Sunday 10 January 2016

पति की चिता की आग भी नही बुझी थी कि लावारिस नवजात को जीवन देने में जुट गई थी संगीता, संघर्ष और साहस की मिसाल है संगीता



अशोक प्रियदर्शी
बात चार साल पहले की है। संगीता के पति बबलू की छत पर से गिर जाने के कारण मौत हो गई थी। परिवार की सारी जिम्मेवारियां अचानक संगीता पर आ गई थी। दो बेटियों और एक बेटे की परवरिश की चिंता थी। पति का बिजनेस भी खत्म हो गया। संगीता के सगे संबंधी घर में रहकर बच्चों का परवरिश का सुझाव दे रहे थे। ताज्जुब कि पति की चिता की आग बुझी भी नही थी कि संगीता ने लावारिश नवजात को जीवन देने में जुट गई। संगीता को अकबरपुर में एक लावारिश नवजात मिलने की जानकारी मिली। संगीता उसे आंचल में ली। फिर उसे बाल संरक्षण इकाई के जरिए जीवन देने में कामयाब रही। बिहार के नवादा जिले के न्यू एरिया निवासी संगीता का अकेला उदाहरण नही है। वह लगातार लावारिश नवजात को जीवन देने में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं। 
         यही नहीं, 40 वर्षीय संगीता अनाथ, गुमशुदा, लैंगिग शोषण के बारे में जानकारी और कानूनी शिक्षा प्रदान करने में अहम भूमिका निभा रही है। मानव व्यापार पर लगाम लगाने में भी डटकर मुकाबला कर रही है। पिछले दिनों नरहट अस्पताल में भी एक नवजात बच्चा मिला है। इसे भी जीवन प्रदान किया जा सका है। हिसुआ के उमरांव विगहा में एक नवजात लडकी को बाल संरक्षण इकाई के जरिए जीवन प्रदान किया जा सका है। भारत सरकार के महिला बाल विकास मंत्रालय द्वारा संगीता कुमारी को निःस्वार्थ और असाधारण कार्य के लिए जिला महिला सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग ने जिला पदाधिकारी को पत्र भेजकर ऐसा निर्णय लिया है। 

संघर्षपूर्ण की पृष्ठभूमि
 गया जिले के वजीरगंज प्रखंड के कारीसोवा निवासी लाखपत सिंह की अकेली बेटी संगीता की शादी 14 साल की आयु में नवादा नगर के न्यू एरिया निवासी बबलू कुमार से हुई थी। तब वह सातवीं में पढ़ रही थी। लेकिन वह शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखी। वह 1997 में इतिहास में एमए की। यही नहीं, पति की मौत के बाद 2013-14 सत्र में एमएसडब्लू से पीजी की। इसके पहले 2011 में नालंदा ओपन से बाल एवं महिला अधिकार विषय में डिप्लोमा की थी। वह 1987 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। संगीता की दो बेटियां और एक बेटा है। बेटियों में रूपाली यूपी के जौनपुर से बीएससी एजी कर रही है। रीतु सातवीं कक्षा में पढ़ रही है। जबकि पुत्र आनंद इंटरमीडिएट का स्टुडेंट है।

सामाजिक क्षेत्र में काम
2005 में बाल श्रमिक स्कूल से जुड़कर साक्षरता का काम की। 2010 में समाज कल्याण विभाग के तहत बाल कल्याण समिति की सदस्य बनी। 2011 में तटवासी समाज न्यास में उपसमन्वयक के तौर पर ज्वाइन की। फिलहाल वह बाल कल्याण समिति की सदस्य और उपसमन्वयक के तौर पर काम कर रही हैं।

क्या कहती हैं संगीता
संगीता कहती हैं कि असामयिक पति की मौत से उन्हें गहरा झटका लगा है। वह अपने पति को बचाने में कामयाब नही हो सकी। इसकी उन्हे हर समय चिंता रहती है। ऐसे में ऐसे नवजातों को जीवन देने से उन्हें राहत मिलती है।ऐसे बच्चों को जीवन देना उनके जीवन का हिस्सा बन गया है। यही नहीं, पारिवारिक जिम्मेवारी भी घर के चहारदीवारियों के जरिए संभव नही है। इसलिए उन्हें बाहर आना ही एकमात्र विकल्प था।

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