डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
बात साल भर पहले की है। बिहार के नालंदा जिले के बिहारशरीफ के वैजनाथपुर गांव निवासी एसपी सिन्हा की पत्नी अस्वस्थ हो गईं। बहुत दिनों तक बेड पर रहीं। पटना आइजीएमएस से इलाज चला। लेकिन पत्नी की सेवा के लिए एसपी सिंहा को कोई जदद्ोजहद नही उठाना पड़ा। बेटियों ने निराश नही होने दिया। बेटियां मां की खूब सेवा की। हालांकि मौत जीत गई। लेकिन सिन्हा बेटियों की सेवा के कायल हो गए हैं। वह कहते हैं कि उन्हें अगल जनम में भी ऐसी ही बेटियां हो।
उनका मानना है कि बेटे की चाहत पौराणिक संस्था की उत्पति है। पहले डंडा का जमाना था। किसी से मुकाबला करने के लिए बेटे की जरूरत महसूस करते थे। लोग बुढ़ापे की सहारा के लिए नही वारिस के लिए बेटे चाहते थे। पहले राजा रजवाड़े थे। उनके पास अकूत दौलत होती थी। उसके वारिस के लिए बेटे चाहते थे। बेटियों को पराया धन मानते थे। देखें तो, जब से बेटियां शिक्षित और स्वावलंबी होने लगी है तब से वह बेटे से मजबूत पीलर साबित होने लगी है।
73 वर्षीय एसपी सिन्हा आर्मी के सीनियर आॅफिसर पद से रिटायर्ड हैं। पांच बेटियां है। सभी बेटियां पढ़ी लिखी हैं। लेकिन तमाम व्यस्तताओं के बावजूद कोइ न कोई बेटियां उनकी देखभाल के लिए साथ रहती हैं। वैसे, सिन्हा खुद भी सक्रिय रहते हैं। वह नालंदा पब्लिक स्कूल में बतौर प्रिसिंपल काम संभालते हैं। सिन्हा कहते हैं कि बेटे के मां-बाप बेटियों के मां-बाप से पहले बुजुर्ग हो जाते हैं। ऐसा क्यों हो रहा है।
बेटियांे के पिता से करते हैं छूआछूत
समाज में बेटियों के माता पिता से छूआछूत का भाव रखा जाता है। तीन साल पहले नवादा जिले के अकबरपुर के खैरा गांव निवासी बाल्मिकी प्रसाद सिंह समधी के भाई गजवदन सिंह के बेटे की शादी में आमंत्रित थे। वह शेखपुरा जिले के तोयपर गए हुए थे। गजवदन और बाल्मिकी सिंह के बीच मधुर संबंध रहे हैं। लेकिन तिलकोत्सव के समय आशीर्वाद देने की बात आई तो उन्हें नही बुलाया गया।
67 वर्षीय बाल्मिकी सिंह कहते हैं कि उन्हें बेटा नही है इसलिए समाज ऐसा बर्ताव करती है। बेटियों के पिता को निरवंश मानते हैं। समाज मानता है कि बेटियों के मां-बाप के आशीर्वाद से नवदंपति भी बेटियों का मां-बाप बन जाएगा। इसलिए ज्यादातर लोग बेटियों से ऐसे समय में परहेज करते हैं। बाल्मिकी बताते हैं कि यह पहली घटना नही है। साल भर पहले भतीजा के बेटे की शादी था। तब भी आशीर्वाद के समय इगनोर किया गया। लिहाजा, अब ऐसे अवसरों पर आशीर्वाद देने से परहेज करने लगा हूं।
बता दें कि बाल्मिकी सिंह भूमि विकास बैंक पटना के सीनियर एरिया मैनेजर के पद से रिटायर हुए हैं। उन्हें दो बेटियां इंदू और बिंदू है। दोनों की शादियां अच्छे परिवार में हुई है। बाल्मिकी सिंह कहते हैं कि बेटियों को ज्यादा लालसा नही होती है। इसलिए वह खूब स्नेह और प्रेम देती है। लेकिन समाज बेटियांे के मां-बाप को दर्द देता है। बेटियों के व्यवहार से मां कुंती देवी भी सकून महसूस करती हैं।
बेटे है, लेकिन ख्याल रखती हैं बेटियां
72 वर्षीय रामशरण सिंह की वाक्या उनके लिए सबक है, जो बेटियों को पराया और बेटे को अपना मानते हैं। अकबरपुर के पहाड़पुर गांव निवासी रामशरण सिंह सीनियर एग्रीकल्चर आॅफिसर पद से रिटायर्ड हैं। उन्हें एक बेटा और सात बेटियां हैं। बेटा मेडिकल कंपनी में बड़े अधिकारी के पद पर काठमांडू में पदस्थापित है। लेकिन रामशरण सिंह बताते हैं कि उन्हें बेटे से पिछले दो साल से बात नही हुई है। संपर्क करने पर भी निराशा हुई है। क्योंकि मां बाप से बेटा दूरी बनाए रखना चाहता है। लेकिन बेटियां उनकी हर दिनचर्चा का ख्याल रखती हैं।
रामशरण कहते हैं कि उन्होंने बेटियों (कविता, बबीता, सरिता, संगीता, विनीता, सुप्रिया और स्नेहा) को ही बेटा जैसा परवरिश दे रहे हैं। बेटियों की अच्छी शिक्षा और अच्छे घरों में शादी कर रहा हूं। मां आशा देवी कहती हैं कि चार बेटियों होकर ससुराल चली गई है लेकिन वह उनके घर से नाता नही तोड़ी है। अक्सर ख्याल रखती है।
बेटियों की घर और बाहर दमदार उपस्थितिः डाॅ पूनम चौधरी
पटना की समाज विज्ञानी डाॅ पूनम चौधरी कहती हैं कि बेटियां पारिवारिक समझ के तौर पर काफी सबल होती हैं। बेटियांे का मा-बाप से भावनात्मक लगाव होता है। बेटियों में यह प्राकृतिक गुण है। वह घरेलू संस्कार ज्यादा ग्रहण करती है। इसलिए बेटियांें के व्यवहार में भी दिखता है। अब बेटियों के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है। ज्यादातर पुराने ख्याल के लोग हैं, जो बेटियों को पराया धन मानते हैं। बेटियों के मां-बाप को अछूत मानते हैं। यह वही लोग हैं, जो बदलते समाज के साथ खुद को नही बदल सके हैं। देखें तो, घर और बाहर दोनों स्तर पर बेटियां दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही है।
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