Tuesday 11 October 2016

त्रिपुरारी शरण नही रहे, लेकिन अब उनकी परिकल्पणा हो रही साकार

अशोक प्रियदर्शी, सेखोदेवरा आश्रम (नवादा)
आठ साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले में करीब 5000 परंपरागत चरखा चलता था। इसमें अकेला 1500 चरखा कौआकोल में चलता था। इस चरखा में आठ घंटे मजदूरी के बाद मुश्किल से 40 रूपए की आमदनी होती थी। लिहाजा, लोग धीरे धीरे परंपरागत चरखा से विमुख होने लगे थे। गांव गांव से चरखा लौटकर सेखोदेवरा आश्रम में लौटने लगा। सेखोदेवरा आश्रम स्थित ग्राम निर्माण मंडल की खादी संस्था घाटे में पहुंच गई। 
       तभी आश्रम के संरक्षक त्रिपुरारी शरण (अब जीवित नही) ने एक चरखा का माॅडल विकसित किया। यह आठ, सोलह और बतीस तकुए का था। यह परंपरागत चरखा की तुलना में सहज और अधिक उत्पादन करनेवाला है। 2009 में त्रिपुरारी शरण ने इस चरखे को पेटेंट कराया।  इसका नाम त्रिपुरारी माॅडल चरखा रखा गया।
        2011 में त्रिपुरारी शरण बिहार सरकार को एक प्रस्ताव भेजे थे। इसमें त्रिपुरारी माॅडल चरखा को परंपरागत चरखा के वैकल्पिक रूप में अपनाने के लिए आग्रह किया गया था। प्रस्ताव में सरकार को अवगत कराया गया कि त्रिपुरारी माॅडल चरखा खादी उत्पादन को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगा। इस चरखा से कई गुणा अधिक आमदनी होगी। 


खादी बोर्ड के आदेश पर हो रहा पहल
करीब पांच साल बाद 2014-15 में त्रिपुरारी माॅडल चरखा को बिहार सरकार ने कैबिनेट से मंजूरी प्रदान कर दी। इसके लिए 44 करोड़ रूपए स्वीकृत किया गया। इस फैसले को अब बिहार राज्य खादी ग्रामोधोग बोर्ड ने लागू करने की पहल शुरू कर दी है। बोर्ड ने सेखोदेवरा आश्रम को एक हजार चरखा वितरित करने की जिम्मेवारी दी है। सेखोदेवरा आश्रम के प्रधान मंत्री अरविंद कुमार ने बताया कि एक हजार चरखा का निर्माण कर लिया गया है। बोर्ड की सूची के मुताबिक, बिहार के प्रत्येक जिलों में त्रिपुरारी माॅडल चरखा उपलब्ध कराया जाना है।

कौन थे त्रिपुरारी शरण
त्रिपुरारी शरण लोक नायक जयप्रकाश नारायण के अनुयायी थे। जेपी द्वारा सेखोदेवरा आश्रम में स्थापित ग्राम निर्माण मंडल संस्था के प्रधान मंत्री और संरक्षक रहे। बाद में वह बिहार राज्य खादी ग्रामोधोग बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। बिहार सरकार ने 2009 में त्रिपुरारी शरण को खादी पुरूष का पुरस्कार दिया गया था। दो लाख रूपए और प्रशस्ति पत्र दिया गया था। यह राशि संस्था के विकास में दे दिए थे। यही नहीं, झारखंड सरकार ने उन्हें खादी रत्न से सम्मानित किया। हालांकि 26 जून 2013 को उनका निधन हो गया। लेकिन उनका सपना अब साकार हो रहा है।

प्रयोग के तौर पर 400 चरखा चल रहा था
बिहार के नवादा और औरंगाबाद जिले में करीब 400 त्रिपुरारी माॅडल चरखा प्रयोग के तौर पर पहले से संचालित किया जा रहा था। नवादा के झीलार, कपसिया, सिंघना, रतोई, नवाजगढ़, पार्वती, लालविगहा में करीब 200 चरखा का संचालन सफल रहा है। वहीं औरंगाबाद में 200 चरखा संचालित किया जा रहा है। बता दें कि सेखोदेवरा आश्रम से प्रत्येक साल करीब एक करोड़ रूपए का खादी कपड़े तैयार किए जा रहे हैं। त्रिपुरारी माॅडल चरखा की कीमत 16 हजार रूपए है। जबकि परंपरागत चरखा की कीमत 2200 रूपए है। 

      सेखोदेवरा आश्रम के प्रधान मंत्री अरविंद कुमार ने कहा कि संस्था का करीब  एक करोड़ 51 लाख 18 हजार 700 रूपए सरकार का बकाया है। त्रिपुरारी माॅडल चरखा के अपनाए जाने से आश्रम की आर्थिक तंगहाली दूर होगी। साथ ही खादी कपड़े की बुनाई का अस्तित्व कायम रहेगा। बुनकरों की कई गुणा आमदनी बढ़ जाएगी।

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