Monday 4 April 2016

जिस कुष्ठ अस्पताल में रोगी बनकर आये थे रामप्रवेश, अब उसी के भरोसे कुष्ठ अस्पताल की जिम्मेवारी


अशोक प्रियदर्शी
बात 40 साल पहले की है। बिहार के नालंदा जिले के कंचनपुर निवासी रामप्रवेश प्रसाद कुष्ठ रोगी था। कई जगह इलाज के बाद हार गए थे। उनसे गांव समाज के लोग छुआछूत करते थे। तभी एक परिचित ने उन्हें बताया था कि नवादा जिले के कौआकोल प्रखंड के कपसिया कुष्ठ अस्पताल में कुष्ठ रोगियों का इलाज किया जाता है। तब रामप्रवेश 16 साल के थे। कपसिया कुष्ठ अस्पताल में भर्ती हुए। तीन साल तक इलाज के बाद रामप्रवेश को काफी राहत मिल गई थी। अस्पताल में मुफ्त आवासीय इलाज की व्यवस्था थी। 
         अस्पताल उन्हें मुक्त कर दिया था। लेकिन रामप्रवेश गांव लौटने को राजी नही थे। वह कुष्ठ रोगियों की सेवा करना चाहते थे। लिहाजा, वह चिकित्सक के कामों में हाथ बंटाने लगे। उसने भभुआ गांधी कुष्ठ निवारण प्रतिष्ठान में डेढ़ साल तक ट्रेनिंग भी लिया। तब से वह लगातार कपसिया कुष्ठ अस्पताल में रोगियों की सेवा में जुटे हैं। चिकित्सक चन्द्रशेखर मिश्र की आकस्मिक निधन हो गया। उसके बाद से रामप्रवेश ही बतौर चिकित्सक रोगियों का इलाज करने लगे। यही नहीं, 2003 में जब भारत सरकार ने देश में कुष्ठ उन्मूलन की घोषणा कर दी तब से से इस अस्पताल को अनुदान मिलना भी बंद हो गया।
ताज्जुब कि उसके बाद भी रामप्रवेश ने अस्पताल से नाता नही तोड़ा। रामप्रवेश के अलावा जमुई के विष्णुदेव यादव और कौआकोल के नवल मांझी आज भी अस्पताल से जुड़े हैं। रामप्रवेश कहते हैं कि उनके साथ जैसा व्यवहार हुआ, वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नही हो। इसलिए कुष्ठ प्रभावितों को सेवा करने में सकून मिलता है।

कुष्ठ रोगी से किया शादी, बच्चे को दिया अच्छा परवरिश
रामप्रवेश ने अस्पताल की एक कुष्ठ रोगी राजो देवी से शादी कर सामाजिक जीवन में भी मिसाल प्रस्तुत किया। परिवार के लोग इस शादी के खिलाफ थे। लेकिन रामप्रवेश ने इसका परवाह नही किया। रामप्रवेश तीन भाइयों में छोटे थे। लेकिन शादी के बाद से परिवार के लोग भी उनसे भेदभाव करने लगे हैं। हालांकि चार साल पहले पत्नी की मौत हो गई। रामप्रवेश को एक पुत्र भी है। उसका स्वस्थ्य लड़की से शादी हुई। पुत्रवधू शिक्षिका हैं। एक पौत्र भी है।

कब खुला था कुष्ठ अस्पताल
  आजादी के समय नवादा, गया, जमुई, लखीसराय, नालंदा, गिरिडीह के सुदूरवर्ती इलाका में कुष्ठ रोगियों की काफी तादाद थी। इसी को ध्यान में रखकर 1955 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कपसिया में 40 बेड का अस्पताल स्थापित किया था। इसका  तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ राजेन्द्र प्रसाद ने उद्घाटन किया था। कुष्ठ रोगियों के इलाज और जागरूकता के लिए भारत सरकार अनुदान दिया करती थी। लेकिन 2003 से अनुदान बंद कर दिया गया है। 
         उसके बाद जेपी की सामाजिक संस्था ग्राम निर्माण मंडल के सहयोग से यह अस्पताल संचालित किया जा रहा है। संस्था के प्रधान मंत्री अरविंद शर्मा कहते हैं कि आसपास के ग्रामीण इलाका में अब भी कुष्ठ रोग का प्रभाव दिखता है। वेलोग सार्वजनिक तौर पर इलाज नही कराना चाहते। लिहाजा, प्रत्येक साल गुपचुप तरीके से तकरीबन 50 मरीज दाखिल होते हैं। उनका इलाज किया जाता है। यही नहीं, रोगियों को पीएचसी और सदर अस्पताल में इलाज के लिए प्रेरित किया जाता है।
 

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