Thursday 3 March 2016

नीतीश जी! यह वक्त है ‘जंगलराज’ का दाग धोने का

सियासत

  |  5-मिनट में पढ़ें |   02-03-2016
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बिहार में आपराधिक घटनाओं का सिलसिला जारी है. ताज्जुब है कि सरकार इसपर काबू पाने के बजाय कुतर्कों का सहारा ले रही है.

     
     एक दशक पुरानी बात है. पटना के एक होटल में जेडीयू एमएलए सुनील पांडेय ने शराब के नशे में हंगामा कर दिया था. तब सुनील पांडेय को तत्काल जेल भेज दिया गया था. बिहार का यह अकेला उदाहरण नहीं है. नवादा में खनन घोटाला हुआ था. तत्काल आरोपी एमएलए कौशल यादव के खिलाफ कार्रवाई हुई थी. यह तब हुआ था जब कौशल यादव और उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव एमएलए थे, दोनों जदयू सरकार के समर्थक थे.
     यह फेहरिस्त लंबी है जब सीएम नीतीश कुमार त्वरित कार्रवाई कर अपने सख्त तेवर से लोगों को परिचय कराया था. जनप्रतिनिधियों को भी कानूनी पाठ पढ़ाया गया था. खूंखार अपराधी जेल भेजे गए. स्पीडी ट्रायल हुए. जातीय नरसंहार थम गए. सैकड़ों भ्रष्ट लोकसेवक जेल गए. सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय कदम उठाए गए. लिहाजा, देश और दुनिया में बिहार की बेहतर छवि कायम हुई. नीतीश ‘सुशासन’ का प्रतीक माने जाने लगे.
     नीतीश के कार्यकलापों से लोगों का भरोसा बढ़ गया. लिहाजा, 2010 के चुनाव में नीतीश सरकार को अपार बहुमत मिला. बिहार विधानसभा के 243 में से 206 सीटें एनडीए को मिलीं. इसमें 115 सीटें जदयू को मिली थीं. राजद ने 22 सीटें जीतीं, जो विपक्ष के दर्जा से भी कम था. 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने की प्रतिक्रिया में नीतीश कुमार ने बीजेपी से 17 साल पुराना नाता तोड लिया. और 20 साल पुराने सियासी अदावत को भुलाकर राजद प्रमुख लालू प्रसाद से फिर से नाता कायम कर लिया.
    बीजेपी सवाल उठाने लगी कि जिस लालू प्रसाद और राबड़ी देवी शासनकाल के खिलाफ जनता ने नीतीश को मौका दिया, कथित तौर पर उसी ‘जंगलराज’ के नेता से समझौता कर लिया. विधानसभा चुनाव 2015 में एनडीए खासकर बीजेपी ने उसी ‘जंगलराज’ का मुद्दा बनाया. लेकिन जनता ने बीजेपी की नहीं सुनी. नीतीश पर भरोसा किया. जदयू, राजद और कांग्रेस महागठबंधन को 178 सीटें मिलीं. इसमें जदयू को 71, राजद को 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. जबकि बीजेपी 53 सीटों पर सिमट गई.
    लिहाजा, नीतीश पांचवीं दफा मुख्यमंत्री बने. लेकिन तेवर कमजोर दिख रहा है. नवंबर 2015 में सरकार बनने के एक माह बाद ही रंगदारी के खातिर अपराधियों ने दो इंजीनियरों की हत्या कर दी. इतना ही नहीं, जनप्रतिनिधि और उनके परिजन कानूनी मर्यादा तोड़ने लगे हैं. विगत 27 फरवरी को ही गोपालगंज के जदयू विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल ने एक सभा में कहा कि जो मेरे कार्यकर्ताओं को डराएगा,  मैं उसकी जीभ काट लूंगा और गोली मार दूंगा. जीभ काटने में मुझे एक मिनट भी नहीं लगेगा. मंडल ने चेताया कि- उनका एक पैर जेल में और एक पैर बाहर रहता है.
     मंडल नीतीश सरकार का अकेला विधायक नही हैं, जिन्होंने अपनी मर्यादा तोड़ी है. इसके पहले 6 फरवरी को नवादा के राजद विधायक राजबल्लभ प्रसाद ने नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म किया. आरोप है कि बर्थडे के बहाने बुलाकर नाबालिग को हवस का शिकार बनाया. ताज्जुब है कि ऐसे संगीन मामले की कार्रवाई सुस्त रही. दस दिन बाद घर की तलाशी ली गई. विरोध प्रदर्शन के बाद कुर्की जब्ती की कार्रवाई हुई. पुलिस इतनी लचर हो चुकी है कि आरोपी विधायक को ढूंढ़ ही नहीं पा रही है. यह स्थिति तब है जब पीड़िता नालंदा की है. इसके लिए नालंदा में प्रदर्शन किए जा रहे हैं.
     विगत 28 जनवरी को विक्रम के कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुमार सिंह पर लड़की भगाने का आरोप सामने आया. 17 जनवरी को राजधानी एक्सप्रेस में जोकिहट के जदयू विधायक सरफराज आलम पर महिला के साथ छेड़खानी के मामले सामने आए. यही नहीं, 27 जनवरी को आरजेडी एमएलए कुंती देवी के पुत्र रंजीत यादव ने डा. सत्येंद्र कुमार सिन्हा को दौड़ा दौड़ा कर पीटा. हत्या मामले के गवाह को धमकाने के आरोप में रूपौली विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उनके समर्थक छुड़ाकर ले भागे. 
     12 फरवरी को भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वेश्वर ओझा की हत्या कर दी गई. इसी दिन छपरा में भाजपा नेता केदार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 5 फरवरी को लोजपा नेता बृजनाथी सिंह की एके-47 से भून डाला गया. बृजनाथी के पुत्र विधानसभा चुनाव में राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था. ऐसे आपराधिक घटनाओं का सिलसिला जारी है. ताज्जुब है कि सरकार इसपर काबू पाने के बजाय कुतर्कों का सहारा ले रही है. पुलिस ने तर्क दिया कि विश्वेश्वर और बृजनाथी अपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति था. जदयू के प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है कि विश्वेश्वर ओझा जैसे लोग धरती के बोझ थे. 
      नीतीश कुमार दावा करते हैं कि बिहार में कानून का राज है. जंगलराज दिल्ली में है, जिसे केन्द्र सरकार नियंत्रित कर पाने में विफल है. सवाल उठ रहा है कि कानून के राज मे सजा कानून देगी या फिर लोग खुद फैसला करने लगेंगे. जंगल में भी तो ऐसे ही होता है, जहां बलवान कमजोर को अपना शिकार बनाता है. दरअसल, यह वक्त है नीतीश कुमार को अपना साहस दिखाने का. इससे नीतीश के पुराने ‘सुशासन’ की छवि मजबूत होगी. यही नहीं, सरकार के साझेदार लालू प्रसाद पर कथित ‘जंगलराज’ के दाग भी धुल जाएंगे. चुनाव के पहले अनंत सिंह जैसे बाहुबली एमएलए को जेल भेजकर नीतीश अपना साहस दिखा चुके हैं.
       लेकिन जारी आपराधिक घटनाओं से यह बात जोर पकड़ने लगी है कि नीतीश के पास वह ‘साहस’ नहीं बचा है. बीजेपी से अलगाव के बाद नीतीश के पास कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में सहयोगी के शर्तों को मानना उनकी मजबूरी है. लिहाजा, सख्त अधिकारी किनारे किए जा रहे हैं. इसका सीधा असर कानून व्यवस्था पर दिखने लगा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.कॉम या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है
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