
पिछले पांच सालों के अंतराल में फेसबुक पर 1100 सदस्यों का परिवार हो गया। इसमें उनके कई सगे संबंधी भी हैं, जो नौकरी- रोजगार के कारण दूर हो चुके थे। अजय कहते हैं-सोशल साइट्स का नतीजा कि उनके दोस्तों की सूची में पाकिस्तान, वर्मा, भूटान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान जैसे देशों के लोग उनसे जुड़े हैं। अजय के मुताबिक, पाकिस्तान सेना में बड़े अधिकारी से रिटायर हुए मुस्ताक रहमान उनके फ्रंेडलिस्ट में हैं। सीमा पर एक दूसरे के सामने होते थे। इंसानियत की वजह से अब अच्छे दोस्त हैं।

अजय कहते हैं -फेसबुक निजी जानकारी बढ़ाने का बेहतर जरिया है। इससें हर विचारधारा के लोग जुड़े हैं। उम्र का भी फासला नही दिखता। हर उम्र के लोगों के अच्छे बुरे अनुभवों से वाकिफ होने का बेहतर प्लेटफाॅर्म है। हालांकि अब प्रोपगंडा फैलाने का जरिया बनता जा रहा है। इससे परहेज करता हूं। प्रोपगंडा फैलानेवालों को हटाने में देर नही करता। 63 वर्षीय अजय बिहार के नवादा जिले के काशीचक प्रखंड के चंडीनावां गांव के रहने वाले हैं। फिलहाल फरीदाबाद में रहते हैं।
अकेला उदाहरण नही
तीन साल पहले बिहार के पथ निर्माण विभाग के संयुक्त सचिव पद से रिटायर हुए श्याम बिहारी राय की कहानी भी रोचक है। उनकी तीन बेटियां हैं। दो बेटियां श्वेता और पल्लवी अमेरिका में है। जबकि छोटी बेटी अकंाक्षा नागपुर में रिसर्च कर रही है। राय के अलावा परिवार में उनकी पत्नी उषा शर्मा हैं। राय कहते हैं- पढ़ाई से नौकरी के दौरान कई मित्र थे। लेकिन अलग अलग कार्यक्षेत्र और व्यस्तता की वजह से हमसब दूर हो चुके थे। रिटायरमंेट के बाद सोशल साइट्स के जरिए एक प्लेटफाॅर्म मिला है।
इस प्लेटफाॅर्म में पुराने सगे संबंधियों के अलावा गैर परिचितों से भी परिचय बढ़ा है। इस साइट्स पर बौद्धिक भूख मिटती है। पढ़ने लायक सामग्री मिल जा रही है। वैसे वह यूपी के वाराणसी के भगवानपुर के रहनेवाले हैं। लेकिन उनके ज्यादातर परिचित बिहार से हैं। वह 28वीं बैच के हैं। उनके बैच के ज्यादातर अधिकारी रिटायर कर गए हैं। जनवरी में राजगीर में उनसबों की मिटिंग्स रखी गई है। लोगों को जोड़ने में फेसबुक महत्वपूर्ण कड़ी का काम किया है।

80 साल के मुकुटधारी

बुजुर्गों की बढ़ रही तादाद
संयुक्त परिवार की व्यवस्था अब खत्म हो रही है। वरिष्ठ नागरिक राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं कि अब पति-पत्नी और बच्चे तक परिवार सीमित हो गया है। बच्चे के नौकरी और रोजगार में चले जाने से अभिभावक अकेले हो जाते हैं। जिन अभिभावकों को बच्चों के साथ रहने का अवसर मिलता है, इसमें पारिवारिक कलह के कारण बुजुर्ग निराशापूर्ण स्थिति में जीते हैं। एकाकी जीवन जीनेवाले बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है। ऐसे बुजुर्गों के लिए नया ठौर सोशल साइटस बन रहा है।
पीइडब्लू रिसर्च सेंटर के मुताबिक, 71 फीसदी व्यस्क फेसबुक यूजर हैं। इसमें बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है। 2012 में 65 पार के 35 फीसदी बुजुर्ग फेसबुक यूजर थे। 2013 में 45, जबकि 2014 में 56 फीसदी पहुंच गया है। 2013 में 50-64 साल के 60 फीसदी लोग थे, 2014 में 63 फीसदी पहुंच गया। इसी तरह, करीब 23 फीसदी व्यस्क टवीट्र यूजर हैं। 2013 में 60-64 साल के 9 फीसदी बुजुर्ग थे, जो 2014 में 12 फीसदी पहुंच गया। यही नहीं, 65 पार लोगों की तादाद 5 से बढ़कर 10 फीसदी पहुंच गया है।
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