![]() |
अन्नू, गृहणी |
आदरणीय सासू मां

थोड़ा वक्त बीता है। आप भी वही हैं। मैं भी वही हूं। लेकिन अब छोटी सी भूल को भी पहाड़ बना देती हैं। अब जबकि मैं घर का पूरा काम संभालती हूं। सुबह से रात्रि तक काम करती हूं। खाने की भी सुध नही रहती। परिजनों और रिश्तेदारों का भी ख्याल रखती हूं। खाना नास्ता समय पर बना देती हूं। ससुर जी की दवाई और आपकी सेहत का भी ख्याल रखती हूं। लेकिन आप अक्सर मुझे गलत ठराने की कोशिश करती रहती है। बेटे को भी उलाहना देते रहती हैं कि बहू का गुलाम हो गया है। जिस गांववालों को मेरा चेहरा देखना आपको नागवार गुजरता था, उनके सामने ही मेरी गलतियां गिनाती हैं।
दोपहर में बच्चे को दूध पिलाने के दौरान नींद आ गई। ससुर जी को खाना देने में विलंब हो गया। ननद खाना दे दी। इसे आप मेरी भूल मान लेती हैं। आप जानते हैं कि ज्यादा काम से मैं भी थक जाती हूं। कमजोरी भी लगती है। फिर भी चैन से नही बैठती हूं। अगर मैं पति के साथ बाजार चली गई तो आप नाराज हो जाती हैं। मां से मिलने मायके जाती हूं तो यह भी आपको बुरा लगता है। शब्जी में नमक ज्यादा हो जाने पर आप नाराज हो जाती हैं। लेकिन ननदजी जब पूरी शब्जी गिरा दी थीं तब आप हंसकर कहती हैं कि नादान है। सिख जाएगी।
मेरे गहने ननद की शादी में बेच दिए। लेकिन बेटी का गहना अपने पास सुरक्षित रखना चाहती हैं। सासू मां आप भी सोचिए। मैं भी सोचती हूं। फर्क किसी में नही आया है। सोच में फर्क आया है। आप मुझे बहू के रूप में आंकने लगी हैं। आप मुझे पराए घर की बेटी मानने लगी हैं। मैं भी आपको अपने पति की मां मानने लगी हूं। एक कदम आप पीछे हटिए। मुझे बेटी मान लीजिए। मैं भी अपनी मां मानने लगूं।
सबकुछ ठीक हो जाएगा। आप भी मेरी खुशी चाहती हैं। मैं भी आपको दुखी नही देखना चाहती। लेकिन छोटी छोटी गलतियों के कारण दूरियां बढ़ गई है। आप गलतियां ढूढ़ती रहती हैं। मंै अपना गलती मानने को तैयार नही हूं। लेकिन आपभी सोच लीजिए कि मैं भी कभी बहू थी।
(एक बहू का संदेश है। इसका मकसद सास और बहू के बीच की कड़वाहट की वजहों से अवगत कराना है )
No comments:
Post a Comment