Monday 4 April 2016

नारदः संग्रहालयः पूर्वी कला शैली का अद्भूत संगम

डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी
पत्रकार, संयोजक, विरासत बचाओ अभियान. बिहार 

        दुर्लभ कलाकृतियों और मूर्तियांे के संग्रह को लेकर बिहार के नवादा जिले का नारदः संग्रहालय देश और दुनिया के लिए ख्यातिप्राप्त है। इस संग्रहालय में पुरातत्व कला, मुद्रा, प्राकृतिक इतिहास, अस्त्र-शस्त्र, पांडुलिपियां, भूतत्व और पत्थरकटट्ी की आधुनिक कला की पांच हजार से अधिक कला वस्तुएं संग्रहित है। इसमें मगध बंग शैली की सैकडों मूर्तियां हैं। लिहाजा, इस संग्रहालय को इस्टर्न स्कूल आॅफ आर्ट यानि पूर्वी कला शैली के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र माना जाता है। यह संग्रहालय देश विदेश के शोधकर्ताओं की पहली पसंद है।
      छठी शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक बिहार और बंगाल में मगघ बंग शैली विकसित हुई थी जिसे पाल सेन कला भी कहा जाता है। मगघ बंग शैली के विकसित रूप के लिए ही इस्टर्न आॅफ आर्ट यानि पूर्वी कला शैली का नाम आया हैं। इस शैली के स्वतंत्र अस्तित्व का विवरण तारानाथ के वृतांत में मिलता हैं। तारानाथ के अनुसार, देवपाल और धर्मपाल नामक पालवंशीय शासकों के समय में धीमान और उसके पुत्र वितपाल ने अनेक मूर्तियां बनाई थी। सलिमपुर अभिलेख में मगघ के एक प्रसिद्ध शिल्पी सोमेश्वर का नाम आया हैं जो इस क्षेत्र की समृद्ध कला परम्परा को इंगित करता हैं ।  
        नवादा नगर के मध्य में अवस्थित नारदः संग्रहालय इसी मगघ बंग शैली का प्रतिनिधित्व करता हैं। यहां इस शैली की सैकड़ों मूर्तियां संग्रहित हैं। जिले के सोनूबिगहा से प्राप्त वासुकी की प्रतिमा, मड़रा से प्राप्त नरसिहं अवतार, मरूई से प्राप्त नटराज और बोधिसत्व की मूतियां कलात्मक और मूर्ति विज्ञान की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। जिले के समाय, सिसवां, कोसला, पटवासराय, मरूई, महरावां, बेरमी और नरहट से प्राप्त विष्णु की  मूर्तियां और मकनपुर से प्राप्त जांभल की मूर्ति अति दुलर्भ है। 
       गया जिले के हड़ाही से प्राप्त हिन्दू देवी कंकाली महिषामर्दिनि की प्रतिमा, कुर्किहार से प्राप्त पदमपाणि अवलोकितेष्वर तथा धुरियावां से प्राप्त बौद्विस्ट देवी हारीति की प्रतिमा अदभूत है। हिन्दू साइट से प्राप्त होने पर हिन्दू देवी मंजु़श्री और बौद्धिस्ट साइट से प्राप्त होने पर बोधिसत्व की पुष्टि करता है। संग्रहालय के दीर्घाकक्ष में प्रदर्शित अधिकांश बौद्ध मूर्तियां अभिलेखयुक्त है। इसके कारण मूर्तियों का विशेष महत्व है। यह संग्रहालय पूर्वी कला शैली पर अध्ययन करने वालों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की पढाई शुरू करने वालों को अक्षर ज्ञान की जरूरत होती है। वरना इस संग्रहालय के मूर्तियां के अध्ययन के बिना पूर्वी कला शैली पर किए गए शोध को अधूरा माना जाएगा।
         नवादा के समाय से प्राप्त हरिहर की प्रतिमा शैव और वैणव धर्म की एकता का प्रतिनिधित्व करता हैं। अतौआ, छतिहर और बेरमी से प्राप्त सूर्य की प्रतिमा पुरातत्व की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। सूर्य की प्रतिमा की खासियत है की उनके पैर में जूते हैं। हिन्दू धर्म में सूर्य के पैर में जूते के बारे में धार्मिक मान्यता है कि भगवान सूर्य के खाली पैर देखने से अनिष्ट होता हैं। लिहाजा, पैर में जूता पहनाया गया है। 
      पालकाल में गया, नवादा और नांलदा का इलाका मूर्तियों के विकास का स्वर्णिम काल था। इस क्षेत्र में मगध बंग शैली की मूर्तियां काफी संख्या में मिलती रही है। कुर्किहार में काफी संख्या में इस शैली की मूर्तियां मिली है, जो नवादा, पटना और कोलकाता समेत अनेक संग्रहालय में संरक्षित है। संभव है  कुर्किहार और इसके आसपास के क्षेत्र में कई शिल्पकार मूर्तियों का निर्माण करते थे। लिहाजा, इस क्षेत्र से बडी संख्या में वैष्णव, शैव, बौद्ध और जैन धर्म से जुड़ी मूर्तियां मिलती है।
        बता दें कि दुर्लभ कलावस्तुओं के संग्रह के लिए ख्यात नारदः संग्रहालय की स्थापना नवादा जिले के पहले जिलाधिकारी नरेन्द्र पाल सिंह के प्रयास से संभव हुआ था. उन्होंने बिखरी पड़ी मूर्तियों, पाण्डुलिपियों और कलाकृतियों को 1973 में एक टीन के सेड में संग्रह करने का काम शुरू किया था। जन सहयोग से शुरू किए गए संग्रह अभियान से यह संग्रहालय देश के महत्वपूर्ण संग्रहालयों में से एक बन गया है । इसका उदघाटन 2 मई 1974 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल आर डी भंडारी ने किया था।



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