Sunday 1 May 2016

जो है हमारी पहचान, वह बनी है वीरान

अशोक प्रियदर्शी
नवादा जब जिला बना था। तब जन सहयोग से कलाकृतियां एकत्रित की गई थी। कुछ ही दिनों के अंतराल में नारद संग्रहालय में पांच हजार से ज्यादा कलाकृतियां एकत्रित हो गई थी। दुर्लभ कलाकृतियों के लिहाज से यह संग्रहालय महत्वपूर्ण हो गया है। इसका श्रेय नवादा के पहले जिलाधिकारी नरेंद्रपाल ंिसह को जाता है। ऐसा नही कि नवादा में इसके बाद विरासत खत्म हो गई। नवादा के गांव गांव में विरासत बिखरी पड़ी है। लेकिन सरकार और प्रशासन इस दिशा में दिलचस्पी नही दिखा रही। इसके चलते नवादा के विरासत वीरान हो गए हैं।
देखें तो, अपसढ़ गांव अपने आप में विरासत का अनुपम खजाना है। अपसढ़ में धार्मिक विश्वविधालय का अवशेष मिल चुका है। इसे नालंदा से भी प्राचीन यूनिवर्सिटी का अवशेष माना जाता है। गांव में सैकड़ों मूर्तियां बिखरी पड़ी है। यही नहीं, सपीमवर्ती पार्वती गांव भी ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह बौद्ध दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पार्वती को बौद्ध सर्किट में जोड़ने की बात कह चुके हैं। लेकिन बैरिकेटिंग के सिवा कुछ भी नही हो पाया है।
कौआकोल का देवनगढ़ में पाषाणकाल से मध्यकाल तक के अवशेष मिले हैं। यहां 85 एकड़ का गढ़ है। यहां कृष्णलोहित मृदभांड और उतरी कृष्णमार्जित भांड के टुकड़े प्राप्त हुए हैं। यहां से इसवीं सन की प्रथम शताब्दी की बनी बलराम, वासुदेव और एकांशा की मूर्ति प्राप्त हुई है। यही नहीं, कौआकोल प्रखंड का देवनगढ़, बोलता पहाड़, चामुण्डा मंदिर, जेपी आश्रम, हिसुआ का सोनसा, सीतामढ़ी का सीतामढ़ी मंदिर, नारदीगंज का हड़िया सूर्यमंदिर जैसे कई स्थल है जो नवादा की ऐतिहासिकता को दर्शाता है।
यही नहीं, बावन कोठी तिरपन द्वार, कामदार खां का मकबरा, महरथ, ओड़ो, मकनपुर, ठेरा, घनियावां, आंती, समाय, घोसतावां, डुमरावां, मड़ही, पांडेयगंगोट, महरावां, मड़रा, रानीगदर, अरण्डी, गोविन्दपुर, वैजनाथपुर, सप्तऋषि पहाड़ी, हरनारायणपुर, ओढ़नपुर, कहुआरा, मधुवन, छपरकोल, नावाडीह, नेमदारगंज, पहाड़ी बाबा का मजार, नवादा संकट मोचन मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, जैन मंदिर जैसे दर्जनों ऐतिहासिक और पौराणिक विरासत हैं। लेकिन उपेक्षा के कारण वीरान है।
       विरासत बचाओ अभियान, बिहार के संयोजक और युवा इतिहासकार डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी के मुताबिक, विरासत हमारी पहचान है। लेकिन इस पहचान को लेकर समाज सजग नही है। सरकार की नीतियों में भी नवादा उपेक्षित रहा है। अपसढ़ और पार्वती को लेकर प्रयास भी हुए। लेकिन इसकी गति काफी मंद रही है। जनप्रतिनिधि भी विरासत को बचाने के लिए गंभीरता नही दिखाए। बिहार सरकार के पहल पर एक सर्वेक्षण किया गया है। इस सर्वेक्षण में करीब आठ हजार पुरातात्विक स्थल चिंहित किए गए हैं। बिहार में करीब 6000 पंचायत है। इस लिहाज से हर पंचायत में कोई न कोई विरासत है। लेकिन अभी यह बदहाल स्थिति में गुमनाम पड़ा है।

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