Tuesday 12 January 2016

आरएसएस की नयी चाल

अशोक प्रियदर्शी
  बात पिछले महीने की है. 9 अगस्त को मगध के गया में भाजपा की रैली थी. इस रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद थे. मोदी ने कहा कि जंगलराज-एक में जेल का अनुभव नही था.अब इस अनुभव के सहयोग से बिहार की बर्बादी की पटकथा लिखने की तैयारी चल रही है. 25 सालों से बिहार धोखाधड़ी और अहंकार झेल रहा है. अब लोग विकास चाहते हैं. 
           लेकिन 16 माह पहले लोकसभा चुनाव के दौरान 2 अप्रैल को इसी मगध क्षेत्र के नवादा की रैली में पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के निशाने पर कांग्रेस थी. तब मोदी ने कहा था कि देश में विकास के लिए स्वेत क्रांति, हरित क्रांति जैसी क्रांतियां हुयी. लेकिन कांग्रेस सरकार पिंक क्रांति चाहती है. यानि पशुओं को मारकर उसके मांस का अधिक से अधिक निर्यात.
करीब सवा साल के अंतराल में नरेंद्र मोदी के दो अलग-अलग भाषण बिहार विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भाजपा खासकर आरएसएस की रणनीति के फर्क को इंगित करता है. हालांकि सार्वजनिक तौर पर आरएसएस अपनी ऐसी किसी रणनीति को जाहिर करने से परहेज करती रही है. लेकिन राजनीति में आरएसएस की रणनीति को ही भाजपा की रणनीति माना जाता रहा है.
            देखें तो, लोकसभा चुनाव में आरएसएस की रणनीति सांप्रदायिक धु्रवीकरण था. लिहाजा, बिहार के नवादा जैसे संवेदनशील जगह पर पिंक क्रांति की बात की गयी. ताकि धर्म के आधार पर मतों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो सके. लेकिन बिहार विधानसभा के चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हिडेन एजेंडा है. बाहरी तौर पर मुस्लिम समुदाय में दूसरे धर्मांवलंबियों के प्रति सहिष्णुता दिखाने की रणनीति है.
           भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 30 अगस्त की रैली की जिम्मेवारी को उसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है. इसके पहले 8 अगस्त को बिहार के चार जिलों के लिए अल्पसंख्यक कार्य मंत्री डाॅ नजमा हेपतुल्ला ने अल्पसंख्यक युवाओं और मदरसों के बच्चों के लिए नयी मंजिल योजना की शुरूआत की. डाॅ नजमा ने कहा कि नरेंद्र मोदी बगैर कोई भेदभाव के सभी जाति, धर्म और विकास चाहते हैं.
             जानकार बताते हैं कि शुरूआत में हिंदू के कटटरवादी संगठन आरएसएस का एजेंडा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण था. चुनाव के पहले आरएसएस के सरसंघसंचालक डाॅ मोहन भागवत और और विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ प्रवीण तोगड़िया के बिहार दौरे को उसी रणनीति का हिस्सा माना गया.
             मोहन भागवत बक्सर में आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल हुये. आरएसएस कार्यालय का आधारशिला रखी. चार दिवसीय प्रवास के दौरान डाॅ भागवत ने कहा कि स्वयंसेवक ही संघ की पूंजी है. उनकी शक्ति राष्ट्रीय विचारधारा की मजबूती है. हर गांव में संघ की शाखा चलाने का नसीहत दिया. उन्होंने कहा कि गांवों में स्वयंसेवक की फौज पहले से है. इसे सक्रिय करने की जरूरत है. 
            यही नहीं, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ प्रवीण तोगड़िया ने बिहार के कई स्थानों में सभायें की. डाॅ तोगड़िया ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि अब भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने का समय आ गया है. इसके पहले संघकार्यवाह भैयाजी जोशी बिहार का दौरा कर चुके हैं. हालांकि आरएसएस और विहिप से जुड़े लोग उनके बिहार दौरे को देशव्यापी कार्यक्रम का हिस्सा बताते हैं. 
           सूत्र बताते हैं कि आरएसएस को इस रणनीति से बहुत उम्मीद जगती नही दिखी तब उसने अपनी नीति में परिवर्तन कर दिया. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को हिडेन एजेंडा में रखा. व्यक्तिगत संपर्क और परिचय को इस रणनीति का हिस्सा बनाया. आरएसएस नयी रणनीति में जातीय समीकरण को शामिल किया.
         बिहार के जातीय आकड़े के मुताबिक, सर्वाधिक 27 प्रतिशत अतिपिछड़ा, 22.5 फीसदी पिछड़ा, 17 फीसदी दलित, 16.5 फीसदी मुस्लिम, 13 फीसदी सवर्ण और 4 फीसदी अन्य की आबादी है. लिहाजा, आरएसएस जातीय समीकरणों की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. पिछली घटनाओं से ऐसी ही तस्वीर उभरती है. जीतनराम मांझी की सीएम की कुर्सी खतरे में थी तब भाजपा मांझी के समर्थन में खड़ी दिखी. आखिर में मांझी को भाजपा गठबंधन में शामिल भी कर लिया गया . यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में मांझी को काफी तवज्जों दी गयी. मांझी को प्रदान किये गये जेड श्रेणी की सुरक्षा  को दलित राजनीति से जोड़कर देखा गया .
          अतिपिछड़ा मतों में अपनी दखल बनाने के लिए पूर्व मंत्री और भाजपा नेता डाॅ प्रेम कुमार को भी आगे किया गया. विदित है कि डाॅ प्रेम कुमार ने सीएम की कुर्सी का भी दावा कर दिया था. अति पिछड़ा वर्ग के कई अन्य नेताओं को भी आगे किया गया है . पिछड़ा वर्ग खासकर यादव मतों में सेंधमारी की कोशिश की गयी  है.  जैसा कि लालू प्रसाद ने एक चुनावी सभा में कहा भी कि यादव समुदाय को सावधान रहने की जरूरत है. इस बार यादवों के मतों के विभाजन के लिए भाजपा कई निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा करेगी.
         भाजपा की रणनीति देंखे तो बिहार का चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव को बनाया है. इसके अलावा विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव, रामकृपाल यादव जैसे नेताओं के चेहरे को आगे किया है. यही नहीं, लालू प्रसाद पर तीखा प्रहार करनेवाले जन अधिकार मंच के संरक्षक पप्पू यादव को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान किए जाने की घटना को यादव में सेंधमारी से जोड़कर देखा जा रहा है.
       यही नहीं, चुनावी रैलियों में नेताओं पर व्यक्तिगत हमला को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. मुजफ्फरपुर की रैली में नरेंद्र मोदी ने ऐसा ही संकेत दिया.उन्होंने लालू प्रसाद पर परिवारवाद का आरोप लगाया. जबकि खुद को यादव समुदाय का हितैषी बताया. मोदी ने कहा कि यादव अपनी चिंता उनपर छोड़ दें.
      जाहिर तौर पर आरएसएस को भी मालूम  है कि गरीब, पिछड़ा और दलित के बगैर सता में आना मुमकीन नही है. लिहाजा, आरएसएस ने कमजोर और पिछड़े वर्गों को टारगेट किया. पटना एएन सिन्हा इंस्ट्ीच्यूट के रीडर डाॅ हबीबुल्लाह अंसारी कहते हैं- कमजोर वर्गों को अपनी विचारधारा से जोड़ने के लिए आरएसएस कई संस्थाओं के जरिए अभियान चला रही है. राजस्थान और उतरप्रदेश के बाद बिहार को टारगेट किया गया है. 
        डाॅ हबीबुल्लाह मानते हैं कि बिहार में 25 सालों से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दलित, पिछड़ा और मुस्लिम की राजनीति करते रहे. लेकिन जमीनी स्तर पर कैडर नही बना पाए.लेकिन आरएसएस उन नेताओं और दलों की कमजोरियों का फायदा उठाने में जुटी रही. जाहिर तौर पर लालू और नीतीश अपनी अपनी कुर्सी की रणनीतियों में रहे. जबकि आरएसएस अपनी रणनीति में कामयाब रही है.
         राजनीति में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव से बहुत बड़ा तबका चिंतित है. हिंदूत्व को राजनीति से जोड़ने को गलत माना जा रहा है. डाॅ हबीबुल्लाह मानते हैं कि धर्म के नाम पर धु्रवीकरण देश के लिए शुभ संकेत नही है. भारत विविधताओं से भरा देश रहा है. यहां बहु संस्कृति के लोग हैं.ऐसे में ंिहदू राष्ट्र की बात से क्षोभ पैदा होगी, जो देश हित में नही है.
          देखें तो, आरएसएस की पहुंच गरीबों और पिछड़े तबके तक सीमित नही है. लालू और नीतीश से विक्षुब्ध अपर कास्ट और अपर क्लास पर भी नजर रही है. जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के संयोजक महेंद्र यादव कहते हैं कि अपर कास्ट वोकल होता है. शुरू से बोलते रहा है. अपर क्लास, अपर कास्ट और आरएसएस की एक धुरी बन गयी है. लिहाजा, आरएसएस का प्रचार तंत्र मजबूत हो गया है.सता में आने के लिए आरएसएस को अनैतिक गठबंधनों से भी कोई परहेज नही है.
           दरअसल, आरएसएस भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की रणनीति पर लंबे समय  से प्रयासरत है.  2005 में बिहार में भाजपा की सरकार बनी तो बिहार में भी आरएसएस को पांव पसारने का मौका मिल गया।. हालांकि 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के अयोध्या रथ को रोकने का श्रेय लालू प्रसाद लेते रहे. लेकिन जमीनी स्तर पर लालू और नीतीश आरएसएस के मुकाबले संगठन को मजबूत नही किया. दोनों कुर्सी की रणनीति में जुटे रहे.
          लोहिया विचार मंच के संयोजक रघुपति कहते हैं कि आरएसएस सता की कमजोरियांे का लाभ उठाते रही है. वह  अपनी ताकत को बढ़ाया है. सात सालों के अंतराल में काफी संपति बनायी. अतीत को देखें तो, महात्मा गांधी की हत्या के बाद से आरएसएस अलग थलग था. लेकिन 1967 में गैर कांग्रेसवाद डाॅ राम मनोहर लोहिया की सरकार बनी. तब कई मंत्री बने थे. तबसे आरएसएस को पनपने का अवसर मिला. 
          रघुपति कहते हैं कि 1974 के आंदोलन में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने एक सभा में आरएसएस की प्रशंसा कर दी थी. आरएसएस को इसका बहुत लाभ मिला. राष्ट्रीय फलक पर उभरने का अवसर मिला. 1977 की सरकार में आ गए. 1990 में बीपी सिंह के उदय के साथ भाजपा मंडल राजनीति का हिस्सा बनी. हालांकि बाद मंे भाजपा ने कमंडल की राजनीति को आधार बनाया. 
सूत्रों के मुताबिक, बिहार चुनाव की कमान आरएसएस के जिम्मे है. दलों के साथ गठबंधन बनाने के अलावा उम्मीदवारों के चयन में भी आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका बतायी जा रही है. लेकिन बिहार का चुनाव आरएसएस के लिए चुनौती बनी है. झारखंड, जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में सरकार बनने के बाद आरएसएस काफी सहज थी.
         लेकिन दिल्ली में खराब प्रदर्शन के बाद आरएसएस की परेशानी बढ़ गयी है. महेंद्र यादव कहते हैं कि बिहार में आरएसएस की राह बहुत आसान नही है. दिल्ली विधानसभा के चुनाव में वोटरलिस्ट के एक पेज पर एक कार्यकर्ता को लगाया गया था. फिर भी भाजपा 70 में से सिर्फ तीन सीटें जीती थी.
         बहरहाल, आरएसएस अपने अभियान को अंजाम देने के लिए सक्रियता बढ़ा रखी है. आरएसएस और उनके अनुशांगिक इकाइयों की समन्वय बैठकों की  दौर चल रहे हैं . कार्यकर्ताओं को गांव-गांव भेजे जा रहे हैं. हालांकि लालू प्रसाद ने कहा कि आरएसएस के एजेंट गांव में सीधे साधे लोगों को चेला बना रहे हैं.
         दूसरी तरफ, 14 जनवरी को लालू के पुत्र तेजप्रताप यादव ने धर्मनिरपेक्ष सेवक संघ का गठन किया है, इसे वह आरएसएस का सामांनांतर होने का दावा कर रहे हैं. तेजप्रताप के मुताबिक, सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों के जुड़ने के बाद यह संगठन आरएसएस से मजबूत होगा. फिलहाल, बिहार का चुनाव आरएसएस की रणनीतियों की परीक्षा का सवाल है.

No comments:

Post a Comment