Tuesday, 11 October 2016

बीमा का लाभ



भीख मांगकर किया श्राद्ध


अनाथ बच्चे




गिरिराज का पानी पिलानेवाला से सांसद प्रतिनिधि तक बाहरी

अशोक प्रियदर्शी 
       केन्द्रीय लघु, सूक्ष्म और मध्यम उधोग राज्य मंत्री गिरिराज सिंह के संसदीय क्षेत्र नवादा में होर्डिंग लगाकर उनके कार्यकलापों का विरोध जताया गया है। शुक्रवार की सुबह नगर के प्रजातंत्र चैक पर होर्डिंग लगाकर विरोध दर्ज कराई गई है। नवादा जनता के नाम से जारी इस होर्डिंग के माध्यम से संसदीय क्षेत्र के लोगों की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया गया है। होर्डिंग के जरिए बाहरी लोगों को प्रश्रय देने की बात कही गई है। लगाए गए होर्डिंग के मुताबिक, सांसद के बाहरी होने के आलावा सांसद प्रतिनिधि और भाजपा जिलाध्यक्ष भी बाहरी बनाए गए हैं। यही नहीं, मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा रखे गये आठ पीए और स्टाफ भी बाहरी हंै। यहां तक की पटना  से दिल्ली तक पानी पिलाने वाला व्यक्ति भी  बाहरी रखा गया है। इसके पहले संसदीय क्षेत्र के बरविगहा मे भी एक पोस्टर लगाकर मंत्री के कार्यकलाप पर सवाल उठाए गए थे। पोस्टर में सांसद का लापता होने का जिक्र किया गया था। हालांकि बाद मंे सांसद ने कहा था कि विरोधियों की साजिश है। जुलाई माह मंें विश्व हिंदू परिषद आौर बजरंग दल के नेताओं ने भी पुतला जलाकर सांसद का विरोध किया था। असंसदीय शब्दों का आरोप था।
         इधर, एक बार फिर केन्द्रीय राज्य मंत्री के संसदीय क्षेत्र नवादा के प्रजातंत्र चैक पर होर्डिंग लगाकर उनके क्रियाकलापों पर सवाल उठाया गया है। हालांकि शाम में उस होर्डिंग को उनके समर्थकों ने हटा दिया। लेकिन यह होर्डिंग सोशल मीडिया पर ट्रंेड कर जाने के कारण लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया। लोग उनके पक्ष और विपक्ष में प्रतिक्रिया देने लगे हैं। बता दें कि करीब 13 माह बाद जिलाध्यक्ष का चयन हुआ है। शशिभूषण कुमार बबलू को जिलाध्यक्ष चुना गया है। इस पद के लिए छह उम्मीदवार थे। बबलू को चुने जाने की शिकायत पटना कार्यालय तक पहुंचा था। बबलू को गिरिराज समर्थक बताया जाता है। बबलू का पैतृक गांव नालंदा जिला है। जबकि सांसद प्रतिनिधि बिटटू शर्मा जहानाबाद जिला के हैं। हालांकि इस संबंध में मंत्री से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई। लेकिन कई दफा फोन काॅल के बाद भी जवाब नही मिला। हालांकि इसके पहले सांसद प्रतिनिधि के सवाल पर मंत्री का तर्क था कि पूरी पार्टी उनका प्रतिनिधि है। दूसरी तरफ, सांसद प्रतिनिधि विट्टु शर्मा ने कहा कि मंत्री जी की कोई गलत मंशा नही है। मंत्रीजी संसदीय क्षेत्र का विकास चाहते हैं। विकास में बाहरी और भीतरी कोई मुदद्ा नही है। 

सामाजिक तानाबाना पर केन्द्रित कहानियों का सग्रंह है बजरंगी

डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
एक लड़की जो विवाह के पहले मां बन गई है। उस कुंवारी मां को समाज स्वीकारने को तैयार नही है। कुछ लोगों के पहल के बाद मुश्किल से उसकी शादी होती है। लेकिन उस गलती की पीड़ा उसे जीवन भर सताती है। ‘सुख की पीड़ा’ में ऐसी ही एक लड़की पर केन्द्रित कहानी है। साहित्यकार रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर की नई पुस्तक ‘बजरंगी’ समाज के दस्तूर, नियम, परंपरा और संगठन पर केन्द्रित कहानियों का संग्रह है। इसमें ‘बजरंगी’ भी एक अलग कहानी है। यह गुरू-शिष्य परंपरा पर केन्द्रित है। इसमें एक लावारिस बच्चा आगे चलकर बड़ा संत बन जाता है, जो बजरंगी के नाम से जाना जाता है।
इस कहानीसंग्रह में फगुनी एक कहानी है। इसमें माउंटेनमैन दशरथ मांझी की पत्नी फगुनी पर केन्द्रित है। यह महिला प्रधान है। फगुनी में दशरथ मांझी के दामपत्य जीवन पर केन्द्रित कहानी है। किसानों के शोषण, दोहन के खिलाफ उठी आवाज -कोलहार- की कहानी में मिलता है। एक कहानी है साहेब। इसमें साहेब बनाने में माता-पिता और भाई अपनी आहूति दे दी है। लेकिन देशी मेम के कारण ये आहूति का मतलब बदल गया है। विदेशी साहेब और मेम के रास्ते पर चलनेवाले देशी साहेबों ओर मेम के आचरणों पर यह कहानी सवाल खड़ा कर रही है।
बदला नामक कहानी बदले का नया स्वरूप है। एक जमींदार के अत्याचार से लोग गांव छोड़ देते हैं। एक ग्रामीण सुलतान मियां कोलकाता जाता है। वह धनी हो जाता है। तबतक जमींदार की हालत खराब हो जाती है। सुलतान गांव आता है। वह जमींदार से मिलने उसके घर भी जाता है। जमींदार को चिंता होती है कि सुलतान बदला लेने तो नही आया। लेकिन सुल्तान दमड़ी से भरी अटैची जमींदार की बेटी को देते हुए उसे अच्छे परिवार में जाने का आशीर्वाद देता है। बजरंगी में ऐसी 13 कहानियां है। दहनी, प्रधानजी, सरहपाद की सरकण्डवी, सुजाता का हठ, नगरवधू, उम्मीदें, नौटंकीवाली जैसी कहानियां सामाजिक ताना बाना से जुड़ा है।

किताब का नाम- बजरंगी
लेखक- राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर
प्रकाशक- किताब महल
मूल्य 125 रूपए
बिहार के नवादा जिले के वारिसलीगंज प्रखंड के मकनपुर गांव निवासी रत्नाकर की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। संस्कृति संगम, आस्था का दर्शन, बलिदान, शहीद, बह्मर्षि कुल भूषण, लोक गाथाओं का सांस्कृतिक मूल्याकंन प्रमुख पुस्तक है।

देवता’ को नही मिलेगा दारू तो नीतीश को होगी परेशानी

डाॅ अशोक प्रियदर्शी
       कई गांवों में परंपरा रही है कि देवताओं पर प्रसाद के रूप में दारू चढ़ाए जाते रहे हैं। परंपरा है कि हर रोज देवता पर देसी शराब चढ़ाए जाते हैं। इसके लिए गांवों में क्रम बना हुआ है। बिहार के नवादा जिले के सदर प्रखंड के गोनावां निवासी 70 वर्षीय शंभू मांझी की मानें तो गांवों में सदियों से डाकबाबा, गोरैयाबाबा, डीहवाल और मसानबाबा पर दारू चढ़ाए जाते रहे हैं। देसी शराब बंद हो जाने से से विदेशी शराब चढ़ा पाना मुश्किल होगा। लिहाजा, देवता पर दारू नही चढ़ पाएगा तो जिससे देवता नाराज हो जाएंगे। इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है। हालांकि एक अन्य ग्रामीण कारू मांझी कहते हैं कि दारू की जगह दूध चढ़ाए जाएंगे, ताकि भगवान नाराज नही हों। 
        हालांकि देवता की नाराजगी और प्रसन्नता का असर तो गांव तक ही सीमित रहेगा। लेकिन देसी शराब की पाबंदी में लापरवाही साबित हुई तो इसका सीधा असर राज्य सरकार पर पड़ेगा। जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बड़े उदेश्य को लेकर पहले चरण में देसी शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई है। लेकिन इसे जब सख्ती से लागू नही किया गया तब इसका सीधा असर गांव के गरीबों पर पड़ेगा। देसी दारू का सेवन गांव के गरीब लोग करते थे। इनमें वेलोग भी शामिल है जो डीहवाल, डाकबाबा, गौरयाबाबा और मसानबाबा पर दारू चढ़ाने में आस्था रखते हैं। 
         लेकिन सरकारी घोषणा के बावजूद अवैध तरीके से शराब की बिक्री होेगी तो इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ेगा। पहले जो व्यक्ति 30 रूपए की दारू से काम चला लेते थे उन्हें कालाबाजार में कई गुणा अधिक राशि खर्च करने पड़ेंगे। यही नहीं, अवैध तरीके से महुआ शराब के निर्माण पर अंकुश नही लगाए जाने का असर भी उनसबों पर ही दिखेगा। अवैध शराब से मौत का खतरा विद्यमान रहता है। सरकारी स्तर पर जो कानून बनाए गए हैं, सरकार की लचर कार्यप्रणाली रही तो इसका खामियाजा भी गरीबों को भुगतना पड़ेगा। जेल जाएंगे। सजाए होगी।ऐसी स्थिति में दारू बंद करने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब मिलेगा तब व्यवस्था की लचर कार्यप्रणाली की जवाबदेही भी नीतीश के जिम्मे होगी।
          बता दें कि राज्य में हर माह करीब 8232394 लीटर देशी शराब की खपत होती थी। जबकि 3677816 लीटर विदेशी और 3658646 लीटर बियर की खपत होती थी। बिहार में पहली अप्रैल से देशी शराब पर पाबंदी लगा दी गई है। सरकार ऐसा मान रही है कि देसी दारू पर प्रतिबंध लगाए जाने से ग्रामीणों को काफी राहत मिलेगी। जो गरीब अपनी मजदूरी का आधा दारू में खर्च कर देते थे। उनकी वह राशि बचेगी। महिलाएं पर अत्याचार की घटनाएं थमेगी। बच्चों की पढ़ाई में मदद मिलेगी। लेकिन जब विफलता होगी तो गरीबों का गुस्सा भी सरकार पर होगा। क्योंकि विफलता की कीमत गरीबों को चुकानी पड़ेगी। जाहिर तौर पर यह गुस्सा नीतीश पर भारी पड़नेवाला है। क्योंकि इनकी आबादी बड़ी है।

‘बच्चा’ जब किसी की गोद में खेलेगा नहीं तो बढेगा कैसे

 अशोक प्रियदर्शी
 हम सब जानते हैं कि किसी बच्चा का परवरिश तभी ठीक से होता है जब उसकी देखभाल ठीक से की जाती है। जरूरी नही कि बच्चा सिर्फ मां की गोद में ही खेले। बच्चा को जिस किसी का गोद प्यारा लगता है उस गोद में खेलने लगता है। इसमें चैकने और चैकानेवाली क्या है!
दरअसल हम उस बच्चा की बात कर रहे हैं जो बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह पिछले 11 जून को पुलिस के हत्थे चढ़ा है। बिहार में टाॅपर घोटाले का मास्टर माइंड वैशाली के कीरतपुर स्थित वीआर काॅलेज के प्रिसिंपल अमित राय उर्फ बच्चा राय ने पुलिस के समक्ष कई जानकारियां दी है।
         बच्चा ने पुलिस को बताया कि उसे एक केन्द्रीय मंत्री से मधुर संबंध रहे हैं। वह उनके काॅलेज आते जाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक केन्द्रीय मंत्री की मदद से मेडिकल काॅलेज खोलने की योजना थी। बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने केन्द्रीय लघु सूक्ष्म और उधोग राज्य मंत्री गिरिराज सिंह के साथ बच्चा राय की तस्वीर को ट्वीट करते हुए बीजेपी नेताओं से जवाब मांगा। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद ने भी जवाब मांगा।

          जवाब में गिरिराज सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बच्चा राय की तस्वीर को ट्वीट कर जवाब मांगा है। यही नहीं, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के साथ बच्चा राय की भी तस्वीर पोस्ट की गई है। गिरिराज सिंह ने अब तेजस्वी से जवाब मांगा है।
         जाहिर तौर पर ऐसे तस्वीरों से आम आदमी गुमराह होती रही है। शायद सियासी नेताओं का मकसद भी यही है। लेकिन समझनेवाली बात यह है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था में बच्चा राय अकेला नही है। नाम बदले हुए हो सकते हैं, लेकिन सैकड़ों बच्चा राय’ है। यह भी सही है कि ये बच्चा अकेले दम पर इतनी गड़बड़ी कर भी नही सकता।
         दरअसल, ऐसे बच्चा और सियासी नेताओं के बीच गहरे ताल्लुक रहे हैं। यही नहीं, इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदार भी रहे हैं। यह बच्चा राय की करतुत उसी कड़ी का हिस्सा रहा है। देखें तो, बच्चा राय जब गिरफ्तार हुआ था तब एक फोन पर उसे निकलने का अवसर दे दिया गया। उसके बाद 11 जून को पुलिस कस्टडी में आया तब कैमरे बंद होते ही वह पुलिस से एक ही सवाल करता था-अबतक किसी का फोन नही आया!