Tuesday 12 January 2016

चौपाल-सियासत से गायब है गांव और ग्रामीण की पीड़ा



अशोक प्रियदर्शी
     करीब डेढ़ सौ परिवार है। आठ सौ की आबादी है। लेकिन इस गांव मंे स्कूल नही है। आंगनबाड़ी केन्द्र अधूरी पड़ी है। स्वास्थ्य केन्द्र नही है। ग्रामीणों के पास नही राशन कार्ड और नही जाॅबकार्ड है। पीएम जनधन योजना के तहत चार महिलाओं के पास बैंक पासबुक है। वृद्धावस्था, विकलांग पेंशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाओं से वंचित है। बिजली और सड़क की सुविधा नही है। ग्रामीण भूमिहीन हंै। ग्रामीणों का मुख्य पेशा मजदूरी है। रोजगार के लिए चलते साल का आठ माह परदेस में गुजारते हैं। ग्रामीणों को हस्ताक्षर की जब बारी आती है तो लोग अंगूठा दिखाते हैं। 
      यह पढ़ने में काल्पनिक लेकिन बिहार नवादा जिले के रोह प्रखंड के छनौन पंचायत के चंद्रशेखर नगर गांव की असलियत है। संभव है चंद्रशेखर नगर में सरकारी स्तर पर योजनाएं चल रही हो, लेकिन गांव की हालात कुछ ऐसे ही हैं। ग्रामीण मिटटी और फूस की झोपड़ी में रहते हैं। मंती देवी बताती हैं कि बहुत पहले गांव में 20 परिवारों को इंदिरा आवास के लिए तीस-तीस हजार रूपए मिले थे। लेकिन इसमें पन्द्रह पन्द्रह हजार रूपए बिचैलिए ले लिया था। लिहाजा, आवास नही बन पाया। दूसरी किस्त नही मिली।
       65 वर्षीय बाले मांझी की आंख की रोशनी चली गई। लेकिन उन्हें नही इंदिरा आवास और नही पेंशन का लाभ मिल सका है। सुगी देवी विकलांग है। उसके पति शिवनंदन अर्द्धविक्षिप्त हैं। बेटी लाली अंधी है। बेटा सुरज छोटा है। सुगी का नाम बीपीएल में है। लेकिन सुगी भीख मांगकर परिवार का परवरिश करती है। वैसे गांव के सरपंच विनोद मांझी साक्षर हैं। लेकिन वह भी सरकारी योजनाओं से अनभिज्ञ हैं। 
        पिछले साल मैट्रिक पास बहू आई। काजीचक की मुन्नी की शादी सुरज मांझी के साथ हुई है। मुन्नी के लिए भी सरकारी योजना किसी काम की नही। जंगल से लकड़ी चुनना और पत्थर तोड़कर जीविका चलाना मुन्नी की दिनचर्या है। मुन्नी के सास, ससुर और पति परदेस में ईंट भटठा पर मजदूरी करते हैं। मुन्नी कहती है कि वह रोजगार करना चाहती है, लेकिन कोई राह नही दिख रहा। ग्रामीणों की शिकायत है कि उनका हाल लेनेवाला कोई नही है। चुनाव के पहले जनप्रतिनिधि पहले आते हैं। लेकिन फिर भूल जाते हैं।
गांवों का हाल 
 चंद्रशेखर नगर अकेला गांव नही है। समस्याएं कम, अधिक और अलग हो सकती है। लेकिन बिहार में ऐसे गांवों की फेहरिस्त लंबी है। राज्य का आधा हिस्सा बाढ़ और आधा सुखाड़ से त्रस्त रहता है। सिचाईं, स्वास्थ्य, रोजगार, बिजली, पानी जैसी बड़े सवाल हैं। लाखों लोग पलायन करते हैं। किसानों को प्रकृति पर रहना मजबूरी है। खाद की समस्या झेलनी पड़ती है। घोसतावां के किसान सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि एक मूर्तिकार अपनी मूर्ति की कीमत निर्धारित कर सकता है, लेकिन किसान  अपनी उत्पादन की कीमत नही तय कर सकता। यह कीमत सरकार तय करती है, जिसका फायदा भी ज्यादातर बिचैलिए उठाते हैं।
      राशन वितरण में अनियमितता बड़ा सवाल है। विधवाओं और बुजुर्गों पेंशन के लिए फजीहत उठानी पड़ती है। ग्रामीणों की ऐसी समस्याओं की सूची किसी भी जिले के जनता दरबार में मिल जाएंगे। ताज्जुब कि ऐसे अविकसित गांव सियासी एजेंडा नही बन पाता है। जबकि जीत हार का फैसला गांव से तय होता है। बिहार की सियासत जात पात, धर्म संप्रदाय, डीएनए, जुमला जैसे बातों में उलझी है। बिहार मगही मंडप के अध्यक्ष रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं कि जब तक ग्रामीण आत्मनिर्भर नही होंगे तबतक गांव की तस्वीर नही बदलेगी। घोषणाएं की जाती है लेकिन अमल नही किया जाता। रत्नाकर मानते हैं कि गांव आज भी नगर और महानगरों का उपनिवेश बना है।

गांव के लिए योजनाएं
     केन्द्र सरकार ने 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का निर्णय लिया है। इसमें बिहार के भागलपुर, मुजफफरपुर और बिहारशरीफ शामिल है। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में एक-एक गांव को विकसित किए जाने की योजना है। इसके पहले यूपीए सरकार ने आदर्श ग्राम की योजना शुरू की थी। पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने प्रत्येक प्रखंड के एक-एक गांव को आदर्श गांव बनाने की धोषणा की। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने स्मार्ट सिटी के बजाय स्मार्ट गांव की बात कही। सामाजिक कार्यकर्ता धर्मदेव पासवान कहते हैं कि गरीबों के लिए 147 योजनाएं हैं, लेकिन इसके लाभ से गांव और गरीब वंचित हैं।

आकड़े में गांवों की तस्वीर 
बिहार के 94163 में 92,257 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ग्रामीण है। भारत की जनगणना 2011 के मुताबिक, बिहार की 10.41 करोड़ आबादी है। इसमें 88.71 फीसदी ग्रामीण। बिहार में 61.80 फीसदी साक्षरता है, जबकि गांव में 59.78 फीसदी है। इसमें महिला साक्षरता 44.30 फीसदी है। राष्ट्रीय स्तर पर 14 फीसदी ग्रामीण प्राइमरी से कम पढ़े लिखे हैं, जबकि बिहार में 19.70 फीसद। चार की तुलना में 2.28 फीसदी ग्रामीण स्नातक है। देश में स्त्री पुरूष अनुपात 940 है। बिहार का 918 है। लेकिन ग्रामीण अनुपात 921 है।
       देश के कुल ग्रामीण परिवारों में से 30.10 फीसदी कृषि पर निर्भर है।  जबकि बिहार में 18.42 फीसदी निर्भरता है। बिहार में 1.25 करोड़ ग्रामीण परिवार दिहाड़ी मजदूर है। गांवोे मे हर तीसरा परिवार भूमिहीन है। बिहार में 65 फीसदी ग्रामीण भूमिहीन है। राष्ट्रीय स्तर पर करीब पांच फीसदी ग्रामीण सरकारी नौकरी में है। लेकिन बिहार में 3.89 फीसदी, जबकि 54.33 फीसदी भूमिहीन मजदूरी करते हैं। देश में करीब 20 फीसदी लोगों के पास वाहन है जबकि बिहार में 11.70 फीसदी। 

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