Sunday 10 January 2016

युवा इतिहासकारों के सम्मेलन में सूबे का प्रतिनिधित्व करेंगे डाॅ अशोक प्रियदर्शी, ग्वालियर में आयोजित होगा राष्ट्रीय सम्मेलन

डॉ अशोक कुमार प्रियदर्शी 
        कर्नाटक के मैसूर में इतिहास पुनर्लेखन और गौरवशाली संस्कृति की रक्षा को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर तीन दिवसीय सेमिनार आयोजित हुआ। इतिहासकारों के सम्मेलन में नवादा के पत्रकार और श्रीकृष्ण मेमोरियल काॅलेज के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के लेक्चरर डाॅ. अशोक कुमार प्रियदर्शी ने लेक्चर दिया। डाॅ प्रियदर्शी ने रेवरा आंदोलन में महिलाओं की संघर्षपूर्ण भूमिका पर पक्ष रखा। रेवरा गांव में जमींदारों के अत्याचार से पुरूष जब हार मान गए थे तब महिलाएं लाठियां उठा ली थी। इसके लिए डाॅ प्रियदर्शी को यूनिवर्सिटी आॅफ मैसूर के वीसी प्रो केपी रंगप्पा और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के अध्यक्ष डाॅ सतीश मितल ने सर्टिफिकेट दिया है।
यही नहीं, दो माह बाद मध्यप्रदेश के ग्वालियर में आयोजित हो रहे युवा इतिहासकारों के राष्ट्रीय सम्मेलन में डाॅ अशोक प्रियदर्शी बिहार का प्रतिनिधित्व करेंगे। एबीआईएसवाई के बिहार प्रभारी डाॅ. राजीव रंजन ने कहा कि बिहार से पांच युवा इतिहासकार सिरकत करेंगे, डाॅ प्रियदर्शी इसका प्रतिनिधित्व करेंगे। 
            डाॅ राजीव रंजन के मुताबिक, इतिहास को पुनव्र्याखित करने की जरूरत है। इतिहास पहले जो लिखा गया वह पूर्ण इतिहास नही है। यूरोपियों इतिहासकारों ने भारत के मजबूत पक्ष को नजरअंदाज किया है। गौरवशाली संस्कृति की रक्षा की जरूरत है। बता दें कि इस सम्मेलन में काॅलेज आॅफ काॅमर्स के प्रोफेसर डाॅ. राजीव रंजन, एसकेएम काॅलेज के डाॅ अशोक प्रियदर्शी, नालंदा काॅलेज की प्रो. मंजू कुमारी के अलावा इतिहासकार शैलेश कुमार, अरूण कुमार, हे गोयल, सत्येन्द्र कुमार आदि प्रतिनिधि शामिल हुए थे। 
       गौरतलब हो कि 24-26 दिसंबर को मैसूर में इंडियन कांउसिल फोर हिस्टोरिकल रिसर्च (आईसीएचआर), नई दिल्ली, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना (एबीआईएसवाई), नई दिल्ली और यूनिवर्सिटी आॅफ मैसूर द्वारा संयुक्त रूप से सेमिनार का आयोजन किया गया था। विषय था- वुमेन इन इंडियन कल्चर थ्रो द ऐजेज। सेमिनार का उदघाटन गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने किया। जबकि अध्यक्षता कर्नाटक के राज्यपाल वाजूभाई वाला ने किया। सुरेश जोशी भैयाजी सेमिनार के मुख्य अतिथि थे। इस अवसर पर प्रो.केएस रंगप्पा, डाॅ सतीश मितल, डाॅ बालमुकुंद पांडेय आदि थे।
 






क्या है रेवरा आंदोलन
          रेवरा बिहार के नवादा जिले के काशीचक प्रखंड का एक गांव है। रेवरा में जमींदारों के अत्याचार की कहानी है। स्वामी सहजानन्द ने ‘अपनी जीवन संघर्ष’ नामक पुस्तक में इन कहानियों का जिक्र किया है। किसानों के छप्पर पर जब दो कददू फलते थे, तो उनमें से एक कददू जमींदार का हो जाता था। दो बकरे में एक जमींदार का होता था। गांव के करीब डेढ़ हजार विगहा जमीन को निलाम करवा लिया गया था। 500-600 व्यक्ति चिथरा पहने भूखो मरते थे। लड़कियां बेचीं जा रही थी। जमींदार उससे भी आधे मूल्य जमींदारी और बकाए लगान में वसूल रहे थे। जुल्म सितम का आलम यह था कि-एक बार गांव वालांे से दूध की मांग की गई थी। जब जमींदार के कारिंदे ने कहा कि गांव में दूघ नही है तब जमींदार ने औरतों को दूह लाने का निर्देश दिया था। जमींदारों के अत्याचार से जब पुरूष हार मान गए थे। तब महिलाएं लाठियां उठा ली थीं। आखिर में जमींदारों को समझौता करना पड़ा था।
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