Monday 10 October 2016

साकेत बिहारी प्रसाद सिंह- जिन्होंने दे दी पूरी जवानी, उनका सेनानियों के शिलापट पर नाम तक नही

अशोक प्रियदर्शी
     बात 79 साल पहले की है। साकेत बिहारी प्रसाद सिंह मध्यप्रदेश के खंडवा से मैट्रिक की पढ़ाई के बाद छुट्टी में घर लौटे थे। तब सत्रह साल की उम्र थी। तभी उनके घर के सामने एक तिरंगा झंडा फहर रहा था। ब्रिट्रिश पुलिस उस झंडे को लेकर उनके हवेली को घेर लिया था। टोप से घर को उड़ाने की बात की जा रही थी। तभी साकेत बिहारी के चाचा त्रिवेणी सिंह ब्रिट्रिश अधिकारी के सामने आए। अधिकारी और उनके चाचा से तकरार हो गया। तभी साकेत बिहारी भी उलझ गए। फिर धीरे धीरे बहुत लोग एकत्रित हो गए। उसके बाद अंग्रेज अधिकारी को वापस लौटना पड़ा था।
यह घटना बिहार के नवादा जिले के हिसुआ थाना के मंझवे गांव निवासी साकेत बिहारी का रास्ता बदल दिया। जमींदार परिवार था। परिवार चाहते थे कि वह पढ़ाई करें लेकिन साकेत बिहारी ने आंदोलन का रूख चुना। वह स्वतंत्रता सेनानी चाचा त्रिवेणी सिंह के अनुयायी बन गए। वह अंग्रेज की नीतियों का विरोध करने में जुट गए। कई विवाद हुए। लेकिन पीछे नही हटे। 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का नारा दिया था। तब साकेत बिहारी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए। बिहारी बताते हैं कि वह साथियों के साथ रेलवे पटरी को नुकसान किया था। हिसुआ थाना मंे उत्पात मचाया। ढ़ाढ़र पुल को क्षति पहुंचाया।

शादी के आठ माह बाद चले गए जेल
साकेत बिहारी की अंग्रेजों ने तलाशी तेज कर दी। काफी दिनों तक फरार रहे। लेकिन उन्हें वजीरगंज के समीप गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद उन्हें हिसुआ में तत्कालीन एसडीओ एसडीओ पुष्कर झा के सामने लाया गया। तत्कालीन एसडीओ ने उनसे पूछा कि कसूर किया है। साकेत बिहारी कहते हैं कि उन्होंने हां में जवाब दिया। उसके बाद उन्हें हजारीबाग जेल में भेज दिया। हालांकि उनके बड़े भाई अवध बिहारी सिंह माफी मांग ली थी। उन्हें छोड़ दिया था। परिजनों ने उन्हें फटकार भी लगाई। बता दें कि साकेत बिहारी की गिरफ्तारी के आठ माह पहले बृजकुमारी देवी से शादी हुई थी।

हजारीबाग जेल में श्रीबाबू से मुलाकात हुई
साकेत बिहारी करीब छह माह तक हजारीबाग जेल में रहे। उस दौरान बिहार केसरी डाॅ श्रीकृष्ण सिंह से मुलाकात हुई थी। श्रीबाबू उनपर विशेष ख्याल रखते थे। उस जेल में उनके बहनोई पंडित रामनंदन मिश्र और लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी साथ रहते हैं। तब साकेत बिहारी ने उनसे मिलने के लिए पत्र भेजा था। लेकिन वह पत्र जेल सुप्रींटेडंेट को हाथ लग गया। वह साकेत बिहारी को सेल बेड़ी में डालने जा रहा था। लेकिन बंदी साथियों ने बीच बचाव किया, उन्हें सेल में नही डाला गया।

नेहरू, गांधी, सुभाष, जेपी, सहजानंद का सानिध्य पा चुके हैं साकेत बिहारी
साकेत बिहारी को महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, स्वामी सहजानंद सरस्वती, जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद समेत देश के बड़े बड़े आंदोलनकारियों का सानिध्य पाने का अवसर मिला है। 1944 में जहानाबाद और मसौढ़ी में सांप्रदायिक दंगा हुआ था। तब महात्मा गांधी और अब्दुल गफ्फार खां आए थे। जहानाबाद डाक बंगला में महात्मा गांधी की सेवा में स्वयंसेवक के रूप में साकेत बिहारी भी थे। रामगढ़ सम्मेलन में सुभाषचंद्र बोस से बातचीत करने का अवसर मिला था। पढ़ाई के समय लहेरियासराय में स्वामी सहजानंद सरस्वती से मुलाकात हुई थी। सक्रिय सेनानी के कारण जवाहर लाल नेहरू से भी मिलने का मौका मिला है।

कई दिग्गज पधार चुके हैं उनके घर
साकेत बिहारी की उम्र बीत गई। लेकिन उनकी यादें आज भी ताजा है।  वह कहते हैं कि उनके घर में कई दिग्गज पधार चुके हैं। चाचा त्रिवेणी सिंह की जब तबियत खराब हो गई थी तब राजेन्द्र प्रसाद कई दिनों तक रूके थे। यही नहीं, जेपी जब हजारीबाग से भागे थे तब कई दिनों तक उनके घर में छिपे थे। यही नहीं, महात्मा गांधी के भाई मगन लाल गांधी और उनकी दो लड़कियां राधा बहन और दुर्गा बहन साकेत बिहारी के मंझवे ंिस्थत घर पर काफी समय तक रहे। दोनों परदा तोड़ो और चरखा आंदोलन चला रही थीं। इंदिरा गांधी भी उनके घर आई थीं।

लेकिन शिलापट्ट पर नाम तक नही
मंझवे निवासी 96 वर्षीय साकेत बिहारी का प्रखंड मुख्यालय हिसुआ के शिलापटट पर नाम तक दर्ज नही किया जा सका है। यही नहीं, जिले के कार्यकमों में याद भी नही किया जाता है। हालांकि उन्हें पेंशन का लाभ मिल रहा है। साकेत बिहारी के पुत्र कैलाश बिहारी प्रसाद सिंह उर्फ गोपाल प्रसाद कहते हैं प्रशासन के यह रवैया अपमानजनक है। गया से जिला का दर्जा मिले चार दशक बीत गए। लेकिन साकेत बिहारी को गया जिले का निवासी माना जा रहा है।

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