Monday 10 November 2014

आ ! अब लौट चलें

 डॉ अशोक कुमार प्रियदर्शी  
        प्रवासी पक्षियों का नवादा से गहरा ताल्लुक है। यही वजह है कि मानसून के प्रवेश करते ही प्रवासी पक्षी आते हैं और ठंड का मौसम आते ही मेहमान पक्षी अपने घर को लौटने लगते हैं। आमतौर पर जून में आते हैं और नवंबर में लौट जाते हैं। विगत तीन दशक से बिहार के नवादा जिले में प्रवासी पक्षियों का कलरव देखने को मिलता है।
        मेहमान पक्षियों का मानसून में आने की वजह अनुकूल मौसम और प्र्याप्त आहार का उपलब्ध होना बताया जाता है। इस मौसम में प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन आहर और धान के खेतों में पाए जानेवाले घोंघे, केकड़े, कीड़े, मेढ़क, छिपकिली, छोटे सांप और मछलियां बड़े पैमाने पर उपलब्ध होते हैं। पक्षीविज्ञानियों के मुताबिक, यह सुहाना मौसम पक्षियों के प्रजनन की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
         इस दौरान नवादा का आकाश प्रवासी पक्षियों के नव शावकों के उड़ान की ट्ेनिंग शिविर बनी रहती है। एक मादा पक्षी तीन से पांच अंडे देती है। ये सब लंबी उड़ान की ट्ेनिंग लेकर नवंबर माह में दक्षिण भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए कूच कर जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, प्रत्येक साल करीब तीन हजार प्रवासी पक्षी नवादा पहुंचते हैं।
        मेहमान पक्षी को साइबेरियन क्रेन कहते हैं। लेकिन पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक, ओपेनबील स्ट्ाॅक्स कहा जाता है। यह संपूर्ण एशियाई उप महाद्वीप और दक्षिण एशिया में पाया जाता है। भारत के अलावा श्रीलंका, वर्मा, बंगलादेश में सामान्य रूप से पाए जाते हैं। प्रवासी पक्षियों का मुख्य बसेरा जिला मुख्यालय के कलेक्ट्ेट, एसडीओ आॅफिस, साहेब कोठी, रजिस्ट्ी अॅाफिस, ट्ेजरी आफिस, को-आॅपरेटीव बैंक परिसर में अवस्थित पेड़ों की उंची टहनियों पर है।
        माना जाता है कि सुरक्षा कारणों से मेहमान पक्षी अपना यह ठौर चुनते हैं। इन इलाकों में सुरक्षाबलों की तैनाती रहती है। लिहाजा यह महफूज स्थल माना जाता है। अजीब संयोग कि नवादा के बाद दानापुर कैंट इलाका में मेहमान पक्षियों का जमावड़ा देखा जाता है, जो सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है।



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