Thursday 3 March 2016

हमारे बुजुर्ग-जब चल रही थी गोलियां, तब सुना रहे थे कविता

डाॅ अशोक प्रियदर्शी
   बात डेढ़ दशक पहले की है। नवादा जिले में साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित था। नालंदा, लखीसराय, शेखपुरा और गया जिले से कवियों को आमंत्रित किया गया था। लेकिन वारिसलीगंज पहुंचने के बाद जब साहित्यकारों को पता चला कि अपसढ़ गांव में कार्यक्रम है, तब ज्यादातर साहित्यकारों और कवियों ने अपनी व्यस्तता बताकर वापस लौट गए थे। लेकिन मकनपुर निवासी राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर ने कार्यक्रम की अगुआई की। करीब आधे दर्जन साहित्यकारों के साथ साहित्य सह कवि गोष्ठी पूरी हुई। यह तब की बात है जब दक्षिण बिहार के नवादा, नालंदा और शेखपुरा जातीय नरसंहार की घटनाओं से ग्रस्त था। खून खराब की घटनाओं से दहशत की स्थिति थी। 
यह अकेला उदाहरण नही रहा है। उस दौर में भी वारिसलीगंज के कई गांवों में साहित्यिक गोष्ठियां हुई। रत्नाकर बताते हैं कि अबतक 120 साहित्यिक आयोजन हुए। खासबात कि ऐसे कार्यक्रमों में पूर्व कृषि मंत्री चतुरानन मिश्र, एनबीटी के संपादक बलदेव सिंह बदन, कैलाश मानसरोवर के महामंडलेश्वर विधानंद गिरि जैसे कई दिग्गज सिरकत किया। यही नहीं, माउंअ कटर दशरथ मांझी भी इसके गवाह बने। यह सिलसिला अनवरत जारी है। रत्नाकर कहते हैं कि ऐसे कार्यक्रमों से शक्ति महसूस करते हैं। लोगों से संवाद से इनर्जी बढ़ती है।
74 वर्षीय रत्नाकर कहते हैं कि समाज को सुधारने का साहित्य सबसे बड़ा साधन रहा है। साहित्य भावना को जागृत करता है। मेरी कोशिश  साहित्य के जरिए समाज में शांति और सदभाव का भाव जगाना रहा है। डाॅ. राम मनोहर लोहिया का कहना था कि आदमी का संचालन मन करता है। मन कमजोर हो जाता है तब आदमी पराधीनता स्वीकार कर लेता है। मन मजबूत होता है तब प्रतिकार करता है। संसार में जितना विरोध हुआ उसमें साहित्य का बड़ा योगदान रहा है। देखें तो, भारत की आजादी में साहित्यकारों की उल्लेखनीय भूमिका रही है।
 
साहित्य के क्षेत्र में रत्नाकर का योगदान
राम रतन सिंह रत्नाकर का हिंदी और मगही के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है। मगही संवाद और सतत नाम से 27 पत्रिका प्रकाशित हुई। मगही में- गांव के लक्ष्मी, राजगीर दर्शन, पगडंडी के नायक, मरघट के फूूल, मगध के संस्कृति, फगुनी के याद प्रकाशित है। यही नहीं, हिन्दी में-बलिदान, शहीद, संस्कृति संगम, आस्था का दर्शन, लोकगाथाओं का सांस्कृतिक मूल्यांकन, बहमर्षि कुल भूषण प्रकाशित है। बजरंगी प्रकाशित होनेवाली है।

चार दशक से चल रही संस्था
1968 से रत्नाकर से साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं। 1968 में मगही मंडप वारिसलीगंज का गठन हुआ था। तब सारथी पत्रिका का प्रकाशन किया जाता था। लेकिन बीच में बंद हो गया था। 2000 से  बिहार मगही मंडप वारिसलीगंज का गठन किया। उसके बाद सतत नाम से पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।

सम्मान- रत्नाकर को साहित्य मार्तण्ड और राष्ट्रीय हिन्दी सहस्त्राबदी सम्मान के अलावा कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुका है।

प्रेरणादायी रही है रामधारी सिंह दिनकर की कविता-
जली अस्थियां बारी बारी, छिटकाई जिसने चिंगारी, जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर, लिए बिना गर्दन की मोल 
कलम आज उनकी जय बोल, अंधा चकाचौंध  का मारा, कया जाने इतिहास बेचारा, साक्षी है उनकी महिमा का
                         सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल, कलम आज उनकी जयबोलं

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