Tuesday, 11 October 2016
गिरिराज का पानी पिलानेवाला से सांसद प्रतिनिधि तक बाहरी
केन्द्रीय लघु, सूक्ष्म और मध्यम उधोग राज्य मंत्री गिरिराज सिंह के संसदीय क्षेत्र नवादा में होर्डिंग लगाकर उनके कार्यकलापों का विरोध जताया गया है। शुक्रवार की सुबह नगर के प्रजातंत्र चैक पर होर्डिंग लगाकर विरोध दर्ज कराई गई है। नवादा जनता के नाम से जारी इस होर्डिंग के माध्यम से संसदीय क्षेत्र के लोगों की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया गया है। होर्डिंग के जरिए बाहरी लोगों को प्रश्रय देने की बात कही गई है। लगाए गए होर्डिंग के मुताबिक, सांसद के बाहरी होने के आलावा सांसद प्रतिनिधि और भाजपा जिलाध्यक्ष भी बाहरी बनाए गए हैं। यही नहीं, मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा रखे गये आठ पीए और स्टाफ भी बाहरी हंै। यहां तक की पटना से दिल्ली तक पानी पिलाने वाला व्यक्ति भी बाहरी रखा गया है। इसके पहले संसदीय क्षेत्र के बरविगहा मे भी एक पोस्टर लगाकर मंत्री के कार्यकलाप पर सवाल उठाए गए थे। पोस्टर में सांसद का लापता होने का जिक्र किया गया था। हालांकि बाद मंे सांसद ने कहा था कि विरोधियों की साजिश है। जुलाई माह मंें विश्व हिंदू परिषद आौर बजरंग दल के नेताओं ने भी पुतला जलाकर सांसद का विरोध किया था। असंसदीय शब्दों का आरोप था।
इधर, एक बार फिर केन्द्रीय राज्य मंत्री के संसदीय क्षेत्र नवादा के प्रजातंत्र चैक पर होर्डिंग लगाकर उनके क्रियाकलापों पर सवाल उठाया गया है। हालांकि शाम में उस होर्डिंग को उनके समर्थकों ने हटा दिया। लेकिन यह होर्डिंग सोशल मीडिया पर ट्रंेड कर जाने के कारण लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया। लोग उनके पक्ष और विपक्ष में प्रतिक्रिया देने लगे हैं। बता दें कि करीब 13 माह बाद जिलाध्यक्ष का चयन हुआ है। शशिभूषण कुमार बबलू को जिलाध्यक्ष चुना गया है। इस पद के लिए छह उम्मीदवार थे। बबलू को चुने जाने की शिकायत पटना कार्यालय तक पहुंचा था। बबलू को गिरिराज समर्थक बताया जाता है। बबलू का पैतृक गांव नालंदा जिला है। जबकि सांसद प्रतिनिधि बिटटू शर्मा जहानाबाद जिला के हैं। हालांकि इस संबंध में मंत्री से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई। लेकिन कई दफा फोन काॅल के बाद भी जवाब नही मिला। हालांकि इसके पहले सांसद प्रतिनिधि के सवाल पर मंत्री का तर्क था कि पूरी पार्टी उनका प्रतिनिधि है। दूसरी तरफ, सांसद प्रतिनिधि विट्टु शर्मा ने कहा कि मंत्री जी की कोई गलत मंशा नही है। मंत्रीजी संसदीय क्षेत्र का विकास चाहते हैं। विकास में बाहरी और भीतरी कोई मुदद्ा नही है।
सामाजिक तानाबाना पर केन्द्रित कहानियों का सग्रंह है बजरंगी
एक लड़की जो विवाह के पहले मां बन गई है। उस कुंवारी मां को समाज स्वीकारने को तैयार नही है। कुछ लोगों के पहल के बाद मुश्किल से उसकी शादी होती है। लेकिन उस गलती की पीड़ा उसे जीवन भर सताती है। ‘सुख की पीड़ा’ में ऐसी ही एक लड़की पर केन्द्रित कहानी है। साहित्यकार रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर की नई पुस्तक ‘बजरंगी’ समाज के दस्तूर, नियम, परंपरा और संगठन पर केन्द्रित कहानियों का संग्रह है। इसमें ‘बजरंगी’ भी एक अलग कहानी है। यह गुरू-शिष्य परंपरा पर केन्द्रित है। इसमें एक लावारिस बच्चा आगे चलकर बड़ा संत बन जाता है, जो बजरंगी के नाम से जाना जाता है।
इस कहानीसंग्रह में फगुनी एक कहानी है। इसमें माउंटेनमैन दशरथ मांझी की पत्नी फगुनी पर केन्द्रित है। यह महिला प्रधान है। फगुनी में दशरथ मांझी के दामपत्य जीवन पर केन्द्रित कहानी है। किसानों के शोषण, दोहन के खिलाफ उठी आवाज -कोलहार- की कहानी में मिलता है। एक कहानी है साहेब। इसमें साहेब बनाने में माता-पिता और भाई अपनी आहूति दे दी है। लेकिन देशी मेम के कारण ये आहूति का मतलब बदल गया है। विदेशी साहेब और मेम के रास्ते पर चलनेवाले देशी साहेबों ओर मेम के आचरणों पर यह कहानी सवाल खड़ा कर रही है।
बदला नामक कहानी बदले का नया स्वरूप है। एक जमींदार के अत्याचार से लोग गांव छोड़ देते हैं। एक ग्रामीण सुलतान मियां कोलकाता जाता है। वह धनी हो जाता है। तबतक जमींदार की हालत खराब हो जाती है। सुलतान गांव आता है। वह जमींदार से मिलने उसके घर भी जाता है। जमींदार को चिंता होती है कि सुलतान बदला लेने तो नही आया। लेकिन सुल्तान दमड़ी से भरी अटैची जमींदार की बेटी को देते हुए उसे अच्छे परिवार में जाने का आशीर्वाद देता है। बजरंगी में ऐसी 13 कहानियां है। दहनी, प्रधानजी, सरहपाद की सरकण्डवी, सुजाता का हठ, नगरवधू, उम्मीदें, नौटंकीवाली जैसी कहानियां सामाजिक ताना बाना से जुड़ा है।
किताब का नाम- बजरंगी
लेखक- राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
प्रकाशक- किताब महल
मूल्य 125 रूपए
बिहार के नवादा जिले के वारिसलीगंज प्रखंड के मकनपुर गांव निवासी रत्नाकर की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। संस्कृति संगम, आस्था का दर्शन, बलिदान, शहीद, बह्मर्षि कुल भूषण, लोक गाथाओं का सांस्कृतिक मूल्याकंन प्रमुख पुस्तक है।
देवता’ को नही मिलेगा दारू तो नीतीश को होगी परेशानी
डाॅ अशोक प्रियदर्शी
कई गांवों में परंपरा रही है कि देवताओं पर प्रसाद के रूप में दारू चढ़ाए जाते रहे हैं। परंपरा है कि हर रोज देवता पर देसी शराब चढ़ाए जाते हैं। इसके लिए गांवों में क्रम बना हुआ है। बिहार के नवादा जिले के सदर प्रखंड के गोनावां निवासी 70 वर्षीय शंभू मांझी की मानें तो गांवों में सदियों से डाकबाबा, गोरैयाबाबा, डीहवाल और मसानबाबा पर दारू चढ़ाए जाते रहे हैं। देसी शराब बंद हो जाने से से विदेशी शराब चढ़ा पाना मुश्किल होगा। लिहाजा, देवता पर दारू नही चढ़ पाएगा तो जिससे देवता नाराज हो जाएंगे। इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है। हालांकि एक अन्य ग्रामीण कारू मांझी कहते हैं कि दारू की जगह दूध चढ़ाए जाएंगे, ताकि भगवान नाराज नही हों।
हालांकि देवता की नाराजगी और प्रसन्नता का असर तो गांव तक ही सीमित रहेगा। लेकिन देसी शराब की पाबंदी में लापरवाही साबित हुई तो इसका सीधा असर राज्य सरकार पर पड़ेगा। जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बड़े उदेश्य को लेकर पहले चरण में देसी शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई है। लेकिन इसे जब सख्ती से लागू नही किया गया तब इसका सीधा असर गांव के गरीबों पर पड़ेगा। देसी दारू का सेवन गांव के गरीब लोग करते थे। इनमें वेलोग भी शामिल है जो डीहवाल, डाकबाबा, गौरयाबाबा और मसानबाबा पर दारू चढ़ाने में आस्था रखते हैं।
लेकिन सरकारी घोषणा के बावजूद अवैध तरीके से शराब की बिक्री होेगी तो इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ेगा। पहले जो व्यक्ति 30 रूपए की दारू से काम चला लेते थे उन्हें कालाबाजार में कई गुणा अधिक राशि खर्च करने पड़ेंगे। यही नहीं, अवैध तरीके से महुआ शराब के निर्माण पर अंकुश नही लगाए जाने का असर भी उनसबों पर ही दिखेगा। अवैध शराब से मौत का खतरा विद्यमान रहता है। सरकारी स्तर पर जो कानून बनाए गए हैं, सरकार की लचर कार्यप्रणाली रही तो इसका खामियाजा भी गरीबों को भुगतना पड़ेगा। जेल जाएंगे। सजाए होगी।ऐसी स्थिति में दारू बंद करने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब मिलेगा तब व्यवस्था की लचर कार्यप्रणाली की जवाबदेही भी नीतीश के जिम्मे होगी।
बता दें कि राज्य में हर माह करीब 8232394 लीटर देशी शराब की खपत होती थी। जबकि 3677816 लीटर विदेशी और 3658646 लीटर बियर की खपत होती थी। बिहार में पहली अप्रैल से देशी शराब पर पाबंदी लगा दी गई है। सरकार ऐसा मान रही है कि देसी दारू पर प्रतिबंध लगाए जाने से ग्रामीणों को काफी राहत मिलेगी। जो गरीब अपनी मजदूरी का आधा दारू में खर्च कर देते थे। उनकी वह राशि बचेगी। महिलाएं पर अत्याचार की घटनाएं थमेगी। बच्चों की पढ़ाई में मदद मिलेगी। लेकिन जब विफलता होगी तो गरीबों का गुस्सा भी सरकार पर होगा। क्योंकि विफलता की कीमत गरीबों को चुकानी पड़ेगी। जाहिर तौर पर यह गुस्सा नीतीश पर भारी पड़नेवाला है। क्योंकि इनकी आबादी बड़ी है।
‘बच्चा’ जब किसी की गोद में खेलेगा नहीं तो बढेगा कैसे
अशोक प्रियदर्शी
हम सब जानते हैं कि किसी बच्चा का परवरिश तभी ठीक से होता है जब उसकी देखभाल ठीक से की जाती है। जरूरी नही कि बच्चा सिर्फ मां की गोद में ही खेले। बच्चा को जिस किसी का गोद प्यारा लगता है उस गोद में खेलने लगता है। इसमें चैकने और चैकानेवाली क्या है!
दरअसल हम उस बच्चा की बात कर रहे हैं जो बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह पिछले 11 जून को पुलिस के हत्थे चढ़ा है। बिहार में टाॅपर घोटाले का मास्टर माइंड वैशाली के कीरतपुर स्थित वीआर काॅलेज के प्रिसिंपल अमित राय उर्फ बच्चा राय ने पुलिस के समक्ष कई जानकारियां दी है।
बच्चा ने पुलिस को बताया कि उसे एक केन्द्रीय मंत्री से मधुर संबंध रहे हैं। वह उनके काॅलेज आते जाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक केन्द्रीय मंत्री की मदद से मेडिकल काॅलेज खोलने की योजना थी। बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने केन्द्रीय लघु सूक्ष्म और उधोग राज्य मंत्री गिरिराज सिंह के साथ बच्चा राय की तस्वीर को ट्वीट करते हुए बीजेपी नेताओं से जवाब मांगा। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद ने भी जवाब मांगा।
जवाब में गिरिराज सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बच्चा राय की तस्वीर को ट्वीट कर जवाब मांगा है। यही नहीं, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के साथ बच्चा राय की भी तस्वीर पोस्ट की गई है। गिरिराज सिंह ने अब तेजस्वी से जवाब मांगा है।
जाहिर तौर पर ऐसे तस्वीरों से आम आदमी गुमराह होती रही है। शायद सियासी नेताओं का मकसद भी यही है। लेकिन समझनेवाली बात यह है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था में बच्चा राय अकेला नही है। नाम बदले हुए हो सकते हैं, लेकिन सैकड़ों बच्चा राय’ है। यह भी सही है कि ये बच्चा अकेले दम पर इतनी गड़बड़ी कर भी नही सकता।
दरअसल, ऐसे बच्चा और सियासी नेताओं के बीच गहरे ताल्लुक रहे हैं। यही नहीं, इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदार भी रहे हैं। यह बच्चा राय की करतुत उसी कड़ी का हिस्सा रहा है। देखें तो, बच्चा राय जब गिरफ्तार हुआ था तब एक फोन पर उसे निकलने का अवसर दे दिया गया। उसके बाद 11 जून को पुलिस कस्टडी में आया तब कैमरे बंद होते ही वह पुलिस से एक ही सवाल करता था-अबतक किसी का फोन नही आया!
बिहार में चूहा और बिल्ली का खेल, जानें कौन है चूहा, कौन है बिल्ली
अशोक प्रियदर्शी
बिहार में नीतीश कुमार की अगुआई में महागठबंधन
की सरकार छह माह पूरी कर ली है। इस दौरान नीतीश सरकार बिहार में पूर्ण शराबबंदी का
ऐतिहासिक फैसला लेकर देश और दुनिया में दृढ़ संकल्प का संदेश देने की कोशिश किया
है। महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण
का प्रावधान किया गया हैं। महागठबंधन की सरकार चुनाव के पहले किए गए सात निश्चय के
वादे को पूरा करने के लिए कैबिनेट से मंजूरी प्रदान कर दी है। युवा पीढ़ी को शिक्षा,
कौशल विकास, सभी गांवों में बिजली कनेक्शन, हर
घर को नल से पानी और सड़क जैसे काम शामिल है।
लेकिन महागठबंधन की यह सरकार उस अवधारणा को दूर
कर पाने में विफल रही है, जिसे लेकर विरोधी सवाल उठाते रहे हैं। 20
नवंबर 2015 को बिहार में जब कांग्रेस के समर्थन से जदयू प्रमुख नीतीश कुमार और
राजद प्रमुख लालू प्रसाद के महागठबंधन की सरकार बन रही थी तब विरोधी सवाल उठा रहे
थे कि यह सरकार चलनेवाली नही है। यह अवसरवादियों की सरकार है। दरअसल, बिहार
सरकार के दो बड़े साझेदार आपस में चूहा और बिल्ली का खेल खेल रहे हैं। यह आपको तय
करना है कि कौन चूहा है और कौन बिल्ली!
वैसे दोनों बड़े नेता चट्टानी एकता के दावे करते रहे हैं। लेकिन शायद ही कोई अवसर
रहा हो जब एक दूसरे को मात देने से चूक रहे हों।
देखे
तों, 20 नवंबर को सरकार की उपलब्धियों को गिनाने का दिन था। लेकिन सरकार
सबसे बड़े सहयोगी राजद के दिग्गज नेताओं ने नीतीश कुमार की कार्यशैली पर सवाल उठा
रहे थे। सता पक्ष के लोग ही विपक्षी की भाषा बोल रहे थे। राजद नेता तसलीमुददीन ने
कहा कि बिहार में जंगलराज नही महाजंगलराज है। नीतीश मुखिया बनने लायक नही हैं। डाॅ
रघुवंश प्रसाद सिंह और प्रभुनाथ सिंह ने भी नीतीश कुमार की कार्यशैली पर सवाल
उठाये। जदयू भी पीछे नही रही। जदयू नेता श्याम रजक, संजय
सिंह ने भी प्रतिवाद किया। हालांकि लालू प्रसाद के दखल के बाद यह मामला शांत हो
गया है। लेकिन संशय खत्म नही हुआ है।
दरअसल,
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के एक मंच पर
आने की बात हो रही थी। तब लोगों को भरोसा नही हो रहा था कि पुराने दुश्मनी को
भूलाकर दोनों साथ आ पाएंगे। तब दोनों नेताओं ने एक मंच पर आकर संदेश दिया कि
सियासत में कोई स्थायी दोस्त और स्थायी दुश्मन नही होता। नीतीश भाजपा से 17
साल पुरानी दोस्ती तोड़ लिया और लालू से 20 साल पुराने
सियासी दुश्मनी को भूलाकर उनके साथ आ गए।
अजीबोगरीब
स्थिति है कि दोनों नेताओं के दलों की सरकार है। लेकिन अपवाद को छोड़ दें तो दोनों
नेता मंच साझा करने से परहेज करते रहे हैं। जबकि दोनों दल विलय की बात करते रहे
हैं। लेकिन यूपी चुनाव को लेकर दोनों दलों की अलग अलग रणनीति है। यही नहीं,
बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद लालू प्रसाद की पहली
प्रतिक्रिया थी कि नीतीश कुमार बिहार संभालेंगे, जबकि वे
(लालू प्रसाद) देश में सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। लेकिन अब
परस्पर विरोधी हालात हैं। नीतीश कुमार संघमुक्त भारत अभियान की शुरूआत की है।
नीतीश कुमार अपनी ब्रांडिंग के लिए प्रशांत किशोर की मदद ले रहे हैं।
दूसरी तरफ, लालू प्रसाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के
करीबियों से मेलजोल दिखा रहे हैं। नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद बाबा रामदेव से लालू
प्रसाद चेहरे चमका रहे हैं। यही नहीं, लालू प्रसाद
उपमुख्यमंत्री पुत्र तेजस्वी यादव के साथ केन्द्रीय परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी और
रेल मंत्री सुरेश प्रभु के साथ मुलाकात की सरकारी स्तर पर प्रकाशित विज्ञापनों से
भी संशय की स्थिति उत्पन्न हो रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री
तेजस्वी यादव के अलग अलग विज्ञापन प्रकाशित होते रहे हैं। हालांकि दोनों दलों के
नेता इसे सुप्रीम कोर्ट का हवाला दे रहे हैं कि सरकारी विज्ञापन पर एक बार में एक
ही चेहरे हो सकते हैं। लेकिन सवाल यह उठाए जा रहे हैं कि ऐसी क्या परिस्थितियां है
कि दोनों को बारी बारी से अलग अलग तस्वीर छापनी पड़ रही है।
दरअसल, 15 साल तक लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी
सता में रही हैं। तब नीतीश कुमार विरोध की राजनीति करते थे। उसके बाद जब नीतीश दस
साल सता में रहे तब लालू प्रसाद विरोध की राजनीति करते रहे। विगत 25
सालों के अंतराल में दोनों नेताओं के बारे में समाज में सता और विपक्ष के रूप में
अवधारणा बनी है। 2015 के चुनाव में उस अवधारणा से अलग दोनों सता में
आ गए हैं। लेकिन चूहा और बिल्ली के इस खेल से समाज में व्याप्त पुराने अवधारणा से
लोगों को मुक्त नही कर पाएं हैं।
यही नहीं, पिछले छह
माह में बिहार सरकार कथित तौर पर उस जंगलराज की अवधारणा को नही खत्म कर पाई है,
जिसे लेकर विरोधी सवाल खड़ा करते रहे हैं। अपराध की बड़ी घटनाओं में
बढ़ोतरी हुई है। मुश्किल कि सतापक्ष के दर्जनभर जनप्रतिनिधि और उनके परिजनों ने कई
ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया। इससे बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। गैंगवार
की घटनाएं शुरू हो गई है। चिकित्सक और व्यवसायी पर हमला बढ़ गए हैं। लेकिन कठोर कदम
उठाने मंे पुलिस और प्रशासन की फूंक फूंक कर कदम रख रही है। इसकी वजह महागठबंधन
दलों के बीच चूहे और बिल्ली का खेल रहा है।
यही वजह है कि अपराध नियंत्रण पर ठोस कार्रवाई करने के बाद भी सरकार के हाथ
खाली रह जा रहे हैं। इसका श्रेय मीडिया और विरोधी उठा रहे हैं। गया रोडरेज प्रकरण
में सरकारी पहल के बाद गया की जदयू एमएलसी मनोरमा देवी को सरेंडर करना पड़ा। उसके
पुत्र राॅकी और पति बिंदी यादव को जेल भेज दिया गया। देखें तो, एमएलसी
परिवार पर एफआईआर करने में 26 घंटे का समय लग गया। इसके पहले नवादा
के राजद विधायक के प्रकरण में भी ऐसा ही दिखा। वह एक माह बाद अपनी मर्जी से सरेंडर
किया। लेकिन विधायक के खिलाफ तीन दिन बाद रेप की प्राथमिकी दर्ज हुई। राजबल्लभ एक
माह तक आंखमिचैनी खेलते रहा, लेकिन पुलिस गिरफ्तार करने की साहस नही
दिखा पाई। पुलिस औपचारिकताएं पूरी करती रही।
दरअसल,
नीतीश कुमार की यह कार्यशैली 2005 की छवि
से अलग करता है। नीतीश जब मुख्यमंत्री बने थे तब उनके दल के एक विधायक ने होटल में
हंगामा किया था। तत्काल जेल भेज दिया गया था। लेकिन अब गंभीर अपराधों के आरोपी
प्रतिनिधियों और उनके परिजनों पर कार्रवाई में भी काफी वक्त लग रहे हैं। संभव हो
सियासत का हिस्सा रहा हो। लेकिन ऐसी सियासत से नागरिकों का भरोसा टूट रहा है,
जिन्होंने आप पर भरोसा किया है। दरअसल, एक पक्ष
को लगता है कि बदनामी वाला पार्ट उन्हें नही दागदार बना पाएगा। जबकि दूसरे पक्ष को
लगता है कि जब श्रेय आपको मिलेगी तब बदनामी से कैसे पीछा छूड़ाएंगें।
बधाई दीजिए! लालूजी के घर लक्ष्मी आई हैं
अशोक प्रियदर्शी
बिहार में राज्ससभा की पांच सीटें जुलाई में खाली हो रही है। इसमें दो सीटें राजद के हिस्से में गई। एक सीट सीनियर एडवोकेट राम जेठमाली, जबकि दूसरा सीट डाॅ मीसा भारती को दी गई है। दोनों निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं। अब मीसा भारती राज्यसभा सांसद निवार्चित हो गई हैं। हमसबों को मीसा भारती को बधाई देने का वक्त है। यह इसलिए कि जो कदम लंबी मांग के बाद भी कांग्रेस नही पूरी कर पाई वह काम राजद प्रमुख लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने पूरी कर दी है। लालू दंपति ने बड़ी बेटी डाॅ मीसा भारती को यह अवसर दिया है।
देखें तो, कांग्रेस लगातार खराब प्रदर्शन कर रही है। इस हार के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी निशाने पर रहे हैं। मौके बे मौके कांग्रेसी नेता और कांग्रेस को चाहनेवाले लोग प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारने की मांग करते रहे हैं। लेकिन अबतक प्रियंका गांधी को नही पार्टी का दायित्व और नही किसी सदन का प्रतिनिधित्व का अवसर दिया गया है। इसके लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्रमोह को जिम्मेवार ठहराया जाता रहा है। यही कारण है कि प्रियंका ऐसे अवसर से वंचित रही हैं। हालांकि प्रियंका ने कभी अपनी इच्छा जाहिर नही की है।
दरअसल, सियासत में महिलाओं की भागीदारी की बात उठती रही है। देखें तो, ज्यादातर सियासी घराने बेटियों को राजनीति में मौका देने से परहेज करते रहे हैं। अपवाद को छोड़ दें तो ज्यादातर सियासी घराने बेटे को ऐसा अवसर देते रहे हैं ताकि उनकी सियासी वंश परंपरा कायम रहे। वह बेटा चाहे कितना भी अयोग्य क्यों ना हो, लेकिन पहला अवसर उसी बेटे को दिए जाते रहे हैं। उससे बचा तो पत्नी की बारी आती है। उससे आगे पुत्रवधू तक जाता है। लेकिन बेटियों के साथ पराए जैसा बर्ताव किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बेटियों को राजनीति में उतारने के बाद सियासी ठिकाना भी बेटी के साथ ससुराल चली जाती है। ऐसी आशंका से सियासी धराने बेटियों को ऐसे अवसर से वंचित करते रहे हैं।
ऐसे में मीसा भारती को उतारना हैरान करनेवाली बात है। हालांकि यह भी स्वभाविक नही है। चूंिक लालू राबड़ी परिवार में फिलहाल कोई ऐसे नही बचे हैं, जिन्हें सियासी अवसर दिया जाय। तब मीसा को राज्यसभा का अवसर मिला है। देखें तो, दोनों बेटे पर सरकार चलाने का दायित्व है। तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और तेजप्रताप स्वास्थ्य मंत्री है। जबकि मीसा विधानसभा चुनाव के समय से ही सक्रिय थीं। उम्मीद की जा रही थी कि मीसा को भी दायित्व मिलेगी। लेकिन तब कोई जवाबदेही नही दी गई थी। बहरहाल, बिहार में लालू प्रसाद का अकेला परिवार है, जिनके परिवार के चार सदस्यों को सदन में प्रतिनिधित्व का अवसर मिला है। लालू की पत्नी, दो बेटे और बेटी सदन में हैं।
देखें तो, मेनका गांधी-वरूण गांधी, रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान, राजेश रंजन और उनकी पत्नी रंजिता रंजन , इंदिरा गांधी-संजय गांधी, सोनिया गांधी-राहुल गांधी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया-माधवराव सिंधिया, डाॅ जगन्नाथ मिश्र-नीतीश मिश्रा, नागेन्द्र झा-मदनमोहन झा समेत कई उदाहरण रहे हैं, जिसके जरिए बाप-बेटे, पति-पत्नी और सगे संबंधियों को सियासत में अवसर दिए जाते रहे हैं। लेकिन लालू और मीसा जैसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। लिहाजा, मीसा को राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया जाना महिलाओं के लिए स्वागत योग्य कदम है।
शराबियों को हो गया है भगवान से प्यार, जपने लगे हैं राधे राधे
अशोक प्रियदर्शी
राधे..राधे, राधे...श्याम, राम...राम, इंद्र भगवान और रामचंद जैसे शब्द साधु संतों की जुबान से सुनने को मिलती रही है। लेकिन बिहार में अब शराबी भीराधे..राधे, राधे...श्याम, राम...राम जैसे शब्दों की जाप करने लगे हैं। इसका मतलब यह कदापि नही कि शराबियों का हृदय परिवर्तन हो गया है। बल्कि शराबियों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शराब के विभिन्न ब्रांडों का नाम का भगवानीकरण कर दिया है। इन शब्दों का प्रयोग बड़े ही सहजता से कर रहे हैं।
बिहार के नवादा में शराबियों, दलालों और उसे पहुंचानेवालों के बीच कुछ इसी तरह के शब्दों का प्रयोग कर शराब की तस्करी चल रही है। दरअसल, इसकी जानकारी तब मिली जब कई शराबियों की जुबान से जब भगवान का नाम सुनने को मिला। उत्सुकता जगी कि क्या शराबी भक्ति मार्ग पर चल दिए हैं। इस बारे में जब जानकारी जुटाई तब पता चला कि इन शब्दों का प्रयोग शराबियों और कारोबारियों के बीच शराब के कारोबार के लिए उपयोग किया जा रहा है।
कौन कौन ब्रांड का कैसे हो रहा प्रयोग
आमतौर पर बात की शुरूआत राधे राधे से सुनने को मिलती है। उसके बाद शराब के ब्रांडों के लिए अलग अलग तरीके से नाम लिया जाता है। जानकारी के मुताबिक, राधेश्याम का मतलब राॅयल स्टेज, राम चंद्र यानि राॅयल चैलंेज, इंद्र भगवान यानि इंपेरियल ब्लू, राम यानि रम के नाम से बात की जाती है। यही नहीं, बिहार पुलिस का नाम भी शराब के ब्रांड के तौर पर लिया जा रहा है। बिहार पुलिस यानि ब्लेंडर प्राइड।
कैसे चल रहा कारोबार
शराबबंदी के बाद अवैध तरीके से यह कारोबार तेजी से पनप रहा है। सूत्रों के मुताबिक, झारखंड से आनेवाले शराबों या फिर बाजार में उपलब्ध शराबों का नाम लेने पर दिक्कते नही हो। इसलिए इस तरह का नाम दिया गया है। शराबों की बिक्री दोगुणा और ढाईगुणा दामों पर की जा रही है। घर पर डिलीवरी करने के लिए प्रति बोतल 50 से 100 रूपए अधिक भुगतान करना पड़ता है। बाजार में फिलहाल राॅयल स्टेज, इम्पेरियल ब्लू, राॅयल चैलेंज, ब्लेंडर प्राइड, मैकडाॅयल नम्बर वन, बैग पाइपर की बिक्री हो रही है। रम की बिक्री कम बतायी जा रही है। इसकी मांग जाड़े में अधिक रहती है।
बातचीत का संक्षिप्त अंश
शराबी- राधे राधे, क्या हाल है आपके राधे श्याम (राॅयल स्टेज) जी का। मिलना था।
कारोबारी- ठीक ठाक हैं। समय बताइए, कब मिलना है, कहां मिलना है।
शराबी- पांच बजे शाम में। घर पर ही रहेंगे।
कारोबारी- ठीक हैं भेज देंगे।
इमपेरियल ब्लू का अंश
शराबी-क्या हाल है।कैसा मौसम है। इंद्र भगवान बरस रहे हैं।
कारोबारी-यहां इंद्र भगवान की पूरी कृपा है। जलमग्न है। आप कहें तो आपको भी इंद्र भगवान से दर्शन करा दें।
शराबी- इस सुखाड़ में इंद्र भगवान का दर्शन हो जाता तब बढिया था।
कारोबारी- चलिए ठीक है। आप भी इंद्र भगवान का मजा लीजिए। भेजते हैं उनको।
बिहार पुलिस
शराबी- इंसपेक्टर साहब प्रणाम। कहां है आपका बिहार पुलिस। इधर भेट नही कर रहा है। काम है।
कारोबारी (इंसपेक्टर के रूप में)- ठीक है। भेज देते हैं। मन भर मिल लीजिए।
शराबी-ठीक है उसका इंतजार करेंगे।
रामचंद्र यानि राॅयल स्टेज
शराबी- क्या हाल है आपके मंदिर का।
कारोबारी -रामचंद्र जी के रहते कोई दिक्कत नही हैं। रामजी के अलावा इंद्र भगवान, राधे श्याम भी हैं।
शराबी- कितने भाग्यवान हैं आप। मुझे भी किसी भगवान से दीदार करा दीजिए।
कारोबारी- आइएगा। या फिर रथ (जीप) जा रही है। वहीं दर्शन कर लीजिएगा।
राधे श्याम यानि राॅयल स्टेग...., रामचंद यानि राॅयल चैलेंज....इंद्र भगवान यानि इम्पेरियल ब्लू....
डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
राधे..राधे, राधे...श्याम, राम...चंद्र, इंद्र भगवान, राम राम जैसे शब्द साधु संतों की जुबान से सुनने को मिलती रही है। लेकिन बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद शराबियों की जुबां से ऐसे शब्द सुनने को मिलने लगे हैं। लेकिन इसका मतलब यह कदापि नही कि शराबियों का शराब से मोह भंग हो गया। बल्कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शराब के विभिन्न ब्रांडों का नाम का ही भगवानीकरण कर दिया है। ताकि ऐसे शब्दों का प्रयोग बड़े ही सहजता से किया जा सके। लोगों को इसकी भनक तक नही लग सके।
बिहार में शराबियों, दलालों और घर घर शराब पहुंचानेवालों के बीच यह नाम काफी लोकप्रिय है। भगवान के नाम पर शराबों की व्यापक पैमाने पर तस्करी हो रही है। दरअसल, शराबियों की जुबान से भगवान का नाम सुनने को मिलने लगी तब उत्सुकता जगी क्या शराबियों ने सचमुच में भक्ति का मार्ग अपना लिया है। इस बारे में जब जानकारी जुटाई तब पता चला भगवान का नाम शराब तस्कर अपना कवच के रूप मंे इस्तेमाल कर रहे हैं। इन शब्दों का प्रयोग कर शराबियों और कारोबारियों के बीच शराब के कारोबार किए जा रहे हैं।
शराब के किस ब्रांड का किस भगवान के नाम पर हो रहा प्रयोग
आमतौर पर शराबियों और कारोबारियों के बीच बातचीत की शुरूआत राधेकृराधेकृसे होती है। उसके बाद शराब के ब्रांडों के लिए भगवान के नाम का जिक्र किया जाता है। राधे श्याम यानि राॅयल स्टेग, राम चंद्र यानि राॅयल चैलेंज, इंद्र भगवान यानि इंपेरियल ब्लू, राम यानि रम के नाम से बात की जाती है। यही नहीं, बिहार पुलिस का नाम भी शराब के ब्रांड के तौर पर लिया जा रहा है। बिहार पुलिस यानि ब्लेंडर प्राइड। ऐसे कई नाम है जो शराबियों के बीच मशहूर है।
कैसे चल रहा कारोबार
दरअसल, शराबबंदी के बाद बिहार में अवैध शराब का कारोबार तेजी से पनप रहा है। बिहार की सीमाई इलाका झारखंड, यूपी और नेपाल से व्यापक पैमाने पर शराब की तस्करी हो रही है। शराब की तस्करी में कोई परेशानी नही हो इसलिए इस तरह का नाम दिया गया है। बताया जाता है कि बाहर से आनेवाले शराबों की बिक्री दोगुणा और तीगुणा दामों पर की जा रही है। घर पर डिलीवरी करने के लिए अतिरिक्त 50-100 रूपए अधिक भुगतान करना पड़ता है। बाजार में फिलहाल राॅयल स्टेज, इम्पेरियल ब्लू, राॅयल चैलेंज, ब्लेंडर प्राइड, मैकडाॅयल नम्बर वन, बैग पाइपर की तस्करी चरम पर है। रम की बिक्री कम बतायी जा रही है। चूकिं इसकी खपत जाड़े में ज्यादा होती है।
पुलिस सख्ती के बाद भी नही थम रही शराब की कारोबार
पांच माह मंे 85171 छापेमारी हुई है। अप्रैल से अगस्त तक कुल 13190 मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें 13839 गिरफ्तारी हुई है। जबकि 13805 को जेल हुई है। सरकारी आकड़े के मुताबिक, 92291 लीटर देसी शराब, 26524 लीटर स्प्रीट, जबकि 11679 लीटर विदेशी और 9763 लीटर बीयर जब्त किया गया है।
बातचीत का अंश..
राधे श्याम यानि राॅयल स्टेग...
शराबी- राधे राधे, क्या हाल है? आपके राधे श्याम (राॅयल स्टेग) जी मुलाकात करना चाहते थे, कैसे होगा!
कारोबारी- ठीक ठाक हैं। समय बताइए, कब मिलना है, कहां मिलना है। भेज देंगे।
शराबी- पांच बजे शाम में। घर पर ही रहेंगे।
कारोबारी- ठीक हैं भेज देंगे।
इंद्र भगवान यानि इमपेरियल ब्लू ...
शराबी-क्या हाल है। कैसा मौसम है। इंद्र भगवान बरस रहे हैं।
कारोबारी- यहां इंद्र भगवान की पूरी कृपा है। जलमग्न हैं। आप कहें तो आपको भी इंद्र भगवान से दर्शन करा दें।
शराबी- इस सुखाड़ में इंद्र भगवान का दर्शन हो जाता तब बढिया था।
कारोबारी- ठीक है। आप भी इंद्र भगवान का मजा लीजिए। भेजते हैं उनको।
राम चंद्र यानि राॅयल चैलेंज..
शराबी- राधे राधे। क्या हाल है आपके दुकान का। कौन कौन भगवान की मूर्ति है? मैं भी घर के लिए एक भगवान की मूर्ति मंगवाना चाह रहा हूं।
कारोबारी - सभी भगवान हैं। रामचंद्र हैं। इंद्र भगवान हैं। राधे श्याम हैं। जिस भगवान के बारे में बताइए। पूजारी को भेज देंगे।
शराबी- राम चंद्र जी की मूर्ति भेज दीजिए।
कारोबारी- ठीक है।
बिहार पुलिस यानि ब्लेंडर प्राइड...
शराबी- इंसपेक्टर साहब प्रणाम। आपके बिहार पुलिस का क्या हाल है। मुलाकात करना था। कुछ काम है।
कारोबारी (इंसपेक्टर के रूप में)- ठीक है। भेज देते हैं। बात कर लीजिएगा।
शराबी-ठीक है इंतजार करेंगे।
रम चाहिये तो 'राम' बोलो और रॉयल स्टैग के लिए 'राधेश्याम'
4-मिनट में पढ़ें | 07-09-2016
राधे-राधे, राधे श्याम, राम चंद्र, इंद्र भगवान, राम
राम जैसे शब्द साधु संतों की जुबान से सुनने को मिलते रहे हैं. लेकिन बिहार में
शराबबंदी कानून लागू होने के बाद शराबियों की जुबां से ऐसे शब्द सुनने को मिलने
लगे हैं. इसका मतलब यह कदापि नही कि शराबियों का शराब से मोह भंग हो गया. बल्कि वह
अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शराब के विभिन्न ब्रांडों का नाम का ही
भगवानीकरण कर दिया है. ताकि ऐसे शब्दों का प्रयोग बड़ी ही सहजता से किया जा सके.
लोगों को इसकी भनक तक नही लग सके.
बिहार में शराबियों, दलालों
और घर घर शराब पहुंचाने वालों के बीच यह नाम काफी लोकप्रिय है. भगवान के नाम पर
शराबों की व्यापक पैमाने पर तस्करी हो रही है. दरअसल, शराबियों
की जुबान से भगवान का नाम सुनने को मिलने लगी तब उत्सुकता जगी क्या शराबियों ने
सचमुच में भक्ति का मार्ग अपना लिया है. इस बारे में जब जानकारी जुटाई तब पता चला
भगवान का नाम शराब तस्कर अपने कवच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. इन शब्दों का
प्रयोग कर शराबियों और कारोबारियों के बीच शराब के कारोबार किए जा रहे हैं.
ब्रांड एंबेसडर भगवान
आमतौर पर शराबियों और कारोबारियों के बीच बातचीत
की शुरुआत राधेकृष्ण राधेकृष्ण से होती है. उसके बाद शराब के ब्रांडों के लिए
भगवान के नाम का जिक्र किया जाता है. राधे श्याम यानि रॉयल स्टैग, राम
चंद्र यानि रॉयल चैलेंज, इंद्र भगवान यानि इंपीरियल ब्लू,
राम यानि रम के नाम से बात की जाती है. यही नहीं, बिहार पुलिस का नाम भी शराब के ब्रांड के तौर पर लिया जा रहा है. बिहार
पुलिस यानि ब्लेंडर प्राइड. ऐसे कई नाम है जो शराबियों के बीच मशहूर है.
ऐसे चल रहा कारोबार
दरअसल, शराबबंदी के बाद बिहार में अवैध
शराब का कारोबार तेजी से पनप रहा है. बिहार के सीमाई इलाकों, झारखंड, यूपी और नेपाल से व्यापक पैमाने पर शराब की
तस्करी हो रही है.
शराब की तस्करी में कोई परेशानी न हो इसलिए इस
तरह का नाम दिया गया है. बताया जाता है कि बाहर से आनेवाले शराबों की बिक्री दो
गुणा और तीन गुणा दामों पर की जा रही है.
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पहले
खुलेआम,
अब भगवान के नाम पर...
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घर पर डिलीवरी करने के लिए अतिरिक्त 50-100 रुपए
भुगतान करने पड़ते हैं. बाजार में फिलहाल रॉयल स्टैग, इम्पीरियल
ब्लू, रॉयल चैलेंज, ब्लेंडर प्राइड,
मैकडॉवेल नम्बर वन, बैग पाइपर की तस्करी चरम
पर है. रम की बिक्री कम बतायी जा रही है, चूंकि इसकी खपत
जाड़े में ज्यादा होती है.
पुलिस सख्ती के बाद भी
पांच माह में 85171 छापेमारी हुई है. अप्रैल से
अगस्त तक कुल 13190 मामले दर्ज किए गए हैं. इसमें 13839
लोगों की गिरफ्तारी हुई है. जबकि 13805 को जेल
भेजा जा चुका है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक, 92291 लीटर देसी
शराब, 26524 लीटर स्प्रिट, जबकि 11679
लीटर विदेशी और 9763 लीटर बीयर जब्त किया गया
है.
सौदे की बातचीत
[1]
शराबी - राधे राधे, क्या हाल
है? आपके राधे श्याम जी मुलाकात करना चाहते थे, कैसे होगा?
कारोबारी - ठीक ठाक हैं. समय बताइए, कब मिलना
है, कहां मिलना है? भेज देंगे.
शराबी - पांच बजे शाम में. घर पर ही रहेंगे.
कारोबारी- ठीक हैं भेज देंगे.
[2]
शराबी - क्या हाल है? कैसा
मौसम है? इंद्र भगवान बरस रहे हैं.
कारोबारी - यहां इंद्र भगवान की पूरी कृपा है.
जलमग्न है. आप कहें तो आपको भी इंद्र भगवान से दर्शन करा दें.
शराबी - इस सुखाड़ में इंद्र भगवान का दर्शन हो
जाता तब बढ़िया था.
कारोबारी - ठीक है. आप भी इंद्र भगवान का मजा
लीजिए. भेजते हैं उनको.
[3]
शराबी - राधे राधे. क्या हाल है, आपके
दुकान का. कौन कौन भगवान की मूर्ति है? मैं भी घर के लिए एक
भगवान की मूर्ति मंगवाना चाह रहा हूं.
कारोबारी - सभी भगवान हैं. रामचंद्र हैं. इंद्र
भगवान हैं. राधे श्याम हैं. जिस भगवान के बारे में बताइए. पुजारी को भेज देंगे.
शराबी - राम चंद्र जी की मूर्ति भेज दीजिए.
कारोबारी - ठीक है.
[4]
शराबी - इंसपेक्टर साहब प्रणाम. आपके बिहार
पुलिस का क्या हाल है. मुलाकात करना था. कुछ काम है.
कारोबारी (इंसपेक्टर के रूप में) - ठीक है. भेज
देते हैं. बात कर लीजिएगा.
शराबी - ठीक है इंतजार करेंगे.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए
हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.कॉम या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से
जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
लेखक
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं
त्रिपुरारी शरण नही रहे, लेकिन अब उनकी परिकल्पणा हो रही साकार
अशोक प्रियदर्शी, सेखोदेवरा आश्रम (नवादा)
आठ साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले में करीब 5000 परंपरागत चरखा चलता था। इसमें अकेला 1500 चरखा कौआकोल में चलता था। इस चरखा में आठ घंटे मजदूरी के बाद मुश्किल से 40 रूपए की आमदनी होती थी। लिहाजा, लोग धीरे धीरे परंपरागत चरखा से विमुख होने लगे थे। गांव गांव से चरखा लौटकर सेखोदेवरा आश्रम में लौटने लगा। सेखोदेवरा आश्रम स्थित ग्राम निर्माण मंडल की खादी संस्था घाटे में पहुंच गई।
तभी आश्रम के संरक्षक त्रिपुरारी शरण (अब जीवित नही) ने एक चरखा का माॅडल विकसित किया। यह आठ, सोलह और बतीस तकुए का था। यह परंपरागत चरखा की तुलना में सहज और अधिक उत्पादन करनेवाला है। 2009 में त्रिपुरारी शरण ने इस चरखे को पेटेंट कराया। इसका नाम त्रिपुरारी माॅडल चरखा रखा गया।
2011 में त्रिपुरारी शरण बिहार सरकार को एक प्रस्ताव भेजे थे। इसमें त्रिपुरारी माॅडल चरखा को परंपरागत चरखा के वैकल्पिक रूप में अपनाने के लिए आग्रह किया गया था। प्रस्ताव में सरकार को अवगत कराया गया कि त्रिपुरारी माॅडल चरखा खादी उत्पादन को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगा। इस चरखा से कई गुणा अधिक आमदनी होगी।
खादी बोर्ड के आदेश पर हो रहा पहल
करीब पांच साल बाद 2014-15 में त्रिपुरारी माॅडल चरखा को बिहार सरकार ने कैबिनेट से मंजूरी प्रदान कर दी। इसके लिए 44 करोड़ रूपए स्वीकृत किया गया। इस फैसले को अब बिहार राज्य खादी ग्रामोधोग बोर्ड ने लागू करने की पहल शुरू कर दी है। बोर्ड ने सेखोदेवरा आश्रम को एक हजार चरखा वितरित करने की जिम्मेवारी दी है। सेखोदेवरा आश्रम के प्रधान मंत्री अरविंद कुमार ने बताया कि एक हजार चरखा का निर्माण कर लिया गया है। बोर्ड की सूची के मुताबिक, बिहार के प्रत्येक जिलों में त्रिपुरारी माॅडल चरखा उपलब्ध कराया जाना है।
कौन थे त्रिपुरारी शरण
त्रिपुरारी शरण लोक नायक जयप्रकाश नारायण के अनुयायी थे। जेपी द्वारा सेखोदेवरा आश्रम में स्थापित ग्राम निर्माण मंडल संस्था के प्रधान मंत्री और संरक्षक रहे। बाद में वह बिहार राज्य खादी ग्रामोधोग बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। बिहार सरकार ने 2009 में त्रिपुरारी शरण को खादी पुरूष का पुरस्कार दिया गया था। दो लाख रूपए और प्रशस्ति पत्र दिया गया था। यह राशि संस्था के विकास में दे दिए थे। यही नहीं, झारखंड सरकार ने उन्हें खादी रत्न से सम्मानित किया। हालांकि 26 जून 2013 को उनका निधन हो गया। लेकिन उनका सपना अब साकार हो रहा है।
प्रयोग के तौर पर 400 चरखा चल रहा था
बिहार के नवादा और औरंगाबाद जिले में करीब 400 त्रिपुरारी माॅडल चरखा प्रयोग के तौर पर पहले से संचालित किया जा रहा था। नवादा के झीलार, कपसिया, सिंघना, रतोई, नवाजगढ़, पार्वती, लालविगहा में करीब 200 चरखा का संचालन सफल रहा है। वहीं औरंगाबाद में 200 चरखा संचालित किया जा रहा है। बता दें कि सेखोदेवरा आश्रम से प्रत्येक साल करीब एक करोड़ रूपए का खादी कपड़े तैयार किए जा रहे हैं। त्रिपुरारी माॅडल चरखा की कीमत 16 हजार रूपए है। जबकि परंपरागत चरखा की कीमत 2200 रूपए है।
सेखोदेवरा आश्रम के प्रधान मंत्री अरविंद कुमार ने कहा कि संस्था का करीब एक करोड़ 51 लाख 18 हजार 700 रूपए सरकार का बकाया है। त्रिपुरारी माॅडल चरखा के अपनाए जाने से आश्रम की आर्थिक तंगहाली दूर होगी। साथ ही खादी कपड़े की बुनाई का अस्तित्व कायम रहेगा। बुनकरों की कई गुणा आमदनी बढ़ जाएगी।
Monday, 10 October 2016
आइने में अपना चेहरा देखने से भी डरता है मिथुन
अशोक प्रियदर्शी
ग्यारह साल पहले की बात है। बिहार के नवादा जिले के नारदीगंज थाना के ननौरा पंचायत के तिलकचक गांव निवासी रामजी चैहान के पांच वर्षीय पुत्र मिथुन के गाल पर फूंसी हो गया था। फूंसी के दर्द से मिथुन काफी परेशान था। रामजी चैहान ने पड़ोसी गांव गोतराईन के एक ग्रामीण प्रैक्टिशनर से इलाज कराया। उस ग्रामीण प्रैक्टिशनर ने मिथुन को दो दवाएं दी थी। तीन दिन तक खिलाने के लिए कहा था। उन तीन दिनों के अंतराल में मिथुन का चेहरा विकृत हो गया। पूरा शरीर लाल हो गया। ग्रामीणों ने बताया कि मिथुन को माताजी हो गया है। कुछ दिनों तक ठीक होने का इंतजार किया गया। झार फूंक कराया। फिर भी स्वस्थ्य नही हुआ।
उसके बाद मिथुन के पिता ने नवादा सदर अस्पताल में दिखाया। तब चिकित्सक ने बताया कि दवा रियेक्शन कर गया है। इसके चलते ऐसी हालत हुई है। उसके बाद काफी दिनों तक इलाज कराया, फिर भी ठीक नही हुआ। दिनों दिन शरीर और भी भयावह हो गया। अब उसकी हालत इतनी भयावह है कि उसे देखते ही लोगांे के रेंगटे खड़े हो जाते हैं। बड़े तो धीरे धीरे अभ्यस्त हो गए हैं। लेकिन बच्चे सामने आने से डरते हैं। छोटे बच्चे तो चिल्लाने लगते हैं। रात में मिथुन का घर से बाहर निकलना दुश्वार है। रात में अचानक मिथुन का चेहरा देखते ही कई लोग भूत मानकर डर गए हैं। लिहाजा, परिवार के लोग अब रात में मिथुन को घर से नही निकलने देते हैं। मिथुन अपना चेहरा भी आइने में देखने से डरता है। मिथुन ठीक से बोल भी नही पाता है
मिथुन का दाखिला कराने गए पिता तब उन्हें निराश लौटना पड़ा
16 वर्षीय मिथुन जब आठ साल का था तब उसके पिता ने गांव के प्राइमरी स्कूल में दाखिला के लिए ले गए थे। लेकिन मिथुन को देखते ही स्कूल के बच्चे चिल्लाने लगे। भूत-भूत कहने लगे। लिहाजा, स्कूल टीचर ने दाखिला लेने में लाचारी व्यक्त किया। लिहाजा, दोनों वापस लौट आए। उसके बाद से मिथुन की पढ़ाई का रास्ता भी बंद हो गया। मिथुन ज्यादातर घर में रहता है। मिथुन बताते हैं कि बचपन में जो उनके साथ खेला करते थे आज वह उन्हें देखकर भागते हैं। वह डरते हैं। वह कहता है कि वह घुटन और तकलीफदेह जीवन जीने को बाध्य है। घर में मन नही लगता है तब खेतों की तरफ बकरी चराने के लिए निकल जाते हैं।
परिवारिक पृष्ठभूमि
तिलकचक निवासी रामजी चैहान के पांच बेटे मनोज, जितेन्द्र, दीपा, मिथुन, आजाद कुमार हैं। चार भाई ठीक है। लेकिन मिथुन की हालत दयनीय बनी है। वैसे काफी प्रयास के बाद मिथुन को 11 जनवरी 2015 को विकलांग सर्टिफिकेट बना। लेकिन अबतक किसी तरह की राशि नही मिली है। मिथुन को अन्य सरकारी मदद भी नही मिला है। मिथुन के पिता भी बीपीएल परिवार में हैं। लेकिन इस परिवार को भी आवास आदि की सुविधा नही मिली है। प्रत्येक माह राशन किरासन भी नही मिल पाता है। रामजी चैहान कहते हैं कि अपनी क्षमता के मुताबिक मिथुन का नवादा के अलावा गया और पटना के अस्पतालों में इलाज कराया लेकिन ठीक नही हुआ। बड़े अस्पतालों में जाने की क्षमता नही है। उनके पास सिर्फ दस कटठा जमीन है। मजदूरी से जीवन चलता है।
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