Wednesday 13 April 2016

हमारे बुजुर्ग-मुश्किलें आईं, पर धीरज रखा और जिंदगी हो गई खुशहाल


डाॅ अशोक प्रियदर्शी
दयमन्ती देवी और प्रीति प्रीतम 
चौदह  साल पहले की कहानी है। पश्चिम चंपारण के सुदामा नगर निवासी सत्यनारायण भगत सिचाई विभाग से रिटायर हुए थे। रिटायरमेंट के दो साल बाद भगत की आकस्मिक मौत हो गई। भगत के निधन के बाद दयमंति देवी अकेली पड़ गई थी। दयमंति टूट चुकी थी। उन्हें बाकी जीवन अंधकारमय दिख रहा था। उनपर तीन बेटियांे नीतू, प्रिया और प्रीति प्रितम की जिम्मेवारी थी। बेटियां छोटी थी। सभी पढ़ाई कर रही थी।
दयमंति बताती है कि अकेलापन काफी कष्टकर था। मुश्किल की समाज के सामने इसका इजहार भी नही कर सकती थी। क्योंकि इसका इजहार से उपहास ही उड़ाया जाता। ऐसे में खुद को काबू में की। थोड़ी साहस बटोरी। फिर बच्चों की खुशियों में अकेलापन का निदान ढूढ़ने लगी। बेटियों ने भी साथ दिया। लिहाजा, तीनों बेटियां जाॅब कर रही है। दो बेटियों की शादी भी कर दी हूं।
     खासबात कि अब जब कभी अकेला महसूस करती हूं बेटियां उसे दूर करने की हर मुमकीन कोशिश करती हैं। फिर भी परेशानियां जब महसूस करती हूं, पति का अभाव खटकता है। चूंिक पति और पत्नी के बीच हर तरह की बातें होती है, जिसमें निदान भी छिपा होता है। ऐसे में धैर्य और साहस से उस कमी को दूर करने की कोशिश करता हूं।
दयमंति अकेली ऐसी महिला नही हैं। बिहार के नवादा जिले के नवीन नगर की 65 वर्षीय गीता कुमारी भी ऐसा ही मिसाल हैं। वह भी अकेलापन से तालमेल बिठाकर जिंदगी की राह आसान की है। 1997 में गीता देवी के पति शशि मोहन प्रसाद सिन्हा की हत्या कर दी गई थी। वह सिनेमा हाॅल में एकाउंटेंट थे। तब से गीता देवी अकेली हो गई थीं। हालांकि वह स्कूल टीचर थीं। तब वेतन भी कम थी। जमीन जायदाद नही थी। लेकिन जवाबदेही बड़ी थी। 
       गीता देवी की तीन बेटियां अंजू, अर्चना और अमिता और एक पुत्र अजय था। सभी छोटे थे। अकेलापन से उबरने के लिए साहस जुटाई। वह कहतीं हैं कि पति की कमी को भुलाया नही जा सकता, लेकिन बच्चों के साथ भागीदारी बढ़ाकर अकेलेपन के गैप को पाटने की कोशिश करती रहीं। लिहाजा, तीनों बेटियां बैंक में बड़े अधिकारी है। बेटा भी कंपीटिशन की तैयारी कर रहा है। बच्चों की सफलता से काफी सुकुन मिलता है।

बच्चों से लगाया दिल, मिट गया अकेलापन
       अकेलापन में अवसाद की जिंदगी जी रहे बुजुर्गों के लिए गया जिले के धौकल विगहा (अतरी) निवासी मंगर यादव मिसाल है। वह सौ साल पूरे कर चुके हैं। लेकिन उनकी पत्नी पारो देवी की मौत 35 साल पहले हो चुकी है। वह किसान हैं। गौपालन करते हैं। पढ़े लिखे नही हैं। फिर भी अकेलापन से बेहतर तालमेल बिठाए हैं। इस उम्र में भी घरेलू कामों में हाथ बंटाते हैं। बाकी समय बच्चों के साथ बिताते हैं।
         मंगर यादव कहते हैं कि ऐसा नही कि पारो की याद नही आती। उसे भूला नही जा सकता। नही उसकी कमी पूरा हो सकता है। 15 साल की आयु से उसका साथ मिला था। लेकिन दर्द भूलने में भलाई है। दिल की बात को जुबां पर लाने से परेशानियां बढ़ेगी और जीवनशैली प्रभावित होगी। इसलिए बच्चों क साथ अकेलापन मिटाने की कोशिश करता हूं। यही वजह है कि वह अपने तीन पीढ़ियों को एक साथ देख पा रहे हैं।

रेडियो और अखबार को बनाया अकेलापन का साथी
अकबरपुर प्रखंड के पहाड़पुर निवासी 85 वर्षीय रामस्वरूप सिंह अकेलापन को पाटने के लिए रेडियो और अखबार को जरिया बना रखे हैं। वह नियमित रूप से अखबार और रेडियो सुनते हैं। इसके जरिए देश व समाज की घटनाओं की जानकारी रखते हैं। बाकी समय बच्चों के साथ बिताते हैं। डेढ़ दशक पहले उनकी पत्नी कौशल्या देवी की मौत हो चुकी है।
          रामस्वरूप सिंह का दापंत्य जीवन खुशहाल माना जाता था। उन्हें चार बेटे और तीन बेटियां है। उनका मानना है कि परिस्थितियों के साथ समझौता कर चलना ही मनुष्य की बुद्धिमानी है। मिथिलेश सिंह कहते हैं कि मां के श्राद्धकर्म जब हो गया था तब पिताजी बोले थे कि अब मुश्किल होगा दुख सुख की बातें करना। लेकिन उसके बाद वह कभी जुबां पर दर्द को छलकने नही दिए।

एकल बुजुर्ग का जीवन वागवान के पात्रों से भी प्रतिकूल 
एकल बुजुर्गों के समक्ष वागवान फिल्म के पात्रों से भी प्रतिकूल परिस्थितियां है। फिल्म में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी बेटों के गलत निर्णय से अलग-अलग रहने को बाध्य हो गए थे। हालांकि अमिताभ दंपति के बीच फोन पर बातें होती थी। मिलने की उम्मीद भी बची थी। लेकिन अलगाव के दर्द से दोनों दुखी रहते हैं। स्टोरी के क्लाइमेक्स में दोनों साथ रहने लगते हैं। लेकिन एकल बुजुर्ग के पास स्थिति उससे भी विषम है। फिर भी कई ऐसे बुजुर्ग हैं जो बेहतर जीवन जीने का संदेश दे रहे हैं।

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक -
डाॅ.निधि श्रीवास्तव 
           मनोवैज्ञानिक डाॅ.निधि श्रीवास्तव कहती हैं कि बुढ़ापे में पति या पत्नी के बिछुड़ जाने से लोग अवसाद में चले जाते हैं। निराश हो जाते हैं। क्योंकि बच्चे भी खुद के घर गृहस्थी में उलझ जाते हैं। बुजुर्गों का हालचाल नही ले पाते। ऐसे में बुजुर्गों को सकारात्मक बदलाव लाने की जरूरत है। एकल बुजुर्ग को अपने रूटीन में रूचिकर कार्याें को शामिल कर लेना चाहिए। बच्चों से लगाव काफी मददगार साबित होता है। वह कहती हैं कि बुजुर्ग के जीवनसाथी के असमय बिछुड़ जाने से सर्वाधिक परेशानी पुरूषों को होती है। महिलाएं को आर्थिक परेशानियां होती है। लेकिन वह घरेलू कार्यों और बच्चों से लगाव से कम कर लेती हैं। लेकिन पुरूष को तालमेल बिठाने में काफी समय लग जाता है।


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