Friday 26 September 2014

जेल जाकर भी नही हारी मनोरमा

-मनोरमा भ्रष्ट्र प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़कर न सिर्फ अपना हक हासिल की बल्कि वह एसडीओ पर 25 हजार रूपए का आर्थिक जुर्माना, एसपी को जवाब तलब और दरोगा को निलंबित करवाई। इस लड़ाई में उसे जेल भी जाना पड़ा। फिर भी नही हारी। अब वह दोषियों को सजा दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही है।

manorama devi
डाॅ. अशोक कुमार प्रियदर्शी
            मंझोली कद, दुबला काठी, सांवली सूरत और गंवई वेषभूषा में दिखनेवाली मनोरमा किसी देहात की एक साधारण महिला से अलग नही लगती। लेकिन उनका हौसला पत्थर के चटट्ान से भी ज्यादा सख्त है। उन्हें देखकर ऐसा यकीन करना थोड़ा मुश्किल  हो सकता है, लेकिन उनके पिछले सात सालों के संघर्ष गाथा को जानने के बाद यह भ्रम स्वतः टूट जाता है।  क्योंकि मनोरमा ने भ्रष्ट्र प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़कर अपना हक हासिल की।
             यही नहीं, वह तत्कालीन एसडीओ पर 25 हजार रूपए का आर्थिक जुर्माना, एसपी को जवाब तलब और दरोगा को निलंबित करवाई। हालांकि इस लड़ाई में मनोरमा को जेल जाना पड़ा। फिर भी वह हारी नही। वह अब भी आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कानूनी लड़ाई लड रही है. हम जिस मनोरमा की बात कर रहे हैं, वह बिहार के नवादा जिले के सदर प्रखंड के भदौनी पंचायत के खरीदीविगहा गांव में रहती है। उसके पति गणेश  चैहान मिस्त्री का काम करते हैं। वह खुद खेतों में काम करती थी। लेकिन 2007 में आंगनबाड़ी सेविका की बहाली निकली थी। वह अपने पोषक क्षेत्र की अकेली महिला थी जो प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास थी।
        लेकिन सुष्मिता नाम की महिला की सेविका के पद पर बहाली कर दी गईं। वह उसने कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। उन्होंने आरटीआई के जरिए बहाली से संबंधित सभी कागजात निकाली। तब उसे पता चला कि नीलम और सुष्मिता एक ही महिला है। दरअसल, नीलम मैट्रिक की दो बार परीक्षा दी थी। नीलम ने 1993 में तृतीय श्रेणी से जबकि दूसरी दफा 1995 में सुष्मिता नाम से परीक्षा दी थी, जिसमें प्रथम श्रेणी से पास की थी।
देवेन्द्र दास की पत्नी नीलम 1993 के सर्टिफिकेट पर जन वितरण प्रणाली दुकान का लाइसेंस ले रखी थी। जबकि सुष्मिता नाम के सर्टिफिकेट पर उसकी गोतनी कांति देवी (वीरेंद्र दास की पत्नी) सेविका के रूप में बहाल हो गइ्र्रं थी। लेकिन इस गुत्थी को सुलझाना आसान नही था।
           मनोरमा को इसकी सूचना के लिए पंचायत से राज्य स्तर पर फरियाद करना पड़ा। स्थानीय स्तर पर मनोरमा को कोई सूचना नही देना चाहता था। लिहाजा, राज्य सूचना आयुक्त ने तत्कालीन एसडीओ हाशिम खां के खिलाफ 25 हजार रूपए का जुर्माना कर दिया था। साथ ही कागजात उपलब्ध कराए जाने का आदेश  दिया।
सबकुछ स्पष्ट हो जाने के बाद भी विभाग मनोरमा की बहाली में आनाकानी कर रहा था। तब उन्होंने पटना हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटायी। अधिकारियों को भय हो गया कि अब उनके खिलाफ कार्रवाई हो जाएगी तब कल्याण विभाग सक्रिय हो गया। जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने सुष्मिता की बहाली को अविलंब रदद करते हुए उसपर एफआईआर दर्ज करने का आदेश  दिया।
          तत्कालीन बाल विकास परियोजना पदाधिकारी मीना कुमारी ने सुष्मिता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। यही नहीं,  8 अगस्त 2009 को मनोरमा को बहाल कर दिया गया। 15 अगस्त को उसी मुखिया ने उससे झंडोतोलन करवाई जिन्होंने शुरूआत में उन्हें सेविका से वंचित कर दिया था.   लेकिन मनोरमा की परेशानी यही नही थमी। मनोरमा कहती है कि तब उसके विपक्षी ने काम में व्यवधान डालने के लिए मारपीट किया। इसकी शिकायत करने उसके पति थाना पहुंचे तो उनके पति को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। क्योंकि कथित सुष्मिता ने उसे और उसके पति के खिलाफ नगर थाना में दलित अत्याचार और सरकारी काम में बाधा पहुंचाने की प्राथमिकी दर्ज करा दी। उसके बाद मनोरमा भी कोर्ट में सरेंडर की, जिन्हें 15 दिनों तक जेल में रहना पड़ा।
         लेकिन मनोरमा चुप नही बैठी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से शिकायत की। उन्होंने आयोग को अवगत कराई कि जब पुलिस और प्रषासन ने सुष्मिता को फर्जी करार दे चुकी है। सुष्मिता के फर्जी करार होने के बाद ही उसे नौकरी से बर्खास्त किया गया और प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। तब उस फर्जी सुष्मिता की शिकायत पर उनके और उनके पति के खिलाफ कार्रवाई कैसे हुई? आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन एसपी गंधेष्वर प्रसाद सिन्हा से जवाब तलब कर दिया। तब एसपी ने इस मामले के अनुसंधानकर्ता एसआई नागेन्द्र गोप को इस आधार पर निलंबित कर दिया कि बगैर जांच पड़ताल के कार्रवाई कैसे कर दिया गया? लेकिन मनोरमा यही नही रूकी है। अब वह उन आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट में कानूनी लड़ रही है, जिसके कारण उन्हें नौकरी से वंचित होना पड़ा था।
          मनोरमा कहती है कि उन्हें अधिकारियों ने हर समय परेशान किया। मारपीट उनके साथ हुआ और जेल भी उन्हें भेज दिया। पुलिस उनके मामले को कमजोर कर दिया जिसके कारण विपक्षी को जमानत मिल गई। यही नहीं, सीडीपीओ ने जिसके आवेदन पर सुष्मिता पर कार्रवाई की, उन्हें गवाह में भी नही रखा। हालांकि वह हारी नही है। वह कहती है कि उन्हें इस अभियान में उसके पति ने भरपूर सहयोग किया। मनोरमा कहती है कि अब मेरा एकमात्र लक्ष्य फर्जी सर्टिफिकेट वाली महिलाओं और उन अधिकारियों को सजा दिलाना है, जो उन्हें संरक्षण दे रहे थे।     

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