Monday 8 February 2016

पुस्तक समीक्षा/वर्षावन की रूपकथा- बादलों के संग कहानियों की अच्छी युगलबंदी, वर्षावन की रूपकथा










डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
         21वीं सदी के आखिरी दौर में हिन्दी समाज का दायरा बहुत तेजी से वैश्विक हुआ है। सचमुच लोकल से ग्लोबल का क्या संबंध है, इसका अध्ययन न सिर्फ भारत की हिंदी पटट्ी बल्कि दक्षिण भारत में भी करीब से देखना आनंदपूर्ण और विश्मयकारी है। झारखंड में स्थित दुनिया के एक मात्र एंग्लो इंडियन ग्राम पर केन्द्रित अपने उपन्यास से हिन्दी साहित्य में तेजी से चर्चा में आए विकास कुमार झा ने दरअसल साहित्य की उस नई धारा में मजबूती से पतवार थामीं है। इसमें स्वयं लेखक के शब्दों में जीवन में सच्चाई और वास्तविकताएं ही उतनी उद्भूत है कि कोरी कल्पणाओं का सहारा लेने की बहुत आवश्यकता नही। 
विकास कुमार झा का नया उपान्यास ‘वर्षावन की रूपकथा’ फिर से इस बात की तस्तीक करता है कर्नाटक के सिमोगा जिले के तीर्थहल्ली तालुका में सघन वर्षावन के बीच बसे मनोहर ग्राम अगुम्बे के 95 फीसदी पात्र उतने ही सजीव और वास्तविक है, जिनसे पाठक मैकलुस्कीगंज के पाठकों की भांति उनका नाम पुकार के मिल सकता है। सचमुच कितना यह मधुर रोमांच है कि आप उपन्यास के विस्तृत समाज से गुजरते हुए पात्रों से परिचय कर खुश हो सकते हैं। कभी इस सही नाम वाले वास्तविक पात्र से मिलना भी हो सकता है।
कहते हैं कि पत्रकारिता जल्दबाजी का साहित्य है। लेकिन विगत चार दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय रहे विकास झा ने अपने उपन्यासों की इस नई धारा से यह भरसक साबित किए हैं कि पत्रकार अपनी पेशेगत दायरे में भले जल्दबाज हों लेकिन अंदर से उनका मन अधीर नही होता है। और यह कहना गैर मुनासिब नही होगा कि धीरज भरी पत्रकारिता क्या कुछ कर सकती है इसे विकास झा के सदयः प्रकाशित उपन्यास वर्षावन की रूपकथा से गुजरते हुए समझा जा सकता है।
उपन्यासों में पात्रों की जमघट है। एक पूरा का पूरा गांव, वर्षावन के बीच बसा एक पूरा अंचल, वहां की प्राकृतिक शोभा, अनवरत वर्षा के कारण वहां की मुश्किल, सबकुछ। इस सबके उपर लगातार आनंद में हिलोरे लेता वहां का जीवन। अगुम्बे को भारत का दूसरा चेरापूंजी कहा जाता है। यह गांव दुनियां में नागराज कोबरा के वास स्थान के रूप में मशहुर है। स्नेकमैन आॅफ एशिया के रूप में ख्यात रामुलस हिव्टेकर ने किंग कोबरा पर शोध के लिए यहां सघन जंगल के बीच रिसर्च स्टेशन भी खोल रखा है।
भारत के शिल्पकला, हस्तकला को प्रोत्साहित करनेवाली अपने दौर की महान हस्ती श्रीमती कमला देवी चटट्ोपध्याय के सौतेले पोते हैं रोमुलस हिव्टेकर, जिनके नाम का भारतीयकरण अगुम्बेवासियांे ने रामूजी के रूप में कर रखा है। जीवन संबंधों की ऐसी मधुरिमा वर्षावन के बीच बसे इस अंनूठे गांव में पग-पग पर मिलती है, जहां बाजारवाद के इस भीषण पागल समय में भी सौ फीसदी संयुक्त परिवार आज भी अस्तित्व में है। गांव के प्राचीन श्रीवेणुगोपाल स्वामी के अर्यक पंडित विष्णुमूर्ति भटट, गांव के सबसे बड़े घर दोडडमने की कस्तुरी अक्का, होटल चलानेवाला लिंगराज, सर्पदंश झाड़नेवाली शारदा अम्मा, गांव के हाईस्कूल के अवकाशप्राप्त हेडमास्टर कृष्णमूर्ति हेम्बार, अखबार विक्रेता बाबू शेनाॅय सरीखे सच्चे सजीव पात्र बड़े आत्मीय और निकट लगते हैं।
जंगल, पर्वत और झमझम बारिश के बीच कर्नाटक के मलनाड अंचल में स्थित अगुम्बे इसलिए कन्नड़ फिल्मों के महानायक दिवंगत शंकरनाग को तब पहली नजर में भा गया जब उन्होंने तय किया था कि आरके नारायण की अमरकृति ‘मालगुडी डेज’ पर वे सिरियल बनाएंगे। नारायण का अमर साहित्य ग्राम मालगुडी एक काल्पणिक ग्राम है। और शंकरनाग इसलिए कसमकस में थे कि काल्पणिक मालगुडी को कहां साकार किया जाय। सही लोकेशन की तलाश में वे बहुत घूमे और एक दिन अगुम्बे पहुंच गए। उन्हें पहली नजर में लगा कि यही है मालगुडी! वे आरके नारायण को भी एक बार साथ लाए और स्वयं नारायण भी अगुम्बे में धूमकर चकित रह गए कि जिस मालगुडी को उन्होंने कल्पणा से लिखा था वह कैसे यह सधन वर्षावन के बीच सांसे ले रहा है।
शंकरनाग ने तय किया कि वह पूरा गांव ही उनका सेट होगा। अगुम्बे में शूटिंग के लिए अलग से सेट लगाने की जरूरत नही है। मालगुडी डेज के बने कई दशक गुजर चुके हैं। लेकिन अगुम्बे आज भी अपनी आत्मा में मालगुडी के आलोक को बसाए हुए है। अगुम्बे गांव का मालगुडी रोड, कई ऐसे स्थल आज भी उसकी याद दिलाते हैं।
    ‘वर्षावन की रूपकथा’ एक लेखक का उस सुंदर संसार से प्यार है जिसको लेकर महान साहित्यकार दोस्तोयेव्स्की कहते हैं- ‘सुंदरता ही संसार को बचाएगी।’ स्वयं लेखक के शब्दों में सुन्दरता का मतलब-‘ठेठ अगुम्बेपन से भी है।’ प्रेम का चिरंतन आनंद, उसकी अटूट शक्ति और विहवल करूणा भी विशुद्ध अगुम्बेपन में ही है। बादलों के संग कहानियों की इस युगलबंदी में कन्नड़ सिनेमा और थियेटर, शुभंकर और अरण्या की अद्भूत प्रेमकथा है। विकास झा अपनी भूमिका में कहते हैं- अगुम्बे ने सचमुच में मुझे आनंद दिया, नश्वर में साश्वत का।

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