Thursday 24 March 2016

बुजुर्गों की होली- तेरे दारू से फीका हो रहा मेरा वसंत


डाॅ.अशोक प्रियदर्शी
   बात थोड़ी पुरानी है। होली का दिन था। जमुई जिले के अलीगंज प्रखंड के दरमा निवासी डाॅ ओंकार निराला गांव में थे। वह जगदंबा मंदिर से गुलाल लगाकर निकल रहे थे। तभी मस्जिद की ओर से कुछ लोग आए और उन्हें गुलाल लगाया। फिर सभी एक दूसरे से गले मिले। मंदिर से घर पहुंचने के दौरान कई नौजवान पैर छूकर प्रणाम किया। गुलाल लगाया। मंदिर से घर की 200 मीटर की दूरी तय करने में चार घंटे का समय लग गया था। होलिका दहन में भी गांव के सारे एकत्रित हुए थे। गांव नही जाने के कारण होली की याद आती थी।
          नौकरी से रिटायरमेंट के बाद डाॅ निराला जब गांव पहुंचे तब गांव की तस्वीर बदल चुकी थी। 68 वर्षीय ओंकार निराला कहते हैं कि पहले नवयुवक पैर छूकर प्रणाम किया करते थे। गुलाल का टीका लगाकर आशीर्वाद लिया करते थे। लेकिन होली में बढ़ा अपसंस्कृति का नतीजा कि नवयुवक अब प्रणाम करने के लिए पैर उठाने के लिए कहता है। ऐसी स्थिति शराब के प्रचलन से हुआ है। यही नहीं, शराबियों के उत्पात के कारण होलिकादहन भी तीन भागों में बंट चुका है। पहले होली का इंतजार किया करते थे, लेकिन अब बीतने का इंतजार रहता है।

अकेला उदाहरण नही 
  बिहार का दरमा अकेला गांव नही है, जहां शराब के बढ़ते प्रचलन से बुजुर्गों का वसंत फीका पड़ रहा है। नवादा जिले के वारिसलीगंज के पूर्व विधायक रामरतन सिंह के गांव सिमरी का उदाहरण लें। अश्लील गानों और शराबियों के उत्पात के कारण होली फीका पड़ गया है। 79 वर्षीय ग्रामीण सरयू प्रसाद सिंह बताते हैं कि एक दशक से होली नही मनाई जाती। परंपरागत होली बंद हो गई। अबीर की जगह पेंट, रंग की जगह पानी और मिटटी की जगह नाली का कीचड़ ने ले लिया है। 
         कौआकोल के पांडेगंगौट निवासी 66 वर्षीय हीरा प्रसाद सिंह कहते हैं कि शराबियों के कारण धुरखेली के दिन बुजुर्ग खेतों की तरह चले जाते हैं। जबकि उनकी गांव की खासियत रही है कि दोनों संप्रदाय के लोग मिलकर होली खेलते थे। लेकिन अब अपनों से भी बुजुर्ग दूरी बनाने लगे हैं। पकरीबरावां के डुमरावां निवासी 74 वर्षीय सुरेश प्रसाद शर्मा कहते हैं बुजुर्गों के मान सम्मान पर खतरा उत्पन्न हो गया है। लिहाजा, सार्वजनिक कार्यक्रमों से बुजुर्ग दूरी बनाने लगे हैं। यही नहीं, नव धनाढ़यों के अहंकार और शराबियों के व्यवहार के कारण गांव में दो जगहों पर होलिका दहन किया जाने लगा है।

सिसवां में सख्ती से बचा है बुजुर्गों का सम्मान
ग्रामीणों के सख्ती से नवादा के सिसवां में बुजुर्ग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। 77 वर्षीय ग्रामीण बच्चू सिंह कहते हैं कि गांव में परंपरागत होली अभी भी कायम है। होलिकादहन के चार दिन पहले से कीर्तन मंडली गांव में धूमता है। होलिका दहन में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं। खास कि कीचड़ नही लगाया जाता। अश्लील गाना नही गाया जाता। देवीस्थान से रंग गुलाल की शुरूआत की जाती है। उसके बाद पूरे गांव मेें लोग धूमते हैं। दारू पीकर हंगामा करनेवालों पर कड़ी नजर रखी जाती है।

होली के गीतों में भी अश्लीलता 
 होली गीतों में काफी अश्लीलता आ गई है। पहाड़पुर निवासी रामशरण सिंह कहते हैं कि होली में पौराणिक और छायावादी गीत गाए जाते थे। लेकिन अब फूहड़ गीत गाए जाते हैं। बजुर्ग और बच्चे एक साथ गीतों को नही सुन सकते। लिहाजा, बुजुर्ग अपनी इज्जत बचाने के लिए नवयुवकों से दूरी बनाकर रखते हैं। अकबरपुर प्रखंड के डिहरी निवासी 70 वर्षीय रामाधीन सिंह कहते हैं कि वह बचपन से गाने के शौकीन रहे हैं। लेकिन शराबियों के अमानवीय व्यवहार और फूहड़पना के कारण दूरी बना लिया है।
बुजुर्गों में भय का माहौल
      पछियाडीह गांव निवासी सेवानिवृत शिक्षक 75 वर्षीय महेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि होली सदभाव और प्रेम का प्रतीक था। साल में होली ही एक दिन था जब लोग गिले शिकवे भूलाकर एक दूसरे से गले मिलते थे। लेकिन यह परंपरा अब अवसान पर है। प्रेम और सदभाव की जगह दिखावा और अहंकार तथा प्रेमगीतों और पर्दानशीं गाने की जगह अश्लीलता और फूहड़ता जबकि पुआ और ठेकुआं की जगह दारू और गांजा ने ले लिया है। लिहाजा, बड़े और छोटे के बीच फर्क मिट गया है। भयावह स्थिति उत्पन्न होने लगा है। इसके चलते बुजुर्ग अलग थलग पड़ने लगे हैं।


मगध में बुढ़वा होली का रहा है प्रचलन
           बिहार के मगध इलाका गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, शेखपुरा, नालंदा और जमुई में बुढ़वा होली का प्रचलन रहा है। होली के अगले दिन बुढ़वा होली मनाई जाती है। इसे भी हर उम्र के लोग मनाते हैं। इसका दायरा बढ़ रहा है। सरकारी स्तर पर छुटटी नही होती है। फिर भी छुटटी जैसी स्थिति रहती है। लेकिन दुखद कि बुढ़वा होली में बुजुर्ग समाज ही अलग थलग पड़ने लगे हैं।            वरीय नागरिक संघ के अध्यक्ष  डा एसएन शर्मा कहते हैं कि भौतिक प्रगति की दौड़ में मानव मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है। इसका सीधा प्रभाव पर समाज और संस्कृति पर दिखने लगा है। समाज में विलासिता के कारण नशा सेवन बढ़ा है। लोग अपनी क्षमता का अहसास कराने के लिए नशापान करने लगे हैं। लेकिन नशापान के कारण बुजुर्ग खुद को अपमानित महसूस करने लगे हैं। लिहाजा, धीरे धीरे दूरी बनाने लगे हैं।

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