Monday 10 October 2016

सियाराम शर्मा-आजादी के लिए बछड़े का मांस तक खाया, लेकिन पेंशन के लिए हाथ नही फैलाया



डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
1942 की बात है। फरहा गांव में अमेरिकन छावनी थी। उस छावनी में करीब 27-28 सिपाही थे। यह पुलिस आंदोलनकारियों को बहुत परेशान कर रही थी। तब पड़ोसी गांव बरेव में सिंघना के बाढ़ो सिंह के नेतृत्व में एक बैठक हुई। इसमें तय हुआ कि पुलिस छावनी को जला देना है। इसके लिए उस छावनी में एक शख्स को नौकर के रूप में शामिल करने का फैसला हुआ। इसके लिए पकरीबरावां के बलियारी निवासी सियाराम शर्मा को चुना गया। चूंिक शर्मा काला थे। लेकिन उन्हें जनेउ पड़ गई थी। लिहाजा, वह जनेउ उतार दिया। और उनका नाम गेनहारी मांझी रखा गया।
         शर्मा ने बताया किया योजना के मुताबिक पुलिस छावनी के आसपास खेलने लगे। चार पांच दिनों के बाद एक अधिकारी ने बुलाया। उसने नाम पूछा और कहा कि कुछ काम करो। यहीं खाना खा लेना। शर्मा बतौर गेनहारी मांझी उस छावनी में काम करने लगे। हर शाम शर्मा बाढ़ो सिंह को पुलिस की गतिविधियों की सूचनाएं दिया करते थे। एक दिन छावनी में बड़ी पार्टी थी। बछड़े का मांस बना था। शर्मा ने कहा कि खाना नही चाहते थे। लेकिन अधिकारी के दबाव में खाना पड़ा।
         पार्टी जब परवान पर थी। तब मौका देखकर पेट्रोल की टंकी में गेहूं के डंठल में आग लगाकर डाल दिया। कई पेट्रोल टंकी था। लहरने लगा। फिर फरार हो गए। बाढ़ो सिंह और साथियों को इसकी सूचना दी गई। नवादा और रजौली में पेड़ काटकर एनएच-31 को जाम कर दिया। पुलिस गेनहारी के नाम से तलाश रही थी। लेकिन फरहा में गेंधारी नाम का कोई शख्स नही था। लिहाजा, फरहा गांव पर सामूहिक जुर्माना कर दिया था। हालांकि कुछ दिन बाद पुलिस छावनी वापस चली गई। लिहाजा, शर्मागिरफ्तार नही किए जा सके।


लेकिन पेंशन के लिए हाथ नही फैलाई
बिहार के नवादा जिले के पकरीबरावां के बलियारी निवासी सियाराम शर्मा शर्मा आर्थिक परेशानियों से जुझते रहे। लेकिन उन्होंने पेंशन के लिए कभी हाथ नही फैलाई। जबकि भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष पं शीलभद्र याजी फाॅरवर्ड ब्लाॅक के उपाध्यक्ष रह चुके थे। इसके बाद पृथ्वी सिंह आजाद अध्यक्ष बने थे। वह भी उन्हें जानते थे। शर्मा कहते हैं कि उन्हें कहा गया कि सिर्फ आवेदन पर हस्ताक्षर कर दीजिए, पेंशन शुरू हो जाएगा। लेकिन उस लड़ाई को चंद रूपए में आंकना मुझे मंजूर नही था। इसलिए दिलचस्पी नही दिखाई।


लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काफी सम्मान मिला
92 वर्षीय शर्मा रूपए नही कमाए। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर उन्हें काफी सम्मान मिला। 1975 में बड़ी बेटी कालिंदी की शादी थी। किसी के जरिए इसकी जानकारी तत्कालीन डीएम सीएस प्रसाद को मिली। डीएम तीन बोरा चीनी का परमिट शर्मा के घर भिजवा दिए। शर्मा की बेटी की शादी में दो बोरा चीनी खर्च हुआ। बचा हुआ एक बोरा चीनी का परमिट शर्मा लौटा दिए। 
डीएम ने जब शर्मा से पूछा कि आपने निमंत्रण क्यों नही दिया। तब शर्मा का जवाब था कि शादी में दामाद सबसे बड़ा होता है। लेकिन आप जब आ जाते तब दामाद का कद छोटा हो जाता। लोग आपको देखने लग जाते। यह मुझे मंजूर नही था। दरअसल, शर्मा सैद्धांतिक शख्स रहे हैं। कई सरकारी कमिटियों में रहे। लेकिन सिद्धांतो से समझौता नही किया। शर्मा को तीन बेटे और दो बेटियां है।
स्वामी सहजानंद से रही शर्मा की निकटता
सियाराम शर्मा की स्वामी सहजानंद सरस्वती से भी निकटता रही। 1946 में वारिसलीगंज के मीरविगहा में सभा हुई थी। उसी सभा में स्वामीजी से मुलाकात हुई थी। उसके बाद से स्वामीजी का अनुयायी बन गए थे। स्वामीजी के आखिरी जीवन तक जुड़े रहे। हालांकि शर्मा के पिता बाढ़ो सिंह कलां किसान थे। वह उन्हें पढ़ाना चाहते थे। लेकिन शर्मा राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय थे। इसलिए स्कूल से निकाल दिया था। लिहाजा, उनकी पढ़ाई नही पूरी हुई। 1946 में सीपीआई का सदस्य बने। 1990 तक रहे। सियाराम शर्मा अंचल कमेटी से राज्यस्तरीय कमेटी तक पदाधिकारी रहे। 

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