Tuesday 11 October 2016

देवता’ को नही मिलेगा दारू तो नीतीश को होगी परेशानी

डाॅ अशोक प्रियदर्शी
       कई गांवों में परंपरा रही है कि देवताओं पर प्रसाद के रूप में दारू चढ़ाए जाते रहे हैं। परंपरा है कि हर रोज देवता पर देसी शराब चढ़ाए जाते हैं। इसके लिए गांवों में क्रम बना हुआ है। बिहार के नवादा जिले के सदर प्रखंड के गोनावां निवासी 70 वर्षीय शंभू मांझी की मानें तो गांवों में सदियों से डाकबाबा, गोरैयाबाबा, डीहवाल और मसानबाबा पर दारू चढ़ाए जाते रहे हैं। देसी शराब बंद हो जाने से से विदेशी शराब चढ़ा पाना मुश्किल होगा। लिहाजा, देवता पर दारू नही चढ़ पाएगा तो जिससे देवता नाराज हो जाएंगे। इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है। हालांकि एक अन्य ग्रामीण कारू मांझी कहते हैं कि दारू की जगह दूध चढ़ाए जाएंगे, ताकि भगवान नाराज नही हों। 
        हालांकि देवता की नाराजगी और प्रसन्नता का असर तो गांव तक ही सीमित रहेगा। लेकिन देसी शराब की पाबंदी में लापरवाही साबित हुई तो इसका सीधा असर राज्य सरकार पर पड़ेगा। जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बड़े उदेश्य को लेकर पहले चरण में देसी शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई है। लेकिन इसे जब सख्ती से लागू नही किया गया तब इसका सीधा असर गांव के गरीबों पर पड़ेगा। देसी दारू का सेवन गांव के गरीब लोग करते थे। इनमें वेलोग भी शामिल है जो डीहवाल, डाकबाबा, गौरयाबाबा और मसानबाबा पर दारू चढ़ाने में आस्था रखते हैं। 
         लेकिन सरकारी घोषणा के बावजूद अवैध तरीके से शराब की बिक्री होेगी तो इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ेगा। पहले जो व्यक्ति 30 रूपए की दारू से काम चला लेते थे उन्हें कालाबाजार में कई गुणा अधिक राशि खर्च करने पड़ेंगे। यही नहीं, अवैध तरीके से महुआ शराब के निर्माण पर अंकुश नही लगाए जाने का असर भी उनसबों पर ही दिखेगा। अवैध शराब से मौत का खतरा विद्यमान रहता है। सरकारी स्तर पर जो कानून बनाए गए हैं, सरकार की लचर कार्यप्रणाली रही तो इसका खामियाजा भी गरीबों को भुगतना पड़ेगा। जेल जाएंगे। सजाए होगी।ऐसी स्थिति में दारू बंद करने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब मिलेगा तब व्यवस्था की लचर कार्यप्रणाली की जवाबदेही भी नीतीश के जिम्मे होगी।
          बता दें कि राज्य में हर माह करीब 8232394 लीटर देशी शराब की खपत होती थी। जबकि 3677816 लीटर विदेशी और 3658646 लीटर बियर की खपत होती थी। बिहार में पहली अप्रैल से देशी शराब पर पाबंदी लगा दी गई है। सरकार ऐसा मान रही है कि देसी दारू पर प्रतिबंध लगाए जाने से ग्रामीणों को काफी राहत मिलेगी। जो गरीब अपनी मजदूरी का आधा दारू में खर्च कर देते थे। उनकी वह राशि बचेगी। महिलाएं पर अत्याचार की घटनाएं थमेगी। बच्चों की पढ़ाई में मदद मिलेगी। लेकिन जब विफलता होगी तो गरीबों का गुस्सा भी सरकार पर होगा। क्योंकि विफलता की कीमत गरीबों को चुकानी पड़ेगी। जाहिर तौर पर यह गुस्सा नीतीश पर भारी पड़नेवाला है। क्योंकि इनकी आबादी बड़ी है।

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