरपुरा पंचायत की वीणा देवी की, जिन्होंने रीयल लाइफ में ऐसा काम कर दिखाई है। उसकी यही साहस के कारण समाज में एक सशक्त महिला के रूप में पहचान बनाई। यही कारण है कि वह सामान्य सीट से दो बार लोहरपुरा पंचायत की मुखिया निर्वाचित हुई। हालांकि पिछली दफा मामूली मतों के अंतर से पराजित हो गई।
लेकिन वह समाज की जवाबदेही से नही हारी है। वह अब कमजोर महिलाओं की समस्याओं को लेकर सरकार, प्रशासन और प्रतिनिधियों के खिलाफ आवाज बुलंद करती है।
         यही वजह है कि 2007 में अतंरराष्टीय महिला दिवस के अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा दिल्ली में आयोजित अनन्या कार्यक्रम में वीणा के हौसले को सलाम किया गया।  उनके साहसिक पहल के लिए यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सम्मानित किया था। सोनिया ने कहा था कि वीणा इज द वेस्ट मुखिया आफ इंडिया। यही नहीं, तत्कालीन लोकसभा अघ्यक्ष सोमनाथ चटर्जी  भी वीणा को सम्मानित कर चुके हैं।। इसके पहले 2004 में सरोजनी नायडू पुरस्कार से वीणा सम्मानित हुई है।
          वीणा के संघर्ष को पाकिस्तान में भी सलाम किया गया। वीणा को पाकिस्तान के नेषनल रिकंस्ट्क्सन ब्यूरों के चेयरमैन मि डैनियल ने गुड गवर्नेंस के लिए सम्मानित किया। 1-3 जुलाई 2007 को लाहौर में आयोजित स्थानीय शासन व्यवस्था मंे भारत-पाकिस्तान वार्ता में भारत के 50 सदस्यी प्रतिनिधिमंडल में शामिल हुई थी। यही नहीं, जनप्रतिनिधियों को जागरूक करने के लिए भारत सरकार के निर्देश  पर गठित 21 सदस्यी बिहार की राज्य महिला कोर कमेटी में वीणा को शामिल किया गया।
            वीणा को उनके संघर्षों के कारण यह सम्मान दिया गया है। देखें तो, खगड़िया जिले के रानीसकरपुरा के पुनितलाल की 13 वर्षीय बेटी वीणा की शादी लोहरपुरा पंचायत के सिकन्दरा निवासी 45 वर्षीय रामप्यारे प्रसाद के साथ की गई थी। पुनितलाल की तीन बेटियां थी और वह टीबी से ग्रसित थे। दुर्भाग्य कि 16 वर्ष की आयु में वीणा विधवा हो गयी। उस समय वीणा को एक संतान था। लेकिन पति की मृत्यु के बाद वीणा के नवादा के मकान को किराएदार ने कब्जा कर लिया था।
          तब वीणा खुद आगे बढ़ी। स्थानीय प्रतिनिधि और अधिकारियों की मदद से किराएदार को भगाने में कामयाब रही। तब से वीणा की सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी बढ़ गई। खुद स्वावलंबी होने के साथ दूसरों का संबल बनने लगी। मामूली पढ़ी लिखी वीणा आज महिलाओं के बीच मिसाल बन गई है। वीणा कहती हैं- महिला कमजोर नही है। हर महिलाओं में यह ताकत है, लेकिन जरूरत है अपनी ताकत की पहचान करने की।



Friday 26 September 2014

हे माँ ! ये तेरे कैसे कैसे लाल -एक तरफ नारी शक्ति की पूजा करते हैं ,दूसरी तरफ नारी को नंगा करते हैं

    

             एक तरफ देशवासी मंगल ग्रह पर फतह का उत्सव मना रहे हैं। दूसरी तरफ भूखे प्यासे रहकर लोग नारी शक्ति की अराधना में जुटे हैं। नारी शक्ति को प्रतिष्ठा देने के लिए उन्हें बेहतर स्वरुप देने के लिए बढ़िया कपडे और बाल लगाये जा रहे हैं।   लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो नारी को नंगा कर रहे हैं. उसके बाल काट रहें हैं। विरोध करने पर उसे जख्मी कर रहे हैं. लानत है चाँद और मंगल पर दुनिया बसाने की बात करने वालों की.  

डॉ अशोक कुमार प्रियदर्शी
        देशवासी मंगल ग्रह पर फतह का उत्सव मना रहे हैं। दूसरी तरफ नारी शक्ति की अराधना की जा रही है। लेकिन शुक्रवार को ब्रह्मचारिणी दुर्गा पूजा के दिन बिहार के  नवादा जिले के अकबरपुर प्रखंड के नेमदारगंज गांव में  एक नारी को डायन के आरोप में अमानवीय व्यवहार किया जा रहा था. गजब यह भीड़ थी कि उसने मदद करने  के बजाय उस अत्याचार का हिस्सा बन गए. राजापुर इंदौल गांव निवासी सदन रजक की पत्नी  नेमदारगंज पंचायत की मुखिया बीमा देवी के घर गई थी, जहां उसके साथ ऐसा  व्यवहार किया गया है।
           महिला ने बताया कि मुखिया पुत्र उदय यादव ने उसके बंद दुकान को खुलवाने के लिए अपने घर पर बुलाया था। घर पहुंचने पर मुखिया पुत्र ने कोर्ट में चल रहे मुकदमा में समझौता करने को कहने लगा। इसका विरोध करने पर मुखिया पुत्र और उसके परिजनों ने उसके नंगा कर दिया और घर से बाहर कर दिया। उसके पुराने कपड़े को आग लगा दिया। उसके बाल भी काट दिए गए। फिर किसी ने उसे एक साड़ी दिया, जिसे पहनकर तन को ढकी।
           मुखिया परिवार के कहने पर ग्रामीणों ने भी उसके साथ मारपीट करना शुरू कर दिया। इसी बीच पुलिस आ गई, जिसके बाद उसे थाने ले जाया गया। महिला ने बताया कि मुखिया परिवार ने मुकदमा के रंजिश  में उसके साथ इस घटना को अंजाम दिया है। उसके पड़ोसी कारू रजक के साथ जमीन का विवाद था। इस विवाद में मुखिया पुत्र ने पड़ोसी का पक्ष लिया था। और उसके घर के दिवाल को ढाह दिया गया था। समझौता के लिए दबाव बनाने के लिए उसके दुकान को भी बंद करा दिया था।
       उस महिला को मुखिया के घर के समीप चावल छींटने का टोटका करने और दो दिन पहले गांव के एक युवक श्रवण की मौत का जिम्मेदार मानते हुए मुखिया परिवार और ग्रामीणों ने उस महिला के साथ अत्याचार किया। अकबरपुर थानाध्यक्ष रूप नारायण राम  मुताबिक  महिला की शिकायत पर मुखिया बीमा देवी, उसके पुत्र उदय यादव, मुखिया पति सुरेश  यादव, उदय यादव की पत्नी और उसका भगिना मुकेश  यादव के अलावा 100 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। हालाँकि एसपी चन्द्रिका प्रसाद ने ऐसा ही बयान दिया है जो अधिकारी दिया करते हैं. उन्होंने कहा कि महिला को नंगा नहीं किया गया है .

जेल जाकर भी नही हारी मनोरमा

-मनोरमा भ्रष्ट्र प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़कर न सिर्फ अपना हक हासिल की बल्कि वह एसडीओ पर 25 हजार रूपए का आर्थिक जुर्माना, एसपी को जवाब तलब और दरोगा को निलंबित करवाई। इस लड़ाई में उसे जेल भी जाना पड़ा। फिर भी नही हारी। अब वह दोषियों को सजा दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही है।

manorama devi
डाॅ. अशोक कुमार प्रियदर्शी
            मंझोली कद, दुबला काठी, सांवली सूरत और गंवई वेषभूषा में दिखनेवाली मनोरमा किसी देहात की एक साधारण महिला से अलग नही लगती। लेकिन उनका हौसला पत्थर के चटट्ान से भी ज्यादा सख्त है। उन्हें देखकर ऐसा यकीन करना थोड़ा मुश्किल  हो सकता है, लेकिन उनके पिछले सात सालों के संघर्ष गाथा को जानने के बाद यह भ्रम स्वतः टूट जाता है।  क्योंकि मनोरमा ने भ्रष्ट्र प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़कर अपना हक हासिल की।
             यही नहीं, वह तत्कालीन एसडीओ पर 25 हजार रूपए का आर्थिक जुर्माना, एसपी को जवाब तलब और दरोगा को निलंबित करवाई। हालांकि इस लड़ाई में मनोरमा को जेल जाना पड़ा। फिर भी वह हारी नही। वह अब भी आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड रही है. हम जिस मनोरमा की बात कर रहे हैं, वह बिहार के नवादा जिले के सदर प्रखंड के भदौनी पंचायत के खरीदीविगहा गांव में रहती है। उसके पति गणेश  चैहान मिस्त्री का काम करते हैं। वह खुद खेतों में काम करती थी। लेकिन 2007 में आंगनबाड़ी सेविका की बहाली निकली थी। वह अपने पोषक क्षेत्र की अकेली महिला थी जो प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास थी।
        लेकिन सुष्मिता नाम की महिला की सेविका के पद पर बहाली कर दी गईं। वह उसने कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। उन्होंने आरटीआई के जरिए बहाली से संबंधित सभी कागजात निकाली। तब उसे पता चला कि नीलम और सुष्मिता एक ही महिला है। दरअसल, नीलम मैट्रिक की दो बार परीक्षा दी थी। नीलम ने 1993 में तृतीय श्रेणी से जबकि दूसरी दफा 1995 में सुष्मिता नाम से परीक्षा दी थी, जिसमें प्रथम श्रेणी से पास की थी।
देवेन्द्र दास की पत्नी नीलम 1993 के सर्टिफिकेट पर जन वितरण प्रणाली दुकान का लाइसेंस ले रखी थी। जबकि सुष्मिता नाम के सर्टिफिकेट पर उसकी गोतनी कांति देवी (वीरेंद्र दास की पत्नी) सेविका के रूप में बहाल हो गइ्र्रं थी। लेकिन इस गुत्थी को सुलझाना आसान नही था।
           मनोरमा को इसकी सूचना के लिए पंचायत से राज्य स्तर पर फरियाद करना पड़ा। स्थानीय स्तर पर मनोरमा को कोई सूचना नही देना चाहता था। लिहाजा, राज्य सूचना आयुक्त ने तत्कालीन एसडीओ हाशिम खां के खिलाफ 25 हजार रूपए का जुर्माना कर दिया था। साथ ही कागजात उपलब्ध कराए जाने का आदेश  दिया।
सबकुछ स्पष्ट हो जाने के बाद भी विभाग मनोरमा की बहाली में आनाकानी कर रहा था। तब उन्होंने पटना हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटायी। अधिकारियों को भय हो गया कि अब उनके खिलाफ कार्रवाई हो जाएगी तब कल्याण विभाग सक्रिय हो गया। जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने सुष्मिता की बहाली को अविलंब रदद करते हुए उसपर एफआईआर दर्ज करने का आदेश  दिया।
          तत्कालीन बाल विकास परियोजना पदाधिकारी मीना कुमारी ने सुष्मिता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। यही नहीं,  8 अगस्त 2009 को मनोरमा को बहाल कर दिया गया। 15 अगस्त को उसी मुखिया ने उससे झंडोतोलन करवाई जिन्होंने शुरूआत में उन्हें सेविका से वंचित कर दिया था.   लेकिन मनोरमा की परेशानी यही नही थमी। मनोरमा कहती है कि तब उसके विपक्षी ने काम में व्यवधान डालने के लिए मारपीट किया। इसकी शिकायत करने उसके पति थाना पहुंचे तो उनके पति को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। क्योंकि कथित सुष्मिता ने उसे और उसके पति के खिलाफ नगर थाना में दलित अत्याचार और सरकारी काम में बाधा पहुंचाने की प्राथमिकी दर्ज करा दी। उसके बाद मनोरमा भी कोर्ट में सरेंडर की, जिन्हें 15 दिनों तक जेल में रहना पड़ा।
         लेकिन मनोरमा चुप नही बैठी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से शिकायत की। उन्होंने आयोग को अवगत कराई कि जब पुलिस और प्रषासन ने सुष्मिता को फर्जी करार दे चुकी है। सुष्मिता के फर्जी करार होने के बाद ही उसे नौकरी से बर्खास्त किया गया और प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। तब उस फर्जी सुष्मिता की शिकायत पर उनके और उनके पति के खिलाफ कार्रवाई कैसे हुई? आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन एसपी गंधेष्वर प्रसाद सिन्हा से जवाब तलब कर दिया। तब एसपी ने इस मामले के अनुसंधानकर्ता एसआई नागेन्द्र गोप को इस आधार पर निलंबित कर दिया कि बगैर जांच पड़ताल के कार्रवाई कैसे कर दिया गया? लेकिन मनोरमा यही नही रूकी है। अब वह उन आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट में कानूनी लड़ रही है, जिसके कारण उन्हें नौकरी से वंचित होना पड़ा था।
          मनोरमा कहती है कि उन्हें अधिकारियों ने हर समय परेशान किया। मारपीट उनके साथ हुआ और जेल भी उन्हें भेज दिया। पुलिस उनके मामले को कमजोर कर दिया जिसके कारण विपक्षी को जमानत मिल गई। यही नहीं, सीडीपीओ ने जिसके आवेदन पर सुष्मिता पर कार्रवाई की, उन्हें गवाह में भी नही रखा। हालांकि वह हारी नही है। वह कहती है कि उन्हें इस अभियान में उसके पति ने भरपूर सहयोग किया। मनोरमा कहती है कि अब मेरा एकमात्र लक्ष्य फर्जी सर्टिफिकेट वाली महिलाओं और उन अधिकारियों को सजा दिलाना है, जो उन्हें संरक्षण दे रहे थे।