Monday 22 February 2016

बुआ मना करती रही लेकिन अंकिता ज्वाइन कर ली फौज की नौकरी

डॉ अशोक प्रियदर्शी
            बात छह साल पहले की है। अंकिता बीटेक की पढ़ाई पूरी कर ली थी। वह एमएस की पढ़ाई के लिए यूके जानेवाली थी। वाले यूनिवर्सिटी में दाखिला भी हो चुका था। रहने के लिए कमरा भी आवंटित हो गया था। तभी अंकिता को आर्मी में लेफ्टिनेंट पद की जाॅब मिल गई। अंकिता की सफलता से मम्मी पापा काफी खुश थे। लेकिन बुआ बेहद नाराज थीं। बुआ नही चाहती थी कि अंकिता फौज की नौकरी करें। बुआ का कहना था कि फौज की नौकरी के चलते उनके कर्नल भाई पर्व त्योहार में भी परिवार के साथ समय नही दे पाते थे। उनका मानना था कि भतीजी भी जब फौज में जाएगी तब घर परिवार कैसे चला पाएगी। वह चाहती थीं कि अंकिता इंजीनियरिंग की नौकरी करे ताकि उसे बाद में कोई परेशानी नही हो।

 लेकिन अंकिता फौज की नौकरी से प्रभावित थी। इसलिए वह डिग्री पूरा करने के बाद फौज में नौकरी के लिए आवेदन की थी। सुखद संयोग कि पहले ही प्रयास में अंकिता को लेफ्टिनेंट का जाॅब मिल गया। दरअसल, अंकिता के पिता अजय कुमार कर्नल रहे हैं। वह पिता की नौकरी से काफी प्रेरित थी। लिहाजा, उसे भी फौज की नौकरी से लगाव था। दरअसल, 1990 में कर्नल अजय कुमार जब श्रीलंका से लौटे थे तब 14 टैंक खराब हो गया था। रूस में अनिश्चितता की स्थिति थी। टैंक का कलपूर्ज का आयात नही हो पा रहा था। तब अजय अपनी टीम के साथ मेहनत कर खराब टैंक को दुरूस्त करने में कामयाबी मिल गई थी। तब 65 कवचित रेजिमेंट की काफी ख्याति हुई थी। अंकिता को पिता कर्नल अजय की ख्याति की चर्चा अक्सर सुनने को मिलती थी। अंकिता कहती हैं कि पिता की यह ख्याति उसे फौज की ओर काफी आकर्षित किया।
           यही नही, बिहार के नवादा जिले की अंकिता फौज में गहरी छाप छोड़ी है। अंकिता इलेक्ट्रोनिक वारफेयर डिविजन में दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। वह पूणा के बाद भटिंडा में इलेक्ट्रोनिक वारफेयर का प्रतिनिधित्व कर रही है। बताया जाता है कि अंकिता आधे दर्जन प्रोग्राम तैयार की है, जिसका आर्मी में इस्तेमाल किया जा रहा है। अब अंकिता की सफलता से बुआ का नजरिया भी बदल गया है। बुआ अपनी भतीजी पर फ्रक महसूस करती हैं।





शिक्षा दीक्षा
बिहार के नवादा जिले के काशीचक प्रखंड के चंडीनावां गांव की अंकिता शर्मा की शिक्षा दीक्षा आर्मी स्कूल में हुआ। तीसरी कक्षा तक की झांसी स्थित बबीना आर्मी पब्लिक स्कूल से की। आठवीं की पढ़ाई पठानकोट आर्मी पब्लिक स्कूल से की। आठवीं में पंजाब की टाॅपर रही थी। तब तत्कालीन मंत्री मोहनलाल ने सम्मानित किया था। दसवीं की पढ़ाई सेंट्रल स्कूल ग्वालियर और 12 वीं अम्बाला से पूरी की। दोनों परीक्षाएं में टाॅपर रही। फिर गुरू जमधेश्वर यूनिवर्सिटी हिसार से बीटेक की पढ़ाई की। इसमें भी टाॅप रही। वह अंतर यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व की। इसके पहले इंटर स्कूल बैडमिंटन चैम्पियनशिप बम्बई में रनर रही थी।

पारिवारिक पृष्ठभूमि 
            अंकिता के पिता अजय कुमार पांच साल पहले आर्मी में कर्नल के पद से रिटायर हुए हैं। अंकिता की छोटी बहन अपूर्वा शर्मा पूणे में इंफोसिस में आइटी कंसलटेंट हैं। जबकि भाई अंकुर चंडीगढ़ में इंफोसिस में सिस्टम इंजीनियर है। अंकिता की मां मीना शर्मा गृहणी हैं। रिटायरमंेट के बाद अंकिता के माता पिता फरीदाबाद में रहते हैं।

Friday 19 February 2016

बेटियां प्यार देती है, समाज दर्द

डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
 बात साल भर पहले की है। बिहार के नालंदा जिले के बिहारशरीफ के वैजनाथपुर गांव निवासी एसपी सिन्हा की पत्नी अस्वस्थ हो गईं। बहुत दिनों तक बेड पर रहीं। पटना आइजीएमएस से इलाज चला। लेकिन पत्नी की सेवा के लिए एसपी सिंहा को कोई जदद्ोजहद नही उठाना पड़ा। बेटियों ने निराश नही होने दिया। बेटियां मां की खूब सेवा की। हालांकि मौत जीत गई। लेकिन सिन्हा बेटियों की सेवा के कायल हो गए हैं। वह कहते हैं कि उन्हें अगल जनम में भी ऐसी ही बेटियां हो।
          उनका मानना है कि बेटे की चाहत पौराणिक संस्था की उत्पति है। पहले डंडा का जमाना था। किसी से मुकाबला करने के लिए बेटे की जरूरत महसूस करते थे। लोग बुढ़ापे की सहारा के लिए नही वारिस के लिए बेटे चाहते थे। पहले राजा रजवाड़े थे। उनके पास अकूत दौलत होती थी। उसके वारिस के लिए बेटे चाहते थे। बेटियों को पराया धन मानते थे। देखें तो, जब से बेटियां शिक्षित और स्वावलंबी होने लगी है तब से वह बेटे से मजबूत पीलर साबित होने लगी है।
73 वर्षीय एसपी सिन्हा आर्मी के सीनियर आॅफिसर पद से रिटायर्ड हैं। पांच बेटियां है। सभी बेटियां पढ़ी लिखी हैं। लेकिन तमाम व्यस्तताओं के बावजूद कोइ न कोई बेटियां उनकी देखभाल के लिए साथ रहती हैं। वैसे, सिन्हा खुद भी सक्रिय रहते हैं। वह नालंदा पब्लिक स्कूल में बतौर प्रिसिंपल काम संभालते हैं। सिन्हा कहते हैं कि बेटे के मां-बाप बेटियों के मां-बाप से पहले बुजुर्ग हो जाते हैं। ऐसा क्यों हो रहा है। 

बेटियांे के पिता से करते हैं छूआछूत
समाज में बेटियों के माता पिता से छूआछूत का भाव रखा जाता है। तीन साल पहले नवादा जिले के अकबरपुर के खैरा गांव निवासी बाल्मिकी प्रसाद सिंह समधी के भाई गजवदन सिंह के बेटे की शादी में आमंत्रित थे। वह शेखपुरा जिले के तोयपर गए हुए थे। गजवदन और बाल्मिकी सिंह के बीच मधुर संबंध रहे हैं। लेकिन तिलकोत्सव के समय आशीर्वाद देने की बात आई तो उन्हें नही बुलाया गया।
        67 वर्षीय बाल्मिकी सिंह कहते हैं कि उन्हें बेटा नही है इसलिए समाज ऐसा बर्ताव करती है। बेटियों के पिता को निरवंश मानते हैं। समाज मानता है कि बेटियों के मां-बाप के आशीर्वाद से नवदंपति भी बेटियों का मां-बाप बन जाएगा। इसलिए ज्यादातर लोग बेटियों से ऐसे समय में परहेज करते हैं। बाल्मिकी बताते हैं कि यह पहली घटना नही है। साल भर पहले भतीजा के बेटे की शादी था। तब भी आशीर्वाद के समय इगनोर किया गया। लिहाजा, अब ऐसे अवसरों पर आशीर्वाद देने से परहेज करने लगा हूं। 
          बता दें कि बाल्मिकी सिंह भूमि विकास बैंक पटना के सीनियर एरिया मैनेजर के पद से रिटायर हुए हैं। उन्हें दो बेटियां इंदू और बिंदू है। दोनों की शादियां अच्छे परिवार में हुई है। बाल्मिकी सिंह कहते हैं कि बेटियों को ज्यादा लालसा नही होती है। इसलिए वह खूब स्नेह और प्रेम देती है। लेकिन समाज बेटियांे के मां-बाप को दर्द देता है। बेटियों के व्यवहार से मां कुंती देवी भी सकून महसूस करती हैं।

बेटे है, लेकिन ख्याल रखती हैं बेटियां
 72 वर्षीय रामशरण सिंह की वाक्या उनके लिए सबक है, जो बेटियों को पराया और बेटे को अपना मानते हैं। अकबरपुर के पहाड़पुर गांव निवासी रामशरण सिंह सीनियर एग्रीकल्चर आॅफिसर पद से रिटायर्ड हैं। उन्हें एक बेटा और सात बेटियां हैं। बेटा मेडिकल कंपनी में बड़े अधिकारी के पद पर काठमांडू में पदस्थापित है। लेकिन रामशरण सिंह बताते हैं कि उन्हें बेटे से पिछले दो साल से बात नही हुई है। संपर्क करने पर भी निराशा हुई है। क्योंकि मां बाप से बेटा दूरी बनाए रखना चाहता है। लेकिन बेटियां उनकी हर दिनचर्चा का ख्याल रखती हैं।
रामशरण कहते हैं कि उन्होंने बेटियों (कविता, बबीता, सरिता, संगीता, विनीता, सुप्रिया और स्नेहा) को ही बेटा जैसा परवरिश दे रहे हैं। बेटियों की अच्छी शिक्षा और अच्छे घरों में शादी कर रहा हूं। मां आशा देवी कहती हैं कि चार बेटियों होकर ससुराल चली गई है लेकिन वह उनके घर से नाता नही तोड़ी है। अक्सर ख्याल रखती है।

बेटियों की घर और बाहर दमदार उपस्थितिः डाॅ पूनम चौधरी 
         पटना की समाज विज्ञानी डाॅ पूनम चौधरी  कहती हैं कि बेटियां पारिवारिक समझ के तौर पर काफी सबल होती हैं। बेटियांे का मा-बाप से भावनात्मक लगाव होता है। बेटियों में यह प्राकृतिक गुण है। वह घरेलू संस्कार ज्यादा ग्रहण करती है। इसलिए बेटियांें के व्यवहार में भी दिखता है। अब बेटियों के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है। ज्यादातर पुराने ख्याल के लोग हैं, जो बेटियों को पराया धन मानते हैं। बेटियों के मां-बाप को अछूत मानते हैं। यह वही लोग हैं, जो बदलते समाज के साथ खुद को नही बदल सके हैं। देखें तो, घर और बाहर दोनों स्तर पर बेटियां दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही है।
 

Tuesday 9 February 2016

बिहार - नीयत बदली तो सूरत भी

Monday 8 February 2016

पुस्तक समीक्षा/वर्षावन की रूपकथा- बादलों के संग कहानियों की अच्छी युगलबंदी, वर्षावन की रूपकथा










डाॅ. अशोक प्रियदर्शी
         21वीं सदी के आखिरी दौर में हिन्दी समाज का दायरा बहुत तेजी से वैश्विक हुआ है। सचमुच लोकल से ग्लोबल का क्या संबंध है, इसका अध्ययन न सिर्फ भारत की हिंदी पटट्ी बल्कि दक्षिण भारत में भी करीब से देखना आनंदपूर्ण और विश्मयकारी है। झारखंड में स्थित दुनिया के एक मात्र एंग्लो इंडियन ग्राम पर केन्द्रित अपने उपन्यास से हिन्दी साहित्य में तेजी से चर्चा में आए विकास कुमार झा ने दरअसल साहित्य की उस नई धारा में मजबूती से पतवार थामीं है। इसमें स्वयं लेखक के शब्दों में जीवन में सच्चाई और वास्तविकताएं ही उतनी उद्भूत है कि कोरी कल्पणाओं का सहारा लेने की बहुत आवश्यकता नही। 
विकास कुमार झा का नया उपान्यास ‘वर्षावन की रूपकथा’ फिर से इस बात की तस्तीक करता है कर्नाटक के सिमोगा जिले के तीर्थहल्ली तालुका में सघन वर्षावन के बीच बसे मनोहर ग्राम अगुम्बे के 95 फीसदी पात्र उतने ही सजीव और वास्तविक है, जिनसे पाठक मैकलुस्कीगंज के पाठकों की भांति उनका नाम पुकार के मिल सकता है। सचमुच कितना यह मधुर रोमांच है कि आप उपन्यास के विस्तृत समाज से गुजरते हुए पात्रों से परिचय कर खुश हो सकते हैं। कभी इस सही नाम वाले वास्तविक पात्र से मिलना भी हो सकता है।
कहते हैं कि पत्रकारिता जल्दबाजी का साहित्य है। लेकिन विगत चार दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय रहे विकास झा ने अपने उपन्यासों की इस नई धारा से यह भरसक साबित किए हैं कि पत्रकार अपनी पेशेगत दायरे में भले जल्दबाज हों लेकिन अंदर से उनका मन अधीर नही होता है। और यह कहना गैर मुनासिब नही होगा कि धीरज भरी पत्रकारिता क्या कुछ कर सकती है इसे विकास झा के सदयः प्रकाशित उपन्यास वर्षावन की रूपकथा से गुजरते हुए समझा जा सकता है।
उपन्यासों में पात्रों की जमघट है। एक पूरा का पूरा गांव, वर्षावन के बीच बसा एक पूरा अंचल, वहां की प्राकृतिक शोभा, अनवरत वर्षा के कारण वहां की मुश्किल, सबकुछ। इस सबके उपर लगातार आनंद में हिलोरे लेता वहां का जीवन। अगुम्बे को भारत का दूसरा चेरापूंजी कहा जाता है। यह गांव दुनियां में नागराज कोबरा के वास स्थान के रूप में मशहुर है। स्नेकमैन आॅफ एशिया के रूप में ख्यात रामुलस हिव्टेकर ने किंग कोबरा पर शोध के लिए यहां सघन जंगल के बीच रिसर्च स्टेशन भी खोल रखा है।
भारत के शिल्पकला, हस्तकला को प्रोत्साहित करनेवाली अपने दौर की महान हस्ती श्रीमती कमला देवी चटट्ोपध्याय के सौतेले पोते हैं रोमुलस हिव्टेकर, जिनके नाम का भारतीयकरण अगुम्बेवासियांे ने रामूजी के रूप में कर रखा है। जीवन संबंधों की ऐसी मधुरिमा वर्षावन के बीच बसे इस अंनूठे गांव में पग-पग पर मिलती है, जहां बाजारवाद के इस भीषण पागल समय में भी सौ फीसदी संयुक्त परिवार आज भी अस्तित्व में है। गांव के प्राचीन श्रीवेणुगोपाल स्वामी के अर्यक पंडित विष्णुमूर्ति भटट, गांव के सबसे बड़े घर दोडडमने की कस्तुरी अक्का, होटल चलानेवाला लिंगराज, सर्पदंश झाड़नेवाली शारदा अम्मा, गांव के हाईस्कूल के अवकाशप्राप्त हेडमास्टर कृष्णमूर्ति हेम्बार, अखबार विक्रेता बाबू शेनाॅय सरीखे सच्चे सजीव पात्र बड़े आत्मीय और निकट लगते हैं।
जंगल, पर्वत और झमझम बारिश के बीच कर्नाटक के मलनाड अंचल में स्थित अगुम्बे इसलिए कन्नड़ फिल्मों के महानायक दिवंगत शंकरनाग को तब पहली नजर में भा गया जब उन्होंने तय किया था कि आरके नारायण की अमरकृति ‘मालगुडी डेज’ पर वे सिरियल बनाएंगे। नारायण का अमर साहित्य ग्राम मालगुडी एक काल्पणिक ग्राम है। और शंकरनाग इसलिए कसमकस में थे कि काल्पणिक मालगुडी को कहां साकार किया जाय। सही लोकेशन की तलाश में वे बहुत घूमे और एक दिन अगुम्बे पहुंच गए। उन्हें पहली नजर में लगा कि यही है मालगुडी! वे आरके नारायण को भी एक बार साथ लाए और स्वयं नारायण भी अगुम्बे में धूमकर चकित रह गए कि जिस मालगुडी को उन्होंने कल्पणा से लिखा था वह कैसे यह सधन वर्षावन के बीच सांसे ले रहा है।
शंकरनाग ने तय किया कि वह पूरा गांव ही उनका सेट होगा। अगुम्बे में शूटिंग के लिए अलग से सेट लगाने की जरूरत नही है। मालगुडी डेज के बने कई दशक गुजर चुके हैं। लेकिन अगुम्बे आज भी अपनी आत्मा में मालगुडी के आलोक को बसाए हुए है। अगुम्बे गांव का मालगुडी रोड, कई ऐसे स्थल आज भी उसकी याद दिलाते हैं।
    ‘वर्षावन की रूपकथा’ एक लेखक का उस सुंदर संसार से प्यार है जिसको लेकर महान साहित्यकार दोस्तोयेव्स्की कहते हैं- ‘सुंदरता ही संसार को बचाएगी।’ स्वयं लेखक के शब्दों में सुन्दरता का मतलब-‘ठेठ अगुम्बेपन से भी है।’ प्रेम का चिरंतन आनंद, उसकी अटूट शक्ति और विहवल करूणा भी विशुद्ध अगुम्बेपन में ही है। बादलों के संग कहानियों की इस युगलबंदी में कन्नड़ सिनेमा और थियेटर, शुभंकर और अरण्या की अद्भूत प्रेमकथा है। विकास झा अपनी भूमिका में कहते हैं- अगुम्बे ने सचमुच में मुझे आनंद दिया, नश्वर में साश्वत का।

Monday 1 February 2016

पीएम को शुक्रिया, जिन्होंने सुन ली मुझ जैसी सुदामा की फरियाद



  अशोक प्रियदर्शी  
      बात आठ माह पहले की है। साधना के पति की तबियत अचानक बहुत खराब हो गई थी। तब दूसरों से मदद लेकर पति अरविंद सिंह की इलाज कराई थी। तब से साधना को किसी विकल्प की तलाश थी। इसी बीच गांव में सोलर चरखा का ट्रेनिंग सेंटर खुला। साधना तीन माह की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग के समय जो आमदनी हुई उससे वह पति की इलाज में लिए कर्ज को चुकता कर दी। चरखा से साधना का लगाव बढ़ गया।
         ट्रेनिंग के बाद महिलाओं को चरखा लेने को कहा जा रहा था। कर्ज के भय से कोई महिला ट्रेनिंग सेंटर से चरखा ले जाने को तैयार नही थी। लेकिन साधना देवी ने साहस जुटाई। सबसे पहले अपने घर में चरखा ले गई। फिर बाद में दूसरी ट्रेंड महिलाएं भी चरखा घर ले गई। साधना देवी ने बताया कि 40 किलोग्राम सूत की कताई की है जिसमें आठ हजार रूपए की आमदनी हुई है। साधना कहती हैं कि सूत की कताई दर में बढ़ोतरी कर दी जाएगी तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। उनकी तंगहाली दूर हो जाएगी। 

       हम बात कर रहे हैं उस साधना की जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि साधना जैसी महिलाओं से दूसरी महिलाओं को भी सीख लेनी चाहिए। बिहार के नवादा जिले के नरहट प्रखंड के खनवां निवासी 35 वर्षीया साधना ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर सोलर चरखा से हो रहे फायदे से अवगत कराई थी। उस पत्र में मजदूरी दर बढ़ाने का भी फरियाद की थी। रविवार को पीएम ने जब साधना की चर्चा की तब साधना की खुशी का ठिकाना नही था। 
       
साधना ने कहा कि प्रधानमंत्री को हम शुक्रिया अदा करना चाहती हूं, जिन्होंने मुझ जैसे सुदामा (गरीब) की फरियाद को सुना। यही नहीं, उनकी मेहनत की सार्वजनिक रूप से चर्चा किया। हालांकि मैं सूत काट रही थी, इसलिए नही देख और सुन पाई। लेकिन लोगों ने जब बताया तब मुझे काफी खुशी हुई। यह मेरी खुशकिस्मती है। साधना कहती हैं कि प्रधानमंत्री की काफी चर्चा सुनती थी। अचानक एक दिन दिल में आया कि प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचाउ। तभी एक चिटठी लिखी थी। इसके पहले मैंने कभी कोई चिटठी नही लिखी थी

साधना की पृष्ठभूमि
साधना सातवीं पास है। साधना के पति ग्रेजुएट हैं। लेकिन उन्हें कोई जाॅब नही मिली। इसलिए वह खेती करते हैं। पांच कटठा खेत है। घर है लेकिन अर्धनिर्मित है। साधना निःसंतान है। साधना गया जिले के वजीरगंज प्रखंड के दखिनगांव निवासी रामवृक्ष सिंह के छोटी बेटी है। रामवृक्ष सिंह टीचर थे। उन्हें दो बेटियां और तीन बेटे हैं। बेटे गैराज की दुकान चलाते हैं। जबकि बेटियों की शादी मामूली परिवार में किए थे।

साधना को कैसे मिला अवसर
केन्द्रीय सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने सांसद आदर्श ग्राम योजना से खनवां गांव को गोद लिया था। पांच माह पहले खादी ग्रामोधोग की मदद से खनवा में सोलर चरखा का ट्रेनिंग सेंटर खोला गया था। गिरिराज सिंह का दावा रहा है कि उनका उदेश्य हर घर की महिलाओं को पांच हजार रूपए की आमदनी कराया जाना है।
पहले चरण में 50 चरखा थी। ट्रेंड महिलाओं को चरखा उपलब्ध कराया गया। दूसरे चरण में 50 चरखा से ट्रेनिंग दी जा रही है। ग्राम निर्माण मंडल, खाधी ग्रामोद्योग गया के ट्रेनर जय कुमार कहते हैं महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ी है।  खनवां पंचायत की मुखिया बेबी देवी ने कहा कि सोलर चरखा लाचार महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। घरेलू महिलाओं को बहुत कम मेहनत में अच्छी आमदनी का जरिया है। इसे और व्यापक स्तर पर उतारे जाने की जरूरत है।



 

PM ने 'मन की बात' में की इस महिला की तारीफ, बनी गांव के लिए रोल मॉडल

प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ में साधना के जिक्र ने उन्हें महिलाओं का रौल मॉडल बना दिया था।
प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ में साधना के जिक्र ने उन्हें महिलाओं का रौल मॉडल बना दिया था।
  • अशोक प्रियदर्शी
  • Feb 01, 2016, 06:37 AM IST




      नवादा(बिहार). यहां की साधना सिंह हजारों हाउस वाइफ्स के लिए रोल मॉडल बन गईं हैं। उन्होंने चरखा और सूत को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया, जिसके बाद उनका लगाव इसके प्रति बढ़ता गया और उनकी आमदनी भी। रविवार को पीएम के मन की बातमें साधना के जिक्र ने उन्हें उन महिलाओं का रोल मॉडल बना दिया, जो हाउस वाइफ हैं और अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं।
पति का इलाज कराया और कर्ज भी चुकाया...
- बात आठ महीने पहले की है। साधना के पति की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई थी।
- तब दूसरों की मदद लेकर पति अरविंद सिंह का इलाज करवाया। घर में कोई जमापूंजी नहीं बची थी।
- तब से साधना को किसी विकल्प की तलाश थी। इसी दौरान गांव में सोलर चरखा का ट्रेनिंग सेंटर खुला।
- साधना ने तीन माह की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग के समय जो आमदनी हुई, उससे पति के इलाज के लिए लिया कर्ज चुकाया।
हर रोज होती है दो सौ रुपए की आमदनी
केंद्रीय सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत नवादा के खनवां गांव को गोद लिया था। पांच माह पहले खादी ग्रामोद्योग की मदद से खनवा में सोलर चरखे का ट्रेनिंग सेंटर खोला गया था। पहले चरण में 50 चरखे थे। ट्रेंड महिलाओं को चरखे उपलब्ध कराए गए। महिलाएं कच्चे माल से सूत काटती हैं और तैयार सूत को खादी ग्रामोद्योग को देती हैं। प्रतिदिन दो सौ रुपए तक की आमदनी उन्हें हो जाती है।
साधना की राह पर गांव की महिलाएं
साधना की राह पर उनके गांव की कई महिलाएं चल रहीं हैं और अपनी कमाई से गृहस्थी में योगदान दे रहीं हैं। हालांकि दो महीने पहले ट्रेनिंग के बाद महिलाओं को चरखा लेने को कहा जा रहा था। कर्ज के डर से कोई महिला ट्रेनिंग सेंटर से चरखा ले जाने को तैयार नहीं थी। सबसे पहले साधना अपने घर चरखा ले गई। फिर बाद में दूसरी महिलाएं भी चरखा घर ले गईं। साधना सिंह ने बताया कि दो महीने में 40 किलोग्राम सूत की कताई की है जिसमें आठ हजार रुपए की आमदनी हुई है।
मन की बात सुन नहीं पाई, लोगों ने बताया
साधना ने कहा कि प्रधानमंत्री को मैं शुक्रिया अदा करना चाहती हूं, जिन्होंने मुझ जैसे सुदामाकी फरियाद सुनी। मेरी मेहनत की सार्वजनिक रूप से चर्चा की। हालांकि मैं सूत काट रही थी, इसलिए नहीं सुन पाई। लेकिन लोगों ने जब बताया तब मुझे काफी खुशी हुई। यह मेरी खुशकिस्मती है। साधना कहती हैं कि प्रधानमंत्री की काफी चर्चा सुनती थी। अचानक एक दिन दिल में आया कि प्रधानमंत्री तक अपनी बात भेजूं। तभी एक चिट्ठी लिखी थी।
प्रधानमंत्री को लिखा था पत्र
बिहार के नवादा जिले के नरहट प्रखंड के खनवां निवासी 35 वर्षीया साधना ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर सोलर चरखा से हो रहे फायदे की जानकारी दी थी। उस पत्र में मजदूरी बढ़ाने की फरियाद की। रविवार को पीएम ने जब साधना की चर्चा की तब साधना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

क्या कहना है गांव की मुखिया का
खनवां पंचायत की मुखिया बेबी देवी ने कहा कि सोलर चरखा लाचार महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। महिलाओं के लिए चरखे बहुत कम मेहनत में अच्छी आमदनी का जरिया है। इस कार्यक्रम को और व्यापक स्तर पर किए जाने की जरूरत है।
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