Tuesday 12 January 2016

जिनके पिता पांच साल रहे एमपी, उनकी बेटियां है आंगनबाड़ी सेविका

अशोक प्रियदर्शी
 आमतौर पर किसी परिवार में कोई सदस्य एमपी, एमएलए, एमएलसी या फिर मुख्यिा बन जाते हैं तो उनकी कई पीढ़ियां खुशहाल हो जाया करती है। उनके घर परिवार की जीवनशैली में भी यह बदलाव दिखने लगता है। लेकिन बिहार के नवादा संसदीय क्षेत्र के पांच साल तक एमपी रहे प्रेमचंद राम के परिवार की कहानी जुदा है। 1991 में माकपा से निर्वाचित एमपी प्रेमचंद राम के छह बेटे और दो बेटियां थी। पिछले साल एक पुत्र राजकुमार की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। लेकिन बाकी के पांच बेटे और दो बेटियों के जीवन में प्रेमचंद राम के राजनीतिक जीवन का असर नही दिख रहा है।
       नवादा के सिरदला प्रखंड के भरकंडा निवासी प्रेमचंद राम के संतानों के जीवन में उनके सियासी सफर का असर नही है। उनके संतानों में बेटियां बड़ी हैं। बड़ी बेटी अनिता की शादी कौआकोल बाजार में और सुनीता की शादी वारिसलीगंज के चंडीपुर में की गई थी। लेकिन पूर्व एमपी की दोनों बेटियां आंगनबाड़ी सेविका हैं। यही नहीं, कौआकोल निवासी उनके बड़े दामाद श्रीचंद उर्फ सुरेन्द्र दास बीमा अभिकर्ता हैं। जबकि दूसरे दामाद चंडीपुर निवासी मुन्द्रिका दास ग्रामीण मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं।
     खासबात कि पूर्व एमपी के एक पुत्र सुबोध नियोजित टीचर हैं। उन्होंने 2010 से मंडल प्राथमिक स्कूल में दस हजार रूपए मासिक पर टीचर की नौकरी ज्वाइन किया था। लेकिन वेतन बढ़ोतरी और नौकरी की स्थायीकरण के लिए सुबोध भी शिक्षकों की लड़ाई में शामिल है। वैसे सुबोध ग्रेजुएशन तक पढ़ा है। सुबोध के पुत्र विनायक भी साधारण स्कूल में पढ़ रहा है। सुबोध की पत्नी सोनी भी पढ़ी लिखी है। सुबोध परिवार के साथ गांव में रहता है।
  वैसे पूर्व एमपी के बड़े पुत्र विनोद कुमार नई दिल्ली कारपोरेशन अस्पताल में चिकित्सक हैं। संजीव कुमार दिल्ली में शेयर मार्केट का काम, जबकि एक अन्य पुत्र संतोष बैंक ऑफ इंडिया में कांट्रेक्ट पर नौकरी में है। छोटे पुत्र पवन ग्रेजुएशन कर रहा है। फिलहाल, इस परिवार का कोई वार्ड सदस्य भी नही है। इतना ही नहीं, पूर्व एमपी का पुस्तैनी घर आज भी मिटटी का है। हालांकि पुराने मकान के कुछ हिस्से को तोड़कर नया मकान बनाया गया है।  परिवार में करीब पांच विगहा जमीन है। 
हालांकि प्रेमचंद राम सरकारी नौकरी में थे। करीब 20 सालों की नौकरी के बाद 1991 मंे माकपा के टिकट पर चुनाव में उतरे थे। तब वह नवादा कलेक्ट्रेट में सहायक के पद पर कार्यरत थे। दरअसल, वह कर्मचारी यूनियन का भी नेता थे। उनके नेतृत्व को लेकर पार्टी के लोग चाहते थे। सुबोध कहते हैं कि उनके पिताजी ने अपने सिद्वांतों से कभी समझौता नही किया। राजनीति में वारिश थोपने के खिलाफ थे। उनका कई दलों के नेताओं से अच्छे संबंध हैं। वह चाहते तो परिवार को सियासत में उतार सकते थे। लेकिन इस ओर कभी ध्यान नही दिया। उनका मानना है कि व्यक्ति की क्षमता ही उसका कार्यशैली तय कर सकता है। 

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