Friday 25 March 2016

मगध में होली का अलग रंग, दूसरे दिन मनाई जा रही है बुढ़वा होली

·  



अशोक प्रियदर्शी
·          
·         Mar 25, 2016, 14:15 PM IST
        नवादा.मणिपुर में तीन दिनों तक आध्यात्मिक तरीके से होली मनाई जाती है। ठीक इसी तरह ब्रज, गोकुल, मथुरा, बरसाने, अवध, मिथिला और मुंबइया होली मनाई जाती है। इसके बारे में भी देश और दुनिया के लोग परिचित हैं, लेकिन बिहार के मगध इलाके में भी एक होली मनाई जाती है। इसके रंग से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। होली के अगले दिन मनाई जाती है बुढ़वा होली...

मगध में यह बुढ़वा होली के नाम से प्रचलित है। बुढ़वा होली का त्योहार होली के अगले दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है। मगध के गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, शेखपुरा, नालंदा और जमुई इलाका में बुढ़वा होली का काफी प्रचलन है। धीरे धीरे यह व्यापक स्वरूप लेता जा रहा है। बुढ़वा होली के दिन सरकारी स्तर पर छुटटी नहीं रहती। इस क्षेत्र में अघोषित तौर पर छुटटी जैसी स्थिति रहती है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थान बंद रहते हैं। सड़क, मुहल्ले और गलियों में होली की गूंज होती है। लोग होली के जश्न में डूबे होते हैं।
RELATED
सुबह से शाम तक रंग खेलते हैं लोग 
बुजुर्ग डॉ. एसएन शर्मा कहते हैं कि जो लोग चैत माह के पहले दिन होली के रंग से नही भीगते। वह दूसरे दिन मनाए जानेवाले होली के रंग से बेशक रंग जाते हैं। लोग इसलिए भी रंग जाते हैं क्योंकि होली के दिन लोग आधे दिन मिटटी व धूल से खेलते हैं। दोपहर बाद रंग-गुलाल लगाते हैं। समय की आपाधापी में दिनभर में लोग सभी के साथ होली नहीं खेल पाते हैं। बुढ़वा होली के दिन सबेरे से रंग की शुरुआत होती है, जो रात तक चलती है। गांव और शहर दोनों जगह बुढ़वा होली परवान पर होता है।
होलवइया की टोली गाती है होली के गीत
बुढ़वा होली के दिन होली गानेवालों (होलवइया) की टोली-जिसे झुमटा कहते हैं- अराध्य स्थलों से निकलकर कस्बे-टोले और मुहल्ले में होली गाते हुए गुजरता है। गाने की शुरुआत ढोलक, झाल, करताल, के धुनों के बीच अराध्य देव की सुमिरन (प्रार्थना) से होती हैं। फिर बुजुर्गों पर केन्द्रित गाने और फक्कर गीत के साथ बुढ़वा होली चरम पर पहुंचता है। बुजुर्ग पर केन्द्रित- भर फागुन बुढ़वा देवर लागे.... बहुत ही लोकप्रिय गीत है। यही नहीं, बुजुर्गों पर केन्द्रित कई ऐसे गीत हैं जो बसंत में मंद पड़े उत्साह को जागृत करने के लिए गाये जाते हैं।
मगधवासियों में गहरा है बुढ़वा होली का रंग
भांग का रस होलवइया के उत्साह को दोगुना कर देता है। बुढ़वा होली के कपड़े भी बुढ़ापे की अवस्था जैसी होती है। होली के दिन रंगों से सराबोर कपड़े ही लोगों के शरीर पर चढ़े होते हैं। मगधवासियों में रंग का उत्साह पहले दिन से कुछ ज्यादा ही गहरा और यादगार होता है। मगध में बुढ़वा होली के संबंध में कई लोक कथाएं हैं। इसे आदिकाल और आधुनिक काल की परिस्थितियों और वृतांतों से भी जोड़कर देखते हैं। यह धीरे धीरे व्यापक स्वरूप अख्तियार लिया है।

बुढ़वा होली से जुड़ी हैं कई कहानियां
     किवदंति है कि मगध के एक राजा होली के दिन बीमार पड़ गए थे। लिहाजा, वह होली के दिन होली नहीं खेल पाए थे। उसके अगले दिन सबों के साथ होली खेले थे। तबसे यह परंपरा माना जा रहा है। कुछ लोग इसे आदिकाल का बदला स्वरूप मानते हैं। होली के गाने से इसकी प्राचीनता को जोड़ते हैं। 

     वरिष्ठ साहित्यकार रामरतन प्रसाद रत्नाकर कहते हैं कि बुढ़वा होली की प्रासंगिकता शिव पुराण से भी मेल खाता है। रत्नाकर के मुताबिक, आदिकाल में होली के दिन भगवान विष्णु-महालक्ष्मी होली खेल रहे थे। तब नारद मुनि ने इसकी चर्चा भगवान शिव से की थी। तब शिव ने नारद को यह कहकर टाल गए थे कि जब कोई अराध्यदेव श्रृंगार रस में लीन हों तो उसकी चर्चा दूसरों से नहीं करनी चाहिए। 

     भगवान शिव ने अपने प्रमुख गण वीरभद्र को बताया था कि मंगल का दिन हो और अभिजीत नक्षत्र हो, उस दिन वह होली खेलते हैं। आज भी पंचागों में बुढ़वा मंगलका जिक्र मिलता है। बदलते समय के साथ लोग मंगल दिन का इंतजार करने के बजाय होली के दूसरे दिन होली खेलने लगे। तभी से मगध में बुढ़वा होली के रूप में प्रचारित हुआ है।

      विष्णुदेव पांडे कहते हैं कि शीत ऋतु में मानव का शरीर सुसुप्ति अवस्था में होता है। बसंत पंचमी से मौसम में बदलाव का असर मनुष्यों के अंतः संबंध, वेशभूषा और खानपान पर पड़ता है। जाहिर तौर पर मौसम, प्रकृति, व्यंजन यह सब एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इस उत्साह की चरम उत्कर्ष होली के बाद भी कई दिनों तक होती है। बुढ़वा होली सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं मनाते। यह हर उम्र के लोगों को मदमस्त बनाता है। लिहाजा, मगध में लोक संस्कृति का अहम हिस्सा बन गया है। 
http://www.bhaskar.com/news/c-268-770081-pt0171-NOR.html

Thursday 24 March 2016

परिवार उसे खेलने से कर दिया था मना, पर खुशबू ने भर दिया मेडलों से घर

अशोक प्रियदर्शी
          तीन साल पहले की कहानी है। बिहार हैंडबाॅल की कप्तान खुशबू को खेल मैदान जाने से मना कर दिया गया था। तब खुशबू सात दिनों तक खूब रोयी थी। एक माह तक खेलने नही गई। खुशबू के सामने यह स्थिति तब थी जब वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी थी। लेकिन आर्थिक परेशानियों और पड़ोसियों के उलाहना से खुशबू के माता-पिता परेशान थे। पिता का मानना था कि बेटियों की प्रतिभा नही सरकार और नही समाज आदर करता हैै। शादी के वक्त भी वर पक्ष उदारता नही दिखाते। लेकिन खुशबू के आग्रह पर उसके माता-पिता खेल में भाग लेने देने के लिए राजी हो गए थे। 
       खुशबू का जिद ही था कि आज वह नेशनल खिलाड़ी के रूप में पहचान बनाई है। हैंडबाॅल फेडरेशन की ओर से पाकिस्तान में 11 मार्च से होनेवाले खेल में खुशबू भारतीय टीम की ओर से जा रही है। यही नहीं, पूणे में होनेवाले बीथ हैंडबाॅल के सुपर लीग का भी हिस्सा बनेगी। इसके पहले 2015 में बांगलादेश के चिटगांव, ढाका मेें आयोजित प्रतियोगिता में इंडियन टीम का हिस्सा रही। फरवरी 2016 में पटना में भारतीय खेल प्राधिकार के तहत आयोजित राजीव गांधी खेल अभियान के नेशनल वुमेन स्पोर्टस चैम्पियनशिप में बिहार को जीत दिलाई। 
       यही नहीं, 2008 से लगातार हैंडबाॅल वुमेन टीम की कैप्टन है। बिहार के खेलों में लगातार 2014 तक नवादा को गोल्ड मेडल मिला है। नवादा की टीम कमजोर हुआ है। इसलिए दो साल से दूसरे स्थान पर है। हालांकि खुशबू को लगातार बेस्ट खिलाड़ी का अॅवार्ड मिलता रहा है। खुशबू का चयन भी जिला पुलिस बल में हो गया है। खुशबू अपनी मेहनत से मेडलों और प्रशस्ति पत्र का अंबार लगा दी है। खुशबू की सफलता से उसके माता पिता काफी खुश हैं। मां पिता कहते हैं कि बेटी की सफलता देखकर अच्छा महसूस करते हैं।

कौन है खुशबू
खुशबू नवादा जिला मुख्यालय के पटेल नगर निवासी अनिल सिंह और प्रभा देवी की दूसरी बेटी हैं। खुशबू के पिता आटा चक्की मील चलाकर परिवार चलाते हैं। मां गृहणी हैं। खुशबू फिजिक्स से ग्रेजुएट है। वह दो बहन और एक भाई है। बड़ी बहन सोनी बीएसएफ में हेड कांस्टेबल है। जबकि भाई दीपक गे्रजुएशन कर रहा है। सोनी और खुशबू के पहले उनके परिवार के तीन पीढियों में बेटियां नही थी। खुशबू का पैतृक गांव नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के परमा गांव है।

कैसे खेल में आई खुशबू
        साल 2008 में नवादा में 54वीं नेशनल स्कूल गेम आयोजित हो रहा था। हैंडबाॅल का गल्र्स टीम नही थी। तभी नवादा प्रोजेक्ट स्कूल के आठवीं की छात्रा खुशबू का चयन हैंडबाॅल खिलाड़ी के रूप में किया गया था। इसके पहले वह खो-खो आदि खेला करती थी। खुशबू के नेतृत्व में बिहार टीम जीती। उसके बाद से खुशबू हैंडबाॅल में जुड़ गई। 2011 में साइ लखनउ में प्रशिक्षण के लिए एक खिलाड़ी की वैकेंसी थी। खुशबू उसमें शामिल हुई थी, जिसमें उसका चयन हो गया था। तब से उसका मनोबल और भी मजबूत हो गया।

क्या कहती है खुशबू -
        खुशबू कहती हैं कि उसे पढ़ाई में मन नही लगता था। लेकिन खेल में काफभ् अभिरूचि थी। मुझे जिंदगी में कुछ बेहतर करना था। इसलिए हर खेल में अपनी पूरी ताकत लगाई।


उपलब्धियां- 
2008- 54वीं नेशनल स्कूल गेम, नवादा
2009- ईस्ट जोन हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, गोवाहाटी
2011- 56वीं नेशनल स्कूल गेम, हरियाणा
     -34वीं जुनियर गल्र्स नेशनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, गोवा
2012-16वीं इंटर जोनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, वाराणसी-रनर
   (यूपी से खेली)
-17वीं इस्ट जोन हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, मेन और वुमेन, अगरतल्ला, त्रिपुरा
  रनर ( बिहार से )
      -27वीं फेडरेशन कप हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, जैसलमेर, राजस्थान-तीसरा।   (यूपी से)  
2013 -18वीं इंटरजोनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, पटना। -रनर
     -17वीं इंटर जोनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, भिलाई, छतीसगढ।
     -41वीं सीनियर वुमेन नेशनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, नेलौर,एपी।-रनर।
2014-42वीं सीनियर वोमेन नेशनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, नरवाना, हरियाणा।
     -43वीं सीनियर वोमेन नेशनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, संगरूर, पंजाब,  
     -नेशनल स्पोर्टस आॅथिरीटी, भारत सरकार के युवा एवं खेल मंत्रालय चित्रदुर्ग-कर्नाटक, चैथा स्थान
     -36वीं जुनियर नेशनल हैंडबाॅल चैम्पियनशिप, इंडौर, मध्यप्रदेश, साइ की ओर से- रनर
2015-44वीं सीनियर वोमेन नेशनल चैंम्पियनशिप, पूणा।
-बांगलादेश हैंडबाॅल फेडरेशन, चिटगांव, ढाका।
     -35वीं नेशनल गेम्स केरला, पार्टिसिपेंट, बिहार से, बिथिंग बाॅल,
     -साउथ एशियन गेम्स सैफ का पंजाब के पटियाला और गुजरात के गांधी नगर में कैंप किया।
2016- राजीव गांधी खेल अभियान, भारतीय खेल प्राधिकरण, खेल मंत्रालय, नेशनल लेवल वुमेन स्पोर्टस चैम्पियनशिप। प्रथम। 14-17 फरवरी 2016


मगध में बुढ़वा होली का अलग रंग

डॉ अशोक प्रियदर्शी 
        मणिपुर में तीन दिनों तक अध्यात्मिक तरीके से होली मनाई जाती है। इसे याओसंग उत्सव के रूप में लोग जानते हैं। ठीक इसी तरह ब्रज, गोकुल, मथुरा, बरसाने, अवध, मिथिला और मुंबइया होली मनाई जाती है। इसके बारे में भी देश और दुनिया के लोग परिचित हैं। लेकिन बिहार के मगध इलाका में भी एक होली मनाई जाती है। इसके रंग से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। मगध में यह बुढ़वा होली के नाम से प्रचलित है। बुढ़वा होली का त्योहार होली के अगले दिन मनाया जाता है। 
         मगध के गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, शेखपुरा, नालंदा और जमुई इलाका में बुढ़वा होली का काफी प्रचलन है। धीरे धीरे यह व्यापक स्वरूप लेता जा रहा है। खास कि बुढ़वा होली के दिन सरकारी स्तर पर छुटट्ी नही रहती। लेकिन इस क्षेत्र में अघोषित तौर पर छुटट्ी जैसी स्थिति रहती है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थान बंद रहते हैं। सड़क, मुहल्ले और गलियों में होली की गूंज होती है। लोग होली के जश्न में डूबे होते हैं।
        बुजुर्ग डाॅ एसएन शर्मा कहते हैं कि जो लोग चैत माह के पहले दिन होली के रंग से नही भींगते। वह दूसरे दिन मनाए जानेवाले होली के रंग से बेसक रंग जाते हैं। लोग इसलिए भी रंग जाते हैं क्योंकि होली के दिन लोग आधे दिन मिटट्ी व धूल से खेलते हैं। दोपहर बाद रंग-गुलाल लगाते हैं। समय की आपाधापी में दिनभर में लोग सभी के साथ होली नही खेल पाते हैं। लेकिन बुढ़वा होली के दिन सबेरे से रंग की शुरूआत होती है, जो रात तक चलती है।
        गांव और शहर दोनों जगह बुढ़वा होली परवान पर होता है। बुढ़वा होली के दिन होली गानेवालों (होलवइया) की टोली-जिसे झुमटा कहते हैं- अराध्य स्थलों से निकलकर कस्बे-टोले और मुहल्ले में होली गाते हुए गुजरता है। गाने की शुरूआत ढोलक, झाल, करताल, के धुनों के बीच अराध्य देव की सुमिरन (प्रार्थना) से होती हैं। फिर बुजुर्गों पर केन्द्रित गाने और फक्कर गीत के साथ बुढ़वा होली चरम पर पहुंचता है। बुजुर्ग पर केन्द्रित- भर फागुन बुढ़वा देवर लागे.... बहुत ही लोकप्रिय गीत है। यही नहीं, बुजुर्गों पर केन्द्रित कई ऐसे गीत हैं जो बसंत में मंद पड़ी उत्साह को जागृत करने के लिए गाते हैं।
        भंग का रस होलवइया के उत्साह को दोगुना कर देता है। खास कि बुढ़वा होली के कपड़े भी बुढ़ापे की अवस्था जैसी होती है। होली के दिन रंगों से सरावोर कपड़े ही लोगों के शरीर पर चढ़े होते हैं। ताज्जुब कि मगधवासियों में रंग का उत्साह पहले दिन से कुछ ज्यादा ही गहरा और यादगार होता है। मगध में बुढ़वा होली के संबंध में कई लोक कथाएं हैं। इसे आदिकाल और आधुनिक काल की परिस्थितियों और वृतांतों से भी जोड़कर देखते हैं। यह धीरे धीरे व्यापक स्वरूप अख्तियार लिया है।
       किवदंति है कि मगध के एक राजा होली के दिन बीमार पड़ गए थे। लिहाजा, वह होली के दिन होली नही खेल पाए थे। उसके अगले दिन सबों के साथ होली खेले थे। तबसे यह परंपरा माना जा रहा है। लेकिन कुछ लोग इसे आदिकाल का बदला स्वरूप मानते हैं। होली के गाने से इसकी प्राचीनता को जोड़ते हैं। बुढ़वा दानी होके बैठअल जंगलवा में...।’  
      वरिष्ठ साहित्यकार रामरतन प्रसाद रत्नाकर कहते हैं कि बुढ़वा होली की प्रासंगिकता शिव पुराण से भी मेल खाता है। रत्नाकर के मुताबिक, आदिकाल में होली के दिन भगवान विष्णु-महालक्ष्मी होली खेल रहे थे। तब नारद मुनि ने इसकी चर्चा भगवान शिव से की थी। तब शिव ने नारद को यह कहकर टाल गए थे कि जब कोई अराध्यदेव श्रृंगार रस में लीन हों तो उसकी चर्चा दूसरों से नही करनी चाहिए। 
      लेकिन भगवान शिव ने अपने प्रमुख गण वीरभद्र को बताया था कि मंगल का दिन हो और अभिजीत नक्षत्र हो, उस दिन वह होली खेलते हैं। आज भी पंचागांें में ‘बुढ़वा मंगल’ का जिक्र मिलता है। बदलते समय के साथ लोग मंगल दिन का इंतजार करने के बजाय होली के दूसरे दिन होली खेलने लगे। यही मगध में बुढ़वा होली के रूप में प्रचारित हुआ है।
       विष्णुदेव पांडे कहते हैं कि शीत ऋृतु में मानव का शरीर सुसुप्तता अवस्था में होता है। लेकिन बसंत पंचमी से मौसम में बदलाव का असर मनुष्यों के अंतःसंबंध, वेशभूषा और खानपान पर पड़ता है। जाहिर तौर पर मौसम, प्रकृति, व्यंजन यह सब एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इस उत्साह की चरम उत्कर्ष होली के बाद भी कई दिनों तक होती है। बतानेवाली बात यह है कि बुढ़वा होली सिर्फ बुजुर्ग ही नही मनाते। यह हर उम्र के लोगों को मदमस्त बनाता है। लिहाजा, मगध में लोक संस्कृति का अहम हिस्सा बन गया है।
-लेखक एक पत्रकार हैं .

बुजुर्गों की होली- तेरे दारू से फीका हो रहा मेरा वसंत


डाॅ.अशोक प्रियदर्शी
   बात थोड़ी पुरानी है। होली का दिन था। जमुई जिले के अलीगंज प्रखंड के दरमा निवासी डाॅ ओंकार निराला गांव में थे। वह जगदंबा मंदिर से गुलाल लगाकर निकल रहे थे। तभी मस्जिद की ओर से कुछ लोग आए और उन्हें गुलाल लगाया। फिर सभी एक दूसरे से गले मिले। मंदिर से घर पहुंचने के दौरान कई नौजवान पैर छूकर प्रणाम किया। गुलाल लगाया। मंदिर से घर की 200 मीटर की दूरी तय करने में चार घंटे का समय लग गया था। होलिका दहन में भी गांव के सारे एकत्रित हुए थे। गांव नही जाने के कारण होली की याद आती थी।
          नौकरी से रिटायरमेंट के बाद डाॅ निराला जब गांव पहुंचे तब गांव की तस्वीर बदल चुकी थी। 68 वर्षीय ओंकार निराला कहते हैं कि पहले नवयुवक पैर छूकर प्रणाम किया करते थे। गुलाल का टीका लगाकर आशीर्वाद लिया करते थे। लेकिन होली में बढ़ा अपसंस्कृति का नतीजा कि नवयुवक अब प्रणाम करने के लिए पैर उठाने के लिए कहता है। ऐसी स्थिति शराब के प्रचलन से हुआ है। यही नहीं, शराबियों के उत्पात के कारण होलिकादहन भी तीन भागों में बंट चुका है। पहले होली का इंतजार किया करते थे, लेकिन अब बीतने का इंतजार रहता है।

अकेला उदाहरण नही 
  बिहार का दरमा अकेला गांव नही है, जहां शराब के बढ़ते प्रचलन से बुजुर्गों का वसंत फीका पड़ रहा है। नवादा जिले के वारिसलीगंज के पूर्व विधायक रामरतन सिंह के गांव सिमरी का उदाहरण लें। अश्लील गानों और शराबियों के उत्पात के कारण होली फीका पड़ गया है। 79 वर्षीय ग्रामीण सरयू प्रसाद सिंह बताते हैं कि एक दशक से होली नही मनाई जाती। परंपरागत होली बंद हो गई। अबीर की जगह पेंट, रंग की जगह पानी और मिटटी की जगह नाली का कीचड़ ने ले लिया है। 
         कौआकोल के पांडेगंगौट निवासी 66 वर्षीय हीरा प्रसाद सिंह कहते हैं कि शराबियों के कारण धुरखेली के दिन बुजुर्ग खेतों की तरह चले जाते हैं। जबकि उनकी गांव की खासियत रही है कि दोनों संप्रदाय के लोग मिलकर होली खेलते थे। लेकिन अब अपनों से भी बुजुर्ग दूरी बनाने लगे हैं। पकरीबरावां के डुमरावां निवासी 74 वर्षीय सुरेश प्रसाद शर्मा कहते हैं बुजुर्गों के मान सम्मान पर खतरा उत्पन्न हो गया है। लिहाजा, सार्वजनिक कार्यक्रमों से बुजुर्ग दूरी बनाने लगे हैं। यही नहीं, नव धनाढ़यों के अहंकार और शराबियों के व्यवहार के कारण गांव में दो जगहों पर होलिका दहन किया जाने लगा है।

सिसवां में सख्ती से बचा है बुजुर्गों का सम्मान
ग्रामीणों के सख्ती से नवादा के सिसवां में बुजुर्ग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। 77 वर्षीय ग्रामीण बच्चू सिंह कहते हैं कि गांव में परंपरागत होली अभी भी कायम है। होलिकादहन के चार दिन पहले से कीर्तन मंडली गांव में धूमता है। होलिका दहन में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं। खास कि कीचड़ नही लगाया जाता। अश्लील गाना नही गाया जाता। देवीस्थान से रंग गुलाल की शुरूआत की जाती है। उसके बाद पूरे गांव मेें लोग धूमते हैं। दारू पीकर हंगामा करनेवालों पर कड़ी नजर रखी जाती है।

होली के गीतों में भी अश्लीलता 
 होली गीतों में काफी अश्लीलता आ गई है। पहाड़पुर निवासी रामशरण सिंह कहते हैं कि होली में पौराणिक और छायावादी गीत गाए जाते थे। लेकिन अब फूहड़ गीत गाए जाते हैं। बजुर्ग और बच्चे एक साथ गीतों को नही सुन सकते। लिहाजा, बुजुर्ग अपनी इज्जत बचाने के लिए नवयुवकों से दूरी बनाकर रखते हैं। अकबरपुर प्रखंड के डिहरी निवासी 70 वर्षीय रामाधीन सिंह कहते हैं कि वह बचपन से गाने के शौकीन रहे हैं। लेकिन शराबियों के अमानवीय व्यवहार और फूहड़पना के कारण दूरी बना लिया है।
बुजुर्गों में भय का माहौल
      पछियाडीह गांव निवासी सेवानिवृत शिक्षक 75 वर्षीय महेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि होली सदभाव और प्रेम का प्रतीक था। साल में होली ही एक दिन था जब लोग गिले शिकवे भूलाकर एक दूसरे से गले मिलते थे। लेकिन यह परंपरा अब अवसान पर है। प्रेम और सदभाव की जगह दिखावा और अहंकार तथा प्रेमगीतों और पर्दानशीं गाने की जगह अश्लीलता और फूहड़ता जबकि पुआ और ठेकुआं की जगह दारू और गांजा ने ले लिया है। लिहाजा, बड़े और छोटे के बीच फर्क मिट गया है। भयावह स्थिति उत्पन्न होने लगा है। इसके चलते बुजुर्ग अलग थलग पड़ने लगे हैं।


मगध में बुढ़वा होली का रहा है प्रचलन
           बिहार के मगध इलाका गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, शेखपुरा, नालंदा और जमुई में बुढ़वा होली का प्रचलन रहा है। होली के अगले दिन बुढ़वा होली मनाई जाती है। इसे भी हर उम्र के लोग मनाते हैं। इसका दायरा बढ़ रहा है। सरकारी स्तर पर छुटटी नही होती है। फिर भी छुटटी जैसी स्थिति रहती है। लेकिन दुखद कि बुढ़वा होली में बुजुर्ग समाज ही अलग थलग पड़ने लगे हैं।            वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष  डा एसएन शर्मा कहते हैं कि भौतिक प्रगति की दौड़ में मानव मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है। इसका सीधा प्रभाव पर समाज और संस्कृति पर दिखने लगा है। समाज में विलासिता के कारण नशा सेवन बढ़ा है। लोग अपनी क्षमता का अहसास कराने के लिए नशापान करने लगे हैं। लेकिन नशापान के कारण बुजुर्ग खुद को अपमानित महसूस करने लगे हैं। लिहाजा, धीरे धीरे दूरी बनाने लगे हैं।

Thursday 3 March 2016

हमारे बुजुर्ग-जब चल रही थी गोलियां, तब सुना रहे थे कविता

डाॅ अशोक प्रियदर्शी
   बात डेढ़ दशक पहले की है। नवादा जिले में साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित था। नालंदा, लखीसराय, शेखपुरा और गया जिले से कवियों को आमंत्रित किया गया था। लेकिन वारिसलीगंज पहुंचने के बाद जब साहित्यकारों को पता चला कि अपसढ़ गांव में कार्यक्रम है, तब ज्यादातर साहित्यकारों और कवियों ने अपनी व्यस्तता बताकर वापस लौट गए थे। लेकिन मकनपुर निवासी राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर ने कार्यक्रम की अगुआई की। करीब आधे दर्जन साहित्यकारों के साथ साहित्य सह कवि गोष्ठी पूरी हुई। यह तब की बात है जब दक्षिण बिहार के नवादा, नालंदा और शेखपुरा जातीय नरसंहार की घटनाओं से ग्रस्त था। खून खराब की घटनाओं से दहशत की स्थिति थी। 
यह अकेला उदाहरण नही रहा है। उस दौर में भी वारिसलीगंज के कई गांवों में साहित्यिक गोष्ठियां हुई। रत्नाकर बताते हैं कि अबतक 120 साहित्यिक आयोजन हुए। खासबात कि ऐसे कार्यक्रमों में पूर्व कृषि मंत्री चतुरानन मिश्र, एनबीटी के संपादक बलदेव सिंह बदन, कैलाश मानसरोवर के महामंडलेश्वर विधानंद गिरि जैसे कई दिग्गज सिरकत किया। यही नहीं, माउंअ कटर दशरथ मांझी भी इसके गवाह बने। यह सिलसिला अनवरत जारी है। रत्नाकर कहते हैं कि ऐसे कार्यक्रमों से शक्ति महसूस करते हैं। लोगों से संवाद से इनर्जी बढ़ती है।
74 वर्षीय रत्नाकर कहते हैं कि समाज को सुधारने का साहित्य सबसे बड़ा साधन रहा है। साहित्य भावना को जागृत करता है। मेरी कोशिश  साहित्य के जरिए समाज में शांति और सदभाव का भाव जगाना रहा है। डाॅ. राम मनोहर लोहिया का कहना था कि आदमी का संचालन मन करता है। मन कमजोर हो जाता है तब आदमी पराधीनता स्वीकार कर लेता है। मन मजबूत होता है तब प्रतिकार करता है। संसार में जितना विरोध हुआ उसमें साहित्य का बड़ा योगदान रहा है। देखें तो, भारत की आजादी में साहित्यकारों की उल्लेखनीय भूमिका रही है।
 
साहित्य के क्षेत्र में रत्नाकर का योगदान
राम रतन सिंह रत्नाकर का हिंदी और मगही के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है। मगही संवाद और सतत नाम से 27 पत्रिका प्रकाशित हुई। मगही में- गांव के लक्ष्मी, राजगीर दर्शन, पगडंडी के नायक, मरघट के फूूल, मगध के संस्कृति, फगुनी के याद प्रकाशित है। यही नहीं, हिन्दी में-बलिदान, शहीद, संस्कृति संगम, आस्था का दर्शन, लोकगाथाओं का सांस्कृतिक मूल्यांकन, बहमर्षि कुल भूषण प्रकाशित है। बजरंगी प्रकाशित होनेवाली है।

चार दशक से चल रही संस्था
1968 से रत्नाकर से साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं। 1968 में मगही मंडप वारिसलीगंज का गठन हुआ था। तब सारथी पत्रिका का प्रकाशन किया जाता था। लेकिन बीच में बंद हो गया था। 2000 से  बिहार मगही मंडप वारिसलीगंज का गठन किया। उसके बाद सतत नाम से पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।

सम्मान- रत्नाकर को साहित्य मार्तण्ड और राष्ट्रीय हिन्दी सहस्त्राबदी सम्मान के अलावा कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुका है।

प्रेरणादायी रही है रामधारी सिंह दिनकर की कविता-
जली अस्थियां बारी बारी, छिटकाई जिसने चिंगारी, जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर, लिए बिना गर्दन की मोल 
कलम आज उनकी जय बोल, अंधा चकाचौंध  का मारा, कया जाने इतिहास बेचारा, साक्षी है उनकी महिमा का
                         सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल, कलम आज उनकी जयबोलं

हमारे बुजुर्ग/एक बहू का सास के नाम पत्रबहू की छोटी भूल पहाड़, बेटी की भूल नादानी

अन्नू, गृहणी   
आदरणीय सासू मां 
मुझे याद है जब मैं पहली दफा घर आई थी तब सासू मां आप गांववालों को मेरे स्वागत में बुला ली थी। मेरे गालों पर पान का पता लगाकर स्वागत की थीं। ससुर जी घर और बाहर मेरी खूबियों की चर्चा करते नही थकते थे। सासू मां मैं जब पानी पीने के लिए गिलास लेने रसोईघर गई थी तब आप ही थे, जो बोले थे कि किसी से पानी मांग लेते। मैं थोड़ा सुस्त दिखती थी तब आप बाबूजी से कहकर डाॅक्टर बुला लेती थीं। देर से बताने के लिए बेटे को डांट फटकार लगाते थे। बेटे को मेरा ख्याल रखने का हिदायत किया करते थे। आनाकानी करने पर फटकार लगाने से नहीं चुकी थी।
 थोड़ा वक्त बीता है। आप भी वही हैं। मैं भी वही हूं। लेकिन अब छोटी सी भूल को भी पहाड़ बना देती हैं। अब जबकि मैं घर का पूरा काम संभालती हूं। सुबह से रात्रि तक काम करती हूं। खाने की भी सुध नही रहती। परिजनों और रिश्तेदारों का भी ख्याल रखती हूं। खाना नास्ता समय पर बना देती हूं। ससुर जी की दवाई और आपकी सेहत का भी ख्याल रखती हूं। लेकिन आप अक्सर मुझे गलत ठराने की कोशिश करती रहती है। बेटे को भी उलाहना देते रहती हैं कि बहू का गुलाम हो गया है। जिस गांववालों को मेरा चेहरा देखना आपको नागवार गुजरता था, उनके सामने ही मेरी गलतियां गिनाती हैं।
 दोपहर में बच्चे को दूध पिलाने के दौरान नींद आ गई। ससुर जी को खाना देने में विलंब हो गया। ननद खाना दे दी। इसे आप मेरी भूल मान लेती हैं। आप जानते हैं कि ज्यादा काम से मैं भी थक जाती हूं। कमजोरी भी लगती है। फिर भी चैन से नही बैठती हूं। अगर मैं पति के साथ बाजार चली गई तो आप नाराज हो जाती हैं। मां से मिलने मायके जाती हूं तो यह भी आपको बुरा लगता है। शब्जी में नमक ज्यादा हो जाने पर आप नाराज हो जाती हैं। लेकिन ननदजी जब पूरी शब्जी गिरा दी थीं तब आप हंसकर कहती हैं कि नादान है। सिख जाएगी।
मेरे गहने ननद की शादी में बेच दिए। लेकिन बेटी का गहना अपने पास सुरक्षित रखना चाहती हैं। सासू मां आप भी सोचिए। मैं भी सोचती हूं। फर्क किसी में नही आया है। सोच में फर्क आया है। आप मुझे बहू के रूप में आंकने लगी हैं। आप मुझे पराए घर की बेटी मानने लगी हैं। मैं भी आपको अपने पति की मां मानने लगी हूं। एक कदम आप पीछे हटिए। मुझे बेटी मान लीजिए। मैं भी अपनी मां मानने लगूं।
         सबकुछ ठीक हो जाएगा। आप भी मेरी खुशी चाहती हैं। मैं भी आपको दुखी नही देखना चाहती। लेकिन छोटी छोटी गलतियों के कारण दूरियां बढ़ गई है। आप गलतियां ढूढ़ती रहती हैं। मंै अपना गलती मानने को तैयार नही हूं। लेकिन आपभी सोच लीजिए कि मैं भी कभी बहू थी।
(एक बहू का संदेश है। इसका मकसद सास और बहू के बीच की कड़वाहट  की वजहों से अवगत कराना है )

नीतीश जी! यह वक्त है ‘जंगलराज’ का दाग धोने का

सियासत

  |  5-मिनट में पढ़ें |   02-03-2016
  • 777
    Total Shares


बिहार में आपराधिक घटनाओं का सिलसिला जारी है. ताज्जुब है कि सरकार इसपर काबू पाने के बजाय कुतर्कों का सहारा ले रही है.

     
     एक दशक पुरानी बात है. पटना के एक होटल में जेडीयू एमएलए सुनील पांडेय ने शराब के नशे में हंगामा कर दिया था. तब सुनील पांडेय को तत्काल जेल भेज दिया गया था. बिहार का यह अकेला उदाहरण नहीं है. नवादा में खनन घोटाला हुआ था. तत्काल आरोपी एमएलए कौशल यादव के खिलाफ कार्रवाई हुई थी. यह तब हुआ था जब कौशल यादव और उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव एमएलए थे, दोनों जदयू सरकार के समर्थक थे.
     यह फेहरिस्त लंबी है जब सीएम नीतीश कुमार त्वरित कार्रवाई कर अपने सख्त तेवर से लोगों को परिचय कराया था. जनप्रतिनिधियों को भी कानूनी पाठ पढ़ाया गया था. खूंखार अपराधी जेल भेजे गए. स्पीडी ट्रायल हुए. जातीय नरसंहार थम गए. सैकड़ों भ्रष्ट लोकसेवक जेल गए. सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय कदम उठाए गए. लिहाजा, देश और दुनिया में बिहार की बेहतर छवि कायम हुई. नीतीश ‘सुशासन’ का प्रतीक माने जाने लगे.
     नीतीश के कार्यकलापों से लोगों का भरोसा बढ़ गया. लिहाजा, 2010 के चुनाव में नीतीश सरकार को अपार बहुमत मिला. बिहार विधानसभा के 243 में से 206 सीटें एनडीए को मिलीं. इसमें 115 सीटें जदयू को मिली थीं. राजद ने 22 सीटें जीतीं, जो विपक्ष के दर्जा से भी कम था. 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने की प्रतिक्रिया में नीतीश कुमार ने बीजेपी से 17 साल पुराना नाता तोड लिया. और 20 साल पुराने सियासी अदावत को भुलाकर राजद प्रमुख लालू प्रसाद से फिर से नाता कायम कर लिया.
    बीजेपी सवाल उठाने लगी कि जिस लालू प्रसाद और राबड़ी देवी शासनकाल के खिलाफ जनता ने नीतीश को मौका दिया, कथित तौर पर उसी ‘जंगलराज’ के नेता से समझौता कर लिया. विधानसभा चुनाव 2015 में एनडीए खासकर बीजेपी ने उसी ‘जंगलराज’ का मुद्दा बनाया. लेकिन जनता ने बीजेपी की नहीं सुनी. नीतीश पर भरोसा किया. जदयू, राजद और कांग्रेस महागठबंधन को 178 सीटें मिलीं. इसमें जदयू को 71, राजद को 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. जबकि बीजेपी 53 सीटों पर सिमट गई.
    लिहाजा, नीतीश पांचवीं दफा मुख्यमंत्री बने. लेकिन तेवर कमजोर दिख रहा है. नवंबर 2015 में सरकार बनने के एक माह बाद ही रंगदारी के खातिर अपराधियों ने दो इंजीनियरों की हत्या कर दी. इतना ही नहीं, जनप्रतिनिधि और उनके परिजन कानूनी मर्यादा तोड़ने लगे हैं. विगत 27 फरवरी को ही गोपालगंज के जदयू विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल ने एक सभा में कहा कि जो मेरे कार्यकर्ताओं को डराएगा,  मैं उसकी जीभ काट लूंगा और गोली मार दूंगा. जीभ काटने में मुझे एक मिनट भी नहीं लगेगा. मंडल ने चेताया कि- उनका एक पैर जेल में और एक पैर बाहर रहता है.
     मंडल नीतीश सरकार का अकेला विधायक नही हैं, जिन्होंने अपनी मर्यादा तोड़ी है. इसके पहले 6 फरवरी को नवादा के राजद विधायक राजबल्लभ प्रसाद ने नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म किया. आरोप है कि बर्थडे के बहाने बुलाकर नाबालिग को हवस का शिकार बनाया. ताज्जुब है कि ऐसे संगीन मामले की कार्रवाई सुस्त रही. दस दिन बाद घर की तलाशी ली गई. विरोध प्रदर्शन के बाद कुर्की जब्ती की कार्रवाई हुई. पुलिस इतनी लचर हो चुकी है कि आरोपी विधायक को ढूंढ़ ही नहीं पा रही है. यह स्थिति तब है जब पीड़िता नालंदा की है. इसके लिए नालंदा में प्रदर्शन किए जा रहे हैं.
     विगत 28 जनवरी को विक्रम के कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुमार सिंह पर लड़की भगाने का आरोप सामने आया. 17 जनवरी को राजधानी एक्सप्रेस में जोकिहट के जदयू विधायक सरफराज आलम पर महिला के साथ छेड़खानी के मामले सामने आए. यही नहीं, 27 जनवरी को आरजेडी एमएलए कुंती देवी के पुत्र रंजीत यादव ने डा. सत्येंद्र कुमार सिन्हा को दौड़ा दौड़ा कर पीटा. हत्या मामले के गवाह को धमकाने के आरोप में रूपौली विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनके समर्थक छुड़ाकर ले भागे. 
     12 फरवरी को भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वेश्वर ओझा की हत्या कर दी गई. इसी दिन छपरा में भाजपा नेता केदार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 5 फरवरी को लोजपा नेता बृजनाथी सिंह की एके-47 से भून डाला गया. बृजनाथी के पुत्र विधानसभा चुनाव में राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था. ऐसे आपराधिक घटनाओं का सिलसिला जारी है. ताज्जुब है कि सरकार इसपर काबू पाने के बजाय कुतर्कों का सहारा ले रही है. पुलिस ने तर्क दिया कि विश्वेश्वर और बृजनाथी अपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति था. जदयू के प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है कि विश्वेश्वर ओझा जैसे लोग धरती के बोझ थे. 
      नीतीश कुमार दावा करते हैं कि बिहार में कानून का राज है. जंगलराज दिल्ली में है, जिसे केन्द्र सरकार नियंत्रित कर पाने में विफल है. सवाल उठ रहा है कि कानून के राज मे सजा कानून देगी या फिर लोग खुद फैसला करने लगेंगे. जंगल में भी तो ऐसे ही होता है, जहां बलवान कमजोर को अपना शिकार बनाता है. दरअसल, यह वक्त है नीतीश कुमार को अपना साहस दिखाने का. इससे नीतीश के पुराने ‘सुशासन’ की छवि मजबूत होगी. यही नहीं, सरकार के साझेदार लालू प्रसाद पर कथित ‘जंगलराज’ के दाग भी धुल जाएंगे. चुनाव के पहले अनंत सिंह जैसे बाहुबली एमएलए को जेल भेजकर नीतीश अपना साहस दिखा चुके हैं.
       लेकिन जारी आपराधिक घटनाओं से यह बात जोर पकड़ने लगी है कि नीतीश के पास वह ‘साहस’ नहीं बचा है. बीजेपी से अलगाव के बाद नीतीश के पास कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में सहयोगी के शर्तों को मानना उनकी मजबूरी है. लिहाजा, सख्त अधिकारी किनारे किए जा रहे हैं. इसका सीधा असर कानून व्यवस्था पर दिखने लगा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.कॉम या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है
http://www.ichowk.in/politics/rising-crime-in-bihar-nitish-kumar-lalu-prasad-yadav-government-jungle-raj-part-2/story/1/2807.html