Sunday 10 January 2016

मिसाल-छात्र मज़बूरी में हुए साथ, तो मिल गई सफलता की राह


अशोक प्रियदर्शी
भारत के नये चीफ जस्टीस कौन बने? शिमला समझौता कब हुआ था? ब्रीक्स में भारत की भूमिका क्या है? बिहार के पहले राज्यपाल कौन थे? बिहार में सर्वाधिक दफा मुख्यमंत्री बनने का अवसर किसे मिला? जाहिर तौर पर इस तरह के सवाल किसी शिक्षण संस्थान में सुनने को मिलते हैं। लेकिन बिहार के नवादा जिला मुख्यालय के कन्हाई स्कूल के खेल मैदान में हर रोज शाम और सुबह ऐसे सवाल आपको सुनने को मिल जाएंगे। बाहरी तौर पर लग सकता है कि मैदान में विधार्थी गप्पे मार रहे हैं। लेकिन यह देखनेवालों का भ्रम है। सुबह पांच से सात और शाम तीन से पांच बजे तक विधार्थी पढ़ाई करने के लिए जुटते हैं। मैदान में करीब एक सौ ग्रुप हैं, जिनके जरिए डेढ़ हजार से ज्यादा विधार्थी जुटते हैं।
     विधार्थियों को खेल मैदान में जुटने की कहानी दिलचस्प है। बताया जाता है कि छह साल पहले कन्हाई नगर के अमित, भटटा के श्रवण, नेहालुचक के भोला जैसे विधार्थियों ने 6-7 साथियों के साथ शांत जगह की तलाश में मैदान के एक कोने में क्वीज शुरू किया था। इसके बाद कई और लोगों ने इसकी शुरूआत की। विधार्थियों को जब सफलता मिलने लगी तब ग्रुप का तेजी से विस्तार हुआ। फिलहाज, 100 से अधिक ग्रुप बन गए हैं। विगत पांच सालों के अंतराल मंे 1500 से अधिक विधार्थियों को जाॅब मिल चुके हैं।

देखे तो, साक्षात क्वीज, स्टार क्वीज, लक्की क्वीज, संवाद क्लासेस, सत्यमेव जयते, कौटिल्य, जय हिंद जैसे गु्रप के नाम है। प्रत्येक ग्रुप में 20-40 सदस्य होते हैं। जय मा सरस्वती गु्रप के नीतीश कहते हैं कि इस ग्रुप के पुराने 22 सदस्यों को जाॅब मिल गई है। उनकी जगह पर 22 नये सदस्य जोड़े गए हैं। नीतीश के अलावा, रमेश, रामाशीष को भी रेलवे में सेलेक्शन हो गया है। प्रक्रिया बाकी है।
        यह किसी एक ग्रुप की स्थिति नही है। हैं। आजाद ग्रुप के 20 सदस्यों में से 17 को जाॅब मिल गई है। आजाद ग्रुप के गौतम कहते हैं कि तीन अन्य साथियों का भी चयन हो चुका है। नीड ग्रुप के रजनीश कहते हैं कि उनके ग्रुप के 30 में 20 विधार्थियों को जाॅब मिल गया है। आर्थिक रूप से लाचार विधार्थियों के लिए गु्रप वरदान जैसा है। सरस्वती ग्रुप के सौरभ कहते हैं कि ग्रुप में जुड़ जाने से कई विषयों की जानकारी एक साथ मिल जाती है। इसमें कोई खर्च नही है। किसी सेट का फोटोकाॅपी कराने में मुश्किल से 100 रूपए माह में खर्च होता है।
बताया जाता है कि ग्रुप के ज्यादातर विधार्थी रेलवे, एसएससी, बैकिंग और सामान्य क्षेत्र के नौकरियों में जाते हैं। हालांकि अब बीपीएसएसी की दिशा में भी सफलता मिलने लगी है। पांच विधार्थियों ने बीपीएसएसी पीटी का एग्जाम भी पास किया है। सफलता का ही नतीजा है कि आसपास के जिला से भी नवादा तैयारी करने आते हैं। जमुई जिले के अलीगंज का मनीष कहता है कि उनके पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नही कि पटना और दिल्ली में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करा सके। लिहाजा, नवादा की अच्छी रिजल्ट के कारण ग्रुप में जुड़ा हूं।

खेल मैदान ही क्यों?
खेल मैदान में एकत्रित होने की कई वजह है। सबसे बड़ी वजह है कि बगैर कोई बाधा के शांतिपूर्वक आपस में ग्रुप डिस्कशन कर सकते हैं। रजौली के धर्मवीर कहते हैं कि किराया का कमरा महंगा है। मुश्किल से रहने का इंतजाम हो पाता है। कमरा में करना भी चाहें तो मकान मालिक को परेशानी हो सकती है। साथियों के अंदर भी बड़े छोटे का भाव पनप सकता है। लिहाजा, यह मैदान बेहतर जगह है।

सब गुरू सब चेला
ग्रुप की खासियत है कि आपस में सब एक दूसरे के गुरू और चेला हैं। हर रोज कोई नया गुरू होता है बाकी चेला। हर किसी को एक दिन कवीज का सेट बनाकर लाना और लोगों से सवाल जवाब करना उनकी जिम्मेवारी होती है। यही नहीं, प्रश्नोतरी के क्रम का तरीका भी पारदर्शी होता है। धोखाधड़ी करने पर पहले टोका जाता है फिर उनसे किनारा कर लिया जाता है।

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