Monday 4 April 2016

ग्वालियर सम्मेलन- डाॅ प्रियदर्शी ने किया बिहार के युवा इतिहासकारों का नेतृत्व, मिला सम्मान




 ग्वालियर में आयोजित युवा इतिहासकारों के राष्ट्रीय सम्मेलन में पत्रकार और एसकेएम काॅलेज नवादा के हिस्ट्री के लेक्चरर डाॅ अशोक कुमार प्रियदर्शी ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। इस मौके पर जीवाजी यूनिवर्सिटी के रजिस्टार प्रो आनंद मिश्र और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के अध्यक्ष व वरिष्ठ इतिहासकार प्रो सतीश चन्द्र मिततल ने डाॅ अशोक प्रियदर्शी को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया है। गौरतलब हो कि 19-20 मार्च को मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित जीवाजी यूनिवर्सिटी में युवा इतिहासकारों का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका आयोजन जीवाजी यूनिवर्सिटी और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।


      इसमें बिहार से पांच युवा इतिहासकार शामिल हुए थे, जिसका प्रतिनिधित्व डाॅ प्रियदर्शी ने किया। सम्मेलन में डाॅ प्रियदर्शी के अलावा नालंदा से डाॅ हेगोयल, मुजफ्फरपुर से अनामिका ब्रजवंशी, हाजीपुर से वेदवती और वैशाली से डाॅ मनीष सिंह शामिल हुए। बता दें कि दिसंबर 2015 में मैसूर में आयोजित इतिहास पुनर्लेखन सेमिनार में डाॅ प्रियदर्शी ने रेवरा आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित किया था। तब डाॅ प्रियदर्शी को बिहार का प्रतिनिधित्व करने का दायित्व दिया गया था।


क्या उठाए सवाल
राष्ट्रीय सम्मेलन में डाॅ प्रियदर्शी ने इतिहास पुनर्लेखन की विसंगतियों पर सवाल उठाया। उन्होंने सवाल किया कि युवा इतिहासकार इन विसंगतियों से उबरकर कैसे जनपथ का इतिहास लेखन कर सकता है। काफी समय बीत चुका है। साक्ष्य भी गुम पड़ रहे हैं। ऐसे में तर्कपूर्ण और प्रमाणिक इतिहास लेखन बढ़ाने के तरीके क्या होंगे। डाॅ प्रियदर्शी ने 1857 के स्वातंत्रता संग्राम में मगध के जवाहिर रजवार और एतवा रजवार की ब्रिट्रिश अधिकारियों की गलत व्याख्या पर सवाल उठाया। डाॅ प्रियदर्शी ने कहा कि जो हमारे नायक थे, उन्हें ब्रिट्रिश अधिकारी डकैत का नाम दे रखा था। लिहाजा, अब भी जवाहिर और एतवा की भूमिका गुमनाम है।









वरिष्ठ इतिहासकार डाॅ मितल का जवाब
डाॅ मितल ने कहा कि स्थानीय स्तर पर जवाहिर और एतवा के बारे में जानकारी हासिल कर बेहतर इतिहास लेखन संभव है। पत्रों और दस्तावेजों के जरिए भी उनके योगदानों के बारे में जानकारी हासिल किया जा सकता है। डाॅ मितल का मानना है कि भारतीय इतिहास लेखन पक्षपातपूर्ण रहा है। ब्रिट्रिश लेखकों ने लेखन में भी भारतीय को नीचा दिखाने की कोशिश की है। जबकि मुगलकालीन लेखकों ने शासकों का पसंदीदा इतिहास लेखन किया। बाद में भारतीय इतिहास लेखन शुरू हुआ लेकिन उसमें राष्ट्रीय चेतना का अभाव है।



कौन है जवाहिर और एतवा
जवाहिर नवादा जिले के नारदीगंज थाना के पसई गांव का रहने वाला था। जबकि एतवा रोह थाना के कर्णपुर गांव का रहनेवाला था। 1857 में जवाहिर और एतवा ने अंग्रेज अधिकारियों और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया था। अंग्रेजों ने इसे डकैत का नाम दे रखा था, ताकि जवाहिर और एतवा के पक्ष में सामुहिक धु्रवीकरण नही हो।

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